रंगशाला में भूमि नाटक का मंचन,युद्ध प्रेम में अर्जुन ने स्वीकारी हार

महाभारत से भी पूरा नहीं हो सकता भूमि का लालच

उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर की मासिक नाट्य संध्या ‘रंगशाला’ में शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में ‘भूमि’ नाटक का मंचन होगा। कार्यक्रम में समागम रंग मंडल जबलपुर के कलाकारों ने मनोरम प्रस्तुति दी। इस नाटक की पटकथा महाभारत के वन पर्व से ली गई है। 

नाटक भूमि की यह कथा कांगड़ा के महाराज प्रभंजन से शुरू होती हुई चित्रांगदा के जन्म तक पहुंचती है। अर्जुन महाभारत के पूर्व मित्रता यात्रा पर निकले हुए हैं। जो नाग लोक से होते हुए कांगड़ा की भूमि पर पहुंचते हैं। जहां उनकी भेंट चित्रांगदा से होती है।

युद्ध प्रेम में अर्जुन ने स्वीकारी हार

यह भेंट नायक- नायिका की तरह न होकर दो योद्धाओं की तरह होती है। युद्ध प्रेम में अर्जुन आसानी से हार स्वीकार करते हैं। लेकिन प्रेम स्त्री- पुरुष संबंध की केवल शुरुआत है। यह संबंध राजकुमार और राजकुमारी का हो या दो राज परिवारों के बीच में हो तो यह और जटिल हो जाता है। क्योंकि उसमें व्यक्तिगत निर्णय राजनीति से प्रभावित रहते हैं। बहरहाल अर्जुन चित्रांगदा का विवाह होता है। लेकिन महाभारत के चलते अर्जुन अपने घर वापस लौटते हैं बिना चित्रांगदा के। चित्रांगदा अर्जुन के आमंत्रण की प्रतीक्षा में पुत्र को जन्म देती है।

20 साल के बाद हुई अर्जुन की वापसी

अर्जुन की वापसी 20 साल बाद अश्वमेध यज्ञ के घोड़े के साथ होती है। जिसे बभुवाहन पकड़ लेता है और अर्जुन को नहीं पहचानता। फिर तीन योद्धा आमने सामने होते हैं। अर्जुन, चित्रांगदा और उनका पुत्र बभुवाहन। भूमि का विस्तार भूतकाल से लेकर वर्तमान को समेट लेता है। मौन टूटकर सवालों में परिवर्तित होता है। जो केवल अर्जुन से नहीं हर आधुनिक मनुष्य से है। और नाटक स्त्री- पुरुष संबंधों से होकर संपूर्ण मानव जाति को छूकर भूमि पर आकर समाप्त होता है। जिसका निर्णय भविष्य की पीढ़ी पर है। नाटक में जहां चित्रांगदा संपूर्ण नारी जाति का प्रतिनिधित्व करती हैं। वहीं अर्जुन पूरी नर जाति का। नाटक का सार यह है कि भू स्वामी बनने की इच्छा हर मनुष्य की होती है। वह जीवन भर इस प्रयास में रहता है। और जब यह लालच में बदल जाती है, तब महाभारत भी उसे पूरा नहीं कर पाती। इतने युद्ध से होकर भी मनुष्य आज भूमि के वर्चस्व के लिए लड़ा रहा है। ऐसा क्या है कि आदमी ने इतिहास से कुछ नहीं सीखा। यही खोज हमें मिथकों तक ले जाती है।

 नाटक में चित्रांगदा की भूमिका में स्वाति दुबे और अर्जुन की भूमिका में हर्षित सिंह ने तथा बभुवाहन की भूमिका में अंकित कुमार ने बेजोड़ अभिनय किया। नाटक में शिवांजलि गजभिये, साक्षी दुबे, मानसी रावत, अंकित कुमार, आयुषी राव, साक्षी गुप्ता, अर्पित खटीक, शिवाकर सप्रे, उत्सव हंडे, विधान कटारे, मानसी रावत, शिवम बावरिया, वंदित सेठी, अर्पित सटीक, हर्षित गुप्ता, नमन सेन, आयुषी राव ने सहायक कलाकारों की भूमिका अदा की।

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