कांग्रेस में लगातार चुनाव हारने वाले प्रो. गौरव वल्लभ मोदी सरकार की आर्थिक सलाहकार परिषद में सदस्य बने

नई दिल्ली/उदयपुर। कांग्रेस में रहते हुए लगातार चुनाव हारने वाले पूर्व कांग्रेस प्रवक्ता प्रो. गौरव वल्लभ को बीजेपी में शामिल होने का तोहफा मिल ही गया, जिसका लंबे समय से इंतजार था।प्रोफेसर गौरव वल्लभ अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) में सदस्य के रूप में शामिल कर लिए गए हैं।

उदयपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले प्रो. वल्लभ को भाजपा प्रत्याशी से लगभग 30,000 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। चुनाव के कुछ ही समय बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थाम लिया। और अब, उन्हें केंद्र सरकार की शीर्ष नीति-निर्माण संस्थाओं में से एक में स्थान देकर, सरकार ने उनके ज्ञान और विशेषज्ञता को अहमियत दी है।

आर्थिक सलाहकार परिषद : नीति निर्माण की प्रयोगशाला

आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) एक स्वतंत्र संस्था है, जिसका उद्देश्य प्रधानमंत्री को देश के आर्थिक मुद्दों पर विश्लेषण और सुझाव देना होता है। यह परिषद भारत की आर्थिक रणनीति तैयार करने में सहायक होती है। वर्तमान में इस परिषद के चेयरमैन प्रख्यात अर्थशास्त्री एस. महेन्द्र देव हैं।

गौरव वल्लभ को इस परिषद में आर्थिक विशेषज्ञता और वित्तीय रणनीतियों की उनकी गहरी समझ के कारण शामिल किया गया है। सरकार का कहना है कि उनकी नियुक्ति विविध दृष्टिकोण को नीति-निर्धारण में शामिल करने की दिशा में एक “समावेशी” प्रयास है।

शैक्षणिक और व्यावसायिक पृष्ठभूमि

गौरव वल्लभ की अकादमिक पृष्ठभूमि उन्हें अन्य राजनीतिक नियुक्तियों से अलग बनाती है। वे देश-विदेश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में प्रोफेसर रह चुके हैं, और कॉरपोरेट फाइनेंस, मैक्रोइकॉनॉमिक्स, और पब्लिक फाइनेंस जैसे विषयों में विशेषज्ञ माने जाते हैं।

उनके द्वारा लिखे गए 100 से अधिक शोध-पत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित हो चुके हैं, जिससे उन्हें वैश्विक स्तर पर भी एक गंभीर विद्वान के रूप में मान्यता प्राप्त है। उनकी विश्लेषणात्मक शैली और तर्कों की स्पष्टता ने उन्हें टेलीविजन डिबेट्स में भी विशेष पहचान दिलाई।

राजनीति में बदलाव : विचारधारा बनाम विशेषज्ञता

कांग्रेस के साथ उनका जुड़ाव लंबे समय तक रहा, और वे पार्टी के प्रमुख राष्ट्रीय प्रवक्ताओं में गिने जाते थे। अनेक टीवी बहसों में उनकी आर्थिक समझ और तथ्यों पर पकड़ ने उन्हें एक विश्वसनीय आवाज के रूप में स्थापित किया। हालांकि चुनाव हारने के बाद उनका भाजपा में जाना कई लोगों के लिए चौंकाने वाला रहा।

अब उन्हें EAC-PM जैसे तकनीकी और प्रभावशाली निकाय में शामिल किया जाना, इस बात की ओर इशारा करता है कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार राजनीतिक पृष्ठभूमि से इतर जाकर विशेषज्ञता को प्राथमिकता दे रही है — या यूँ कहें कि यह एक “टेक्नोक्रेटिक इन्क्लूजन” का उदाहरण है।

क्या यह “इनाम” है या “योग्यता की पहचान”?

राजनीतिक गलियारों में इस नियुक्ति को लेकर कई मत उभर रहे हैं। कुछ इसे भाजपा द्वारा राजनीतिक रूपांतरण का इनाम मान रहे हैं, तो कुछ इसे योग्यता और विशेषज्ञता की स्वीकृति के तौर पर देख रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं : “भारतीय राजनीति में विचारधारात्मक शुद्धता अब व्यावहारिकता के सामने झुकती दिख रही है। वल्लभ की नियुक्ति यह संकेत देती है कि भाजपा भी अब अपनी टीम में विविध आवाजें और दृष्टिकोण चाहती है, खासकर आर्थिक मोर्चे पर।”

उदयपुर से दिल्ली : एक दिलचस्प राजनीतिक यात्रा

वल्लभ मूलतः झारखंड से हैं, लेकिन उनका ससुराल उदयपुर में है। उनके ससुर अखिलेश जोशी, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के सीईओ रह चुके हैं और उद्योग जगत में एक सम्मानित नाम हैं।

वल्लभ का उदयपुर से चुनाव लड़ना और फिर हारने के बाद भाजपा में शामिल होना — और अब दिल्ली के सत्ता केंद्र में एक प्रभावशाली भूमिका निभाना — यह दर्शाता है कि भारतीय राजनीति में विचारधारा की सीमाएं तेजी से धुंधली हो रही हैं, और व्यक्तिगत दक्षता को जगह मिल रही है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस प्रवक्ता के रूप में जिन नीतियों की आलोचना प्रो. वल्लभ करते थे, उन्हीं नीतियों को EAC-PM के सदस्य के रूप में अब कैसे आकार देंगे? क्या वे सरकार के राजकोषीय लक्ष्यों और आर्थिक विकास योजनाओं के भीतर रहते हुए अपनी स्वतंत्र सोच को बनाए रख पाएंगे?

या फिर यह नियुक्ति एक नई राजनीतिक यात्रा की शुरुआत है — जिसमें वे आगे मंत्री पद या और अधिक प्रशासनिक जिम्मेदारियों तक भी पहुँच सकते हैं?

 

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