Royal news : परंपरा का शाही अंदाज-: भंवर हरितराज सिंह मेवाड़ ने अश्व पूजन की रस्म अदा की, तो ऐसा लगा जैसे वक्त की गर्दिशें ठहर गईं, मेवाड़ का शौर्य आंखों के सामने ज़िंदा हुआ

उदयपुर। शारदीय नवरात्रि की पावन बेला पर मेवाड़ के रियासतदारों की पुरानी और नायाब परंपराओं का शुक्रवार को एक और अध्याय लिखा गया, जब सिटी पैलेस के दरबार में भंवर हरितराज सिंह मेवाड़ ने अश्व पूजन की रस्म को शाही शान-ओ-शौकत के साथ पूरा किया। मेवाड़ी तहज़ीब और रिवायतों की रोशनी में डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के सुपुत्र भंवर हरितराज सिंह ने राजमहल के मोती चौक में, सज-धज कर आए अश्वों का विधि-विधान से पूजन किया।

इस पुरसुकून मौके पर अश्वों को पूरी अकीदत और शान के साथ पारंपरिक तौर-तरीकों से सजाया गया—मुख पर चमकते आभूषण, सुनहरी लगाम, कंठी, और चमचमाते चवर के साथ। पुरोहितों और पंडितों के मंत्रोच्चारण से माहौल में रूहानी रंग घुल गए। भंवर हरितराज सिंह ने नाज-ओ-नज़ाकत से अश्वों पर अक्षत, कुंकुम, और फूलों का चढ़ावा पेश किया, जबकि उन्हें ज्वारों का हार पहनाया गया और आहार भेंट किया गया।

अश्व पूजन की तहज़ीब और ऐतिहासिक एहमियत
मेवाड़ के गौरवमयी इतिहास में अश्वों का किरदार हमेशा से खास रहा है। सदियों पुरानी यह परंपरा, जिसे सूर्यवंश के वीर योद्धाओं ने जिंदा रखा, न सिर्फ शौर्य का प्रतीक है, बल्कि वफादारी और हिम्मत का भी। हर नवरात्रि की नवमी को, जब आसमान में देवी का आशीर्वाद बरसता है, राजमहल के आँगन में अश्वों का पूजन किया जाता है। यह न केवल एक रस्म है, बल्कि मेवाड़ के बहादुरों की उस विरासत का ज़िंदा सबूत है, जहां अश्व सिर्फ सवारी नहीं, बल्कि जंग के मैदान में बेशुमार हिम्मत का साथी हुआ करते थे।

सातानवारी पायगा की शान


सातानवारी पायगा का ज़िक्र आते ही मेवाड़ की पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं। ये सात और नौ खानों वाला पायगा, महाराणा करण सिंह जी (शासनकाल 1620-1628) के दौर की देन है। पायगा में मौजूद ये मारवाड़ी नस्ल के घोड़े न केवल राजघराने की शान-ओ-शौकत का हिस्सा हैं, बल्कि मेवाड़ की जंगी फतहों का भी एक अहम हिस्सा रहे हैं। वक्त के साथ-साथ इस अस्तबल में बदलाव आए, लेकिन आज भी इसकी मेहराबें और दीवारें उस दौर की शहादत की गवाह हैं, जब राजसी अश्व अपनी हिम्मत और चाल से दुश्मनों के हौंसले पस्त कर देते थे।

आज, जब भंवर हरितराज सिंह ने अश्व पूजन की रस्म अदा की, तो ऐसा महसूस हुआ जैसे वक्त की गर्दिशें ठहर गईं हों और मेवाड़ का शौर्य एक बार फिर से आंखों के सामने ज़िंदा हो गया हो। यह न सिर्फ एक परंपरा का निर्वहन था, बल्कि मेवाड़ की उस शाही विरासत का ऐलान था, जो हर दौर में अमर रहेगी।

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