
डॉ. अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम—एक ऐसा नाम, जो न केवल भारत के मिसाइल कार्यक्रम का प्रतीक बना बल्कि उस धर्मनिरपेक्ष, उदार, आध्यात्मिक भारत का भी चेहरा बना, जिसकी कल्पना महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और विवेकानंद ने की थी। वे एक ऐसे वैज्ञानिक, शिक्षक, विचारक और राष्ट्रपति थे, जिन्होंने दुनिया को यह दिखा दिया कि धर्म, आस्था और विज्ञान परस्पर विरोधी नहीं हैं, बल्कि मानवता की सेवा में एक साथ चल सकते हैं।
डॉ. कलाम का जीवन महज मिसाइल प्रौद्योगिकी, रक्षा अनुसंधान या राष्ट्रपति भवन की भव्यता तक सीमित नहीं था। वे अपनी आत्मा के भीतर एक जिज्ञासु साधक भी थे, जिसे न केवल कुरान से बल्कि भगवद गीता, बाइबिल और तमिल संत कवि थिरुवल्लुवर के ग्रंथ ‘थिरुक्कुरल’ से भी प्रकाश मिलता था। वे भारत की इस अद्वितीय परंपरा के जीवंत प्रतीक थे, जिसमें गंगा-जमुनी तहजीब न केवल जुबान तक सीमित है, बल्कि ह्रदय में भी बसी होती है।

कुरान और गीता: दो ग्रंथ, एक साधक
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि डॉ. कलाम के कमरे में जो तीन सबसे महत्वपूर्ण वस्तुएँ होती थीं, वे थीं उनकी वीणा, कुरान और भगवद गीता।
उनके प्रेस सचिव एस.एम. खान ने एक बार बताया था कि राष्ट्रपति भवन के पुस्तकालय में सुबह-सुबह कई बार वे कुरान और गीता दोनों पढ़ते दिखाई देते थे। वह रोज़ फज्र की नमाज़ अदा करते थे, लेकिन इसके तुरंत बाद गीता के श्लोकों का अध्ययन भी करते थे। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही थी, जब वे डीआरडीओ के लैब में काम करते थे, तब भी।
कलाम साहब का मानना था कि “ज्ञान किसी एक धर्म की जागीर नहीं है। कुरान मुझे संयम सिखाता है, गीता मुझे कर्मयोग का पाठ पढ़ाती है। एक मुसलमान होकर गीता पढ़ना मुझे न केवल भारत की आत्मा से जोड़ता है बल्कि मेरी सोच को भी व्यापक बनाता है।”
उन्होंने इस बात को कभी छुपाया नहीं। कई बार सार्वजनिक मंचों से उन्होंने स्वीकार किया कि वह गीता का पाठ करते हैं क्योंकि उसमें वर्णित ‘निष्काम कर्मयोग’ का सिद्धांत वैज्ञानिक सोच के बहुत नज़दीक है। यह भी संभव है कि यही कारण रहा हो कि वे जीवनभर कर्म करते रहे और उसके फल की चिंता कभी नहीं की।
उनका यह दृष्टिकोण दरअसल उस भारत की झलक देता है जो सैकड़ों वर्षों से विविधताओं का देश रहा है। जहाँ एक वैज्ञानिक अपने जीवन को कुरान की आयतों से भी रोशन कर सकता है और भगवद गीता के श्लोकों से भी।

एक मुसलमान, जो गीता का साधक भी था
जब कलाम राष्ट्रपति बने तो कुछ तथाकथित ‘धर्म रक्षक’ समूहों को यह बात पचने में कठिनाई हुई कि एक मुसलमान गीता का पाठ कैसे कर सकता है। कुछ बुद्धिजीवियों ने भी सवाल उठाए। लेकिन कलाम ने न कभी इन आलोचनाओं का प्रतिवाद किया और न इनका महत्व। वे जानते थे कि सत्य आत्मा में होता है, भीड़ की भाषा में नहीं।
कलाम साहब ने एक बार कहा था—
“मेरे लिए गीता कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है। यह जीवन जीने की कला है।”
वे भगवद गीता के विशेष अध्याय ‘कर्मयोग’ से विशेष रूप से प्रभावित थे। इसके श्लोक ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ को वे अपने व्याख्यानों में भी उद्धृत करते थे। यह श्लोक उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण के भी अनुरूप था।
उन्होंने बार-बार इस बात को रेखांकित किया कि एक वैज्ञानिक के लिए धर्म का अर्थ है सत्य की खोज, न कि कर्मकांड। और भगवद गीता इस सत्य की खोज में उनके लिए पथ प्रदर्शक रही।
धर्मनिरपेक्षता की एक अनूठी मिसाल
भारत के राष्ट्रपति रहते हुए डॉ. कलाम का जीवन एक आदर्श बना। वे न केवल एक वैज्ञानिक और विचारक थे बल्कि ऐसे मुसलमान भी जिन्होंने रामायण, महाभारत, गीता, उपनिषदों का भी गहन अध्ययन किया।
उनके सचिव एस.एम. खान ने बताया कि कलाम रोज़ सुबह फजर की नमाज़ के बाद गीता के श्लोक पढ़ते थे और तमिल संत थिरुवल्लुवर की ‘थिरुक्कुरल’ का पाठ भी करते थे। राष्ट्रपति भवन में उनके लिए सादा शाकाहारी भोजन की व्यवस्था रहती थी। न मांस, न अंडा, न मदिरा।
कलाम की धार्मिकता का सबसे बड़ा प्रमाण यह था कि उन्होंने एक बार राष्ट्रपति भवन की इफ्तार पार्टी का सारा बजट 28 अनाथालयों के बच्चों को दे दिया था। इस फैसले से राजनैतिक हलकों में हलचल मच गई थी लेकिन कलाम ने साफ़ कहा—”इफ्तार का मतलब भूखों को खाना खिलाना है, पेट भरे लोगों को नहीं।”
मुस्लिम समाज की आलोचना और कलाम का मौन उत्तर
कलाम के इस दृष्टिकोण को लेकर मुस्लिम समाज के एक हिस्से ने भी उन पर सवाल उठाए। कुछ ने कहा कि वे बीजेपी के ‘पोस्टर बॉय’ बन रहे हैं। लेकिन कलाम ने कभी इसका कोई उत्तर नहीं दिया। उनका एकमात्र उत्तर था—काम।
वे कहते थे—”मैं भारतीय हूँ, मैं मुसलमान हूँ और मैं एक वैज्ञानिक भी हूँ। मेरे भीतर ये तीनों तत्व एक साथ रहते हैं।”
उनके मन में यह कभी द्वंद्व नहीं रहा कि कुरान और गीता एक साथ पढ़ी जाएं या नहीं। उनके लिए यह बिल्कुल सहज था—जैसे किसी पेड़ की दो शाखाएं।
आध्यात्मिक गुरु थिरुवल्लुवर और गीता का साम्य
कलाम ने अपने जीवन में तमिल संत कवि थिरुवल्लुवर के ‘थिरुक्कुरल’ को भी महत्व दिया। इस ग्रंथ में जीवन, नीति, धर्म, प्रेम और मोक्ष के सूत्रों का सुंदर संयोजन है।
कलाम के अनुसार गीता और थिरुक्कुरल दोनों जीवन को कर्तव्य और तपस्या के रूप में देखते हैं। थिरुक्कुरल का श्लोक है—
“कर्म करने के बाद फल की इच्छा मत कर।”
जो कि गीता के कर्मयोग से पूरी तरह मेल खाता है।
यह साम्य कलाम के जीवन दर्शन का हिस्सा बन गया था। वे बार-बार कहते थे—”कोई भी काम छोटा नहीं है, अगर वह ईमानदारी से किया जाए।”
राष्ट्रपति भवन में एक आध्यात्मिक साधक
राष्ट्रपति भवन के भव्य गलियारों में कलाम न तो महंगे कपड़ों के लिए जाने गए, न शाही दावतों के लिए। वे रोज़ सुबह अपनी वीणा बजाते थे, नमाज़ पढ़ते थे और गीता के श्लोक दोहराते थे।
उनका लंच साढ़े चार बजे होता था, डिनर आधी रात के बाद। वे वीणा के स्वरों में खो जाते थे। उनके सचिव पीएम नायर बताते हैं कि जब भी कलाम कुरान और गीता पढ़ते थे तो उनकी आँखों में अलग चमक होती थी।
यह अकारण नहीं था कि राष्ट्रपति भवन में सुरक्षा गार्डों के केबिन में उन्होंने पंखा, हीटर और आरामदायक कुर्सी लगवाने का आदेश दिया था।
क्यों पढ़ी गीता, जब वे मुसलमान थे?
कई बार पत्रकारों ने उनसे पूछा—”आप मुसलमान होते हुए गीता क्यों पढ़ते हैं?”
कलाम मुस्कुराए और बोले—
“क्यों नहीं? ज्ञान तो सीमा नहीं देखता।”
वे इस बात को समझते थे कि भारत के युवा को एक ऐसा नेतृत्व चाहिए जो सिर्फ़ धर्म की बात न करे, बल्कि ज्ञान, विज्ञान और आत्मा की बात करे। वे मानते थे कि गीता का संदेश ‘कर्म करो, फल की चिंता मत करो’ जीवन की हर समस्या का समाधान है।
उनकी किताब ‘इग्नाइटेड माइंड्स’ में उन्होंने लिखा—
“भगवद गीता और कुरान दोनों मुझे एक ही संदेश देते हैं—सेवा।”
सत्य साईं बाबा से मुलाक़ात और विवाद
कलाम एक बार पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा से भी मिलने गए। इस पर वामपंथी बुद्धिजीवी वर्ग ने कड़ी आलोचना की। लेकिन कलाम ने जवाब नहीं दिया। वे कहते थे—”आध्यात्मिकता विज्ञान से ऊपर है, वह ऊर्जा है।”
उनके लिए कुरान, गीता, बाइबिल, थिरुक्कुरल सभी एक ही सत्य की अलग-अलग व्याख्याएँ थीं।
निष्कर्ष : भारत का असली चेहरा
डॉ. कलाम के जीवन से जो सबसे बड़ी सीख मिलती है वह यह है कि भारत की आत्मा धर्मों की दीवारों से नहीं, बल्कि पुलों से बनी है। उन्होंने भारत को दिखाया कि एक मुसलमान वैज्ञानिक गीता पढ़ सकता है, वीणा बजा सकता है, शाकाहारी हो सकता है और राष्ट्रपति भी बन सकता है।
उनका यह कथन इस लेख का सार है—
“मैं एक मुसलमान हूँ। मैं गीता पढ़ता हूँ। मैं भारत माता की संतान हूँ। ये तीनों बातें मेरे भीतर एक साथ जीवित हैं।”
यह वही भारत है, जिसकी कल्पना विवेकानंद ने की थी—जहाँ कुरान और गीता साथ-साथ रखे जा सकते हैं।
समापन : कलाम के शब्दों में एक नई उम्मीद
डॉ. कलाम की मृत्यु 27 जुलाई 2015 को शिलॉन्ग में हुई। वे बच्चों को ‘एक विकसित भारत’ का सपना दिखा रहे थे।
उनके कमरे से वीणा के सुर गूंज रहे थे…
टेबल पर गीता खुली थी…
कुरान की आयतें बगल में थीं…
यह दृश्य अपने-आप में भारत का सबसे सुंदर चित्र बन गया।
उनकी अंतिम इच्छा भी यही थी—”भारत ज्ञान का दीप बने।”
उनका जीवन इस देश के लिए सबसे बड़ा संदेश छोड़ गया है—
“धर्म विभाजन नहीं है। धर्म मिलन है। कुरान और गीता साथ पढ़ी जा सकती हैं। और यह कोई अपराध नहीं, बल्कि भारतीयता का गर्व है।”
About Author
You may also like
-
हिंदुस्तान जिंक ने मलेशिया में भारत का प्रतिनिधित्व किया, दुनिया के सामने टिकाऊ जिंक तकनीकों की मिसाल पेश की
-
ट्रंप ने की इसराइल-ईरान युद्धविराम की घोषणा, ईरान ने कहा- हमले रुके तो जवाबी कार्रवाई नहीं करेंगे
-
ईरान का जवाबी हमला : क़तर और इराक़ में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर दागी गईं मिसाइलें, क़तर में धमाकों की गूंज
-
“किरण हूँ मैं” काव्य संग्रह का भव्य लोकार्पण, साहित्यिक गरिमा का अनुपम संगम
-
रसायन विज्ञान में नवाचार पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ : हरित संश्लेषण और औषधि डिज़ाइन में भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता पर हुआ मंथन