उदयपुर | फतहसागर झील, उदयपुर की धड़कन है – यह सिर्फ एक जलाशय नहीं, बल्कि शहर की सांस्कृतिक पहचान, सामूहिक स्मृति और पर्यटक आकर्षण का केंद्र है। लेकिन इस झील के दो सिरों से दो ऐसी खबरें सामने आई हैं जो प्रशासनिक लापरवाही और संवेदनहीनता की मिसाल बनती जा रही हैं।
पहली तस्वीर: ओवरफ्लो गेट – एक तरफा सिस्टम ध्वस्त, यातायात बेहाल
फतहसागर के ओवरफ्लो गेट के पास देर रात 10:30 से 11:30 बजे के बीच लगने वाला ट्रैफिक जाम इन दिनों स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के लिए सिरदर्द बन चुका है। पुलिस द्वारा बनाए गए एकतरफा ट्रैफिक प्रबंधन की व्यवस्था तीन दिन से पूरी तरह चरमरा चुकी है।
सड़क पर तीन दिशाओं से आने वाला ट्रैफिक आपस में उलझता है, जिससे न केवल वाहन चालकों को दिक्कत हो रही है बल्कि झील के किनारे आने वाले सैलानियों की भी शांति भंग हो रही है।
मुंबइया बाजार के सामने पार्किंग बना मुसीबत
मुंबइया बाजार क्षेत्र, जहां आमतौर पर शाम होते ही चहल-पहल बढ़ जाती है, वहां सड़क के किनारे बेतरतीब कार पार्किंग लोगों की आवाजाही में बाधा बन रही है।
यह समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि प्रशासनिक हस्तक्षेप लगभग नगण्य है। क्या फतहसागर सिर्फ सेल्फी प्वाइंट और टूरिस्ट एंगल भर बनकर रह गया है, जहां मूलभूत शहरी व्यवस्था गौण हो चुकी है?
दूसरी तस्वीर: देवाली छोर – ‘मेरी झील’ अधूरी क्यों है?
फतहसागर का दूसरा छोर – देवाली – अपने शांत वातावरण और कलात्मक स्थापत्य के लिए जाना जाता है। यहीं एक मेटल प्लेट पर ‘मेरी झील’ नाम से एक कविता उकेरी गई थी, जो फतहसागर और शहर के रिश्ते को शब्द देती थी।
लेकिन हाल ही में यह कविता अधूरी नजर आने लगी है क्योंकि मेटल प्लेट का एक हिस्सा गायब है। सवाल यह उठता है कि क्या यह टुकड़ा चोरी हुआ है, या प्रशासन ने मरम्मत के नाम पर हटा लिया है?
प्रशासन मौन, लोग हैरान
स्थानीय लोग और पर्यटक जब अधूरी कविता देखते हैं, तो झील से उनका जुड़ाव कम नहीं होता, लेकिन यह टूटन उनके मन में एक सवाल जरूर छोड़ जाती है – “क्या हमारी सांस्कृतिक संपत्ति की सुरक्षा किसी की प्राथमिकता नहीं?”
अगर यह चोरी है, तो यह नगर सुरक्षा पर सीधा सवाल है। और यदि यह मरम्मत है, तो सूचना क्यों नहीं दी गई? यह उस ‘सार्वजनिक संवाद’ की कमी को दिखाता है जो नागरिक और शासन के बीच होना चाहिए।
फतहसागर – दो दृश्य, एक जैसी उपेक्षा
इन दोनों खबरों में एक समानता है – प्रशासनिक अनदेखी और प्रतिक्रिया की अनुपस्थिति।
एक तरफ ट्रैफिक व्यवस्था विफल हो रही है, दूसरी ओर सांस्कृतिक प्रतीकों की उपेक्षा हो रही है। दोनों ही हालात दर्शाते हैं कि फतहसागर, जो उदयपुर की आत्मा कहा जाता है, उसके प्रति जिम्मेदार संस्थाएं कितनी सतही नज़र रख रही हैं।
नजरिया: क्या शहर की धड़कन अब बस एक पोस्टकार्ड बनकर रह गई है?
फतहसागर सिर्फ एक पिकनिक स्पॉट नहीं है। यह शहर की स्मृतियों, रचनात्मकता, और नागरिक सहभागिता का प्रतीक है। लेकिन हाल के घटनाक्रम इस ओर इशारा करते हैं कि हमारी सार्वजनिक जगहें अब या तो ट्रैफिक का बोझ बन चुकी हैं या उपेक्षित कला कृतियों का संग्रहालय।
प्रशासन की जिम्मेदारी सिर्फ टूरिज्म प्रमोट करना नहीं, बल्कि इस झील से जुड़ी सामाजिक और सांस्कृतिक भावनाओं को भी संरक्षित रखना है।
क्या करें? सुझाव की दिशा में
स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन प्रणाली: रियल-टाइम कैमरा और सिग्नल आधारित कंट्रोल सिस्टम तत्काल स्थापित किए जाएं।
सुरक्षा और निगरानी: देवाली क्षेत्र और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर CCTV नेटवर्क को अपडेट किया जाए।
सूचना का अधिकार: किसी भी मरम्मत या बदलाव की पूर्व सूचना बोर्ड पर चस्पा की जानी चाहिए।
स्थानीय सहभागिता: नागरिकों और कलाकारों के साथ मिलकर ‘मेरी झील’ जैसी परियोजनाओं को जीवित रखा जाए।
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