
सामाजिक चेतना से लेकर सत्ता की शिखर यात्रा तक, एक ऐसे पुरुषार्थी राजनेता की गाथा, जिसने विचारधारा को यथार्थ में बदलने की मिसाल कायम की
भारत के गृहमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष श्री अमित अनिलचंद्र शाह—एक ऐसा नाम, जो केवल राजनीतिक चर्चाओं में ही नहीं, बल्कि रणनीति, संगठन और सिद्धांत-प्रवण नेतृत्व के पर्याय के रूप में भी स्थापित हो चुका है। उनका जीवन एक ऐसे छात्र से शुरू होता है, जो वानप्रस्थ जैसे संयमित मूल्यों में पला-बढ़ा, और एक ऐसे राष्ट्रनायक में परिवर्तित होता है, जिसने भारतीय राजनीति की धारा ही बदल दी।
मूल में संस्कार: पारिवारिक विरासत और आरंभिक शिक्षा
22 अक्तूबर 1964 को मुंबई के एक गुजराती वैश्य परिवार में जन्मे अमित शाह का आरंभिक जीवन गुजरात के मानसा गाँव में बीता। उनके पिता अनिलचंद्र शाह एक व्यवसायी थे और माता कुसुमबेन गांधीवादी विचारधारा की प्रबल अनुयायी। शाह की प्रारंभिक शिक्षा शास्त्रों, इतिहास और महाकाव्यों के अध्ययन से संपन्न हुई, जिसने उनके व्यक्तित्व की बुनियाद तैयार की।
गुजरात विश्वविद्यालय से उन्होंने बायोकेमिस्ट्री में स्नातक किया, किंतु जीवन की प्रयोगशाला उन्हें राजनीति की ओर खींच लाई। राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और श्री गुरुदत्त विद्यार्थी जैसे चिंतकों के साहित्य ने उन्हें न केवल वैचारिक गहराई दी, बल्कि राष्ट्र के प्रति समर्पण भी सिखाया।
संघ से संघटन तक: राजनीतिक यज्ञ की शुरुआत
16 वर्ष की आयु में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े। यहीं से विचारधारा, अनुशासन और राष्ट्रनिष्ठा के बीज अंकुरित हुए। 1982 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और 1987 में भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चा का हिस्सा बने।
संगठन के प्रति समर्पण, चुनाव प्रबंधन में निपुणता और हर कार्य को सूक्ष्मता से करने की उनकी प्रवृत्ति ने उन्हें शीघ्र ही राज्य की राजनीति में पहचान दिलाई। अहमदाबाद नगर सचिव से लेकर प्रदेश महामंत्री तक की यात्रा उन्होंने कुछ ही वर्षों में पूरी की।
सहकारिता का पुनर्जागरण और वित्तीय चमत्कार
2000 में जब ADCB (अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक) घाटे में था, अमित शाह ने उसका कार्यभार संभाला और मात्र एक वर्ष में बैंक को लाभ में पहुंचा दिया। सहकारिता क्षेत्र में यह उनकी पहली प्रयोगशाला थी, जिसमें उन्होंने सिद्ध किया कि राजनीति केवल भाषण नहीं, समाधान भी है।
गुजरात से केंद्र तक: संगठन से सत्ता की ओर
2002 में जब गुजरात में भाजपा की सत्ता लौटी, तब अमित शाह को गृह, विधि, परिवहन और संसदीय कार्य जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय मिले। सरखेज से लगातार चुनाव जीतते हुए वे राज्य में कानून-व्यवस्था और पुलिस सुधारों के जनक बने।
2009 में उन्होंने नारायणपुर वार्ड से चुनाव लड़ा और भाजपा की पराजय के बावजूद वे प्रचंड मतों से विजयी हुए। यह इस बात का प्रमाण था कि जनता उनकी संगठनात्मक दक्षता और नीति-निर्णयों पर विश्वास करती है।
राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश और ऐतिहासिक विजय
2013 में उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया और 2014 में उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रभारी। केवल 2 सीटों वाली भाजपा को 73 सीटें दिलाकर उन्होंने संगठन क्षमता की पराकाष्ठा सिद्ध की। परिणामस्वरूप, 9 जुलाई 2014 को वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।
उनके नेतृत्व में पार्टी ने न केवल सदस्यता में विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनने का गौरव पाया, बल्कि महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, जम्मू-कश्मीर और असम जैसे राज्यों में भी विजय प्राप्त की।
गृहमंत्री के रूप में निर्णायक नेतृत्व
2019 में गांधीनगर से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्हें भारत का गृह मंत्रालय सौंपा गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने कई ऐतिहासिक निर्णय लिए:
अनुच्छेद 370 का उन्मूलन — दशकों पुरानी समस्या का समाधान।
नागरिकता संशोधन अधिनियम — उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को मानवीय आधार पर शरण।
वामपंथी उग्रवाद के विरुद्ध कठोर नीति — आंतरिक सुरक्षा में निर्णायक बदलाव।
बोडो समझौता और ब्रू-रियांग समस्या का समाधान — उत्तर-पूर्व में स्थायित्व की दिशा में कदम।
सहकारिता मंत्रालय: ग्राम विकास की नींव
2021 में सहकारिता मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार मिलने के बाद उन्होंने इसे ‘ग्राम विकास का आधार’ घोषित किया। सहकारिता को पंचायती राज के समकक्ष लाकर उन्होंने किसानों, ग्रामीण उद्योगों और स्थानीय स्वशासन को आत्मनिर्भरता की नई दिशा दी।
वैयक्तिकता और वैचारिक दृढ़ता
शाह का जीवन सरल है, किंतु चिंतन गूढ़। वे साहिर लुधियानवी की शायरी के प्रेमी हैं, तो साथ ही आचार्य चाणक्य के सिद्धांतों में विश्वास रखते हैं। वे शतरंज के अच्छे खिलाड़ी हैं और जीवन की रणनीति भी उन्हीं चालों में बुनते हैं। उन्हें पठन-पाठन, इतिहास, दार्शनिक ग्रंथों और भारतीय संस्कृति से गहरा जुड़ाव है।
निष्कर्ष: एक नेतृत्व, जो विचारधारा से व्यवहार तक पूर्ण है
अमित शाह केवल एक राजनेता नहीं हैं, वे एक संस्था हैं—जो विचार से व्यावहारिकता, संगठन से शासन, और नीति से परिणाम तक की यात्रा को समग्रता में साधते हैं। उनकी कार्यशैली हमें यह सिखाती है कि राजनीति केवल वादों की नहीं, परिणामों की भी होती है।
उनका जीवन एक सतत प्रेरणा है—उनके लिए जो सत्ता को सेवा का माध्यम मानते हैं, और उनके लिए भी जो विचार को यथार्थ में बदलने का स्वप्न देखते हैं।
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