उदयपुर। शिव, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं, और उनकी प्रतिमाओं का पूजन देशभर में श्रद्धालुओं द्वारा किया जाता है। शिव की प्रतिमा न केवल एक धार्मिक प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। ऐसी स्थिति में, शिव प्रतिमा से जुड़े किसी भी विवाद में श्रद्धालुओं की भावनाओं का ध्यान रखना आवश्यक है।
विवाद की जड़ में प्रतिमा की स्थापना या उसके स्वरूप से संबंधित मुद्दे हो सकते हैं। कई बार, प्रतिमा की ऊंचाई, स्वरूप, या स्थान को लेकर लोगों के बीच असहमति पैदा हो जाती है। ये असहमति अक्सर स्थानीय धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित होती है, और इसे हल करने के लिए संवाद और समझ की आवश्यकता होती है।
दरअसल हालही मिराज समूह द्वारा निर्मित राजसमंद के नाथद्वारा शहर में 120 फीट रोड़ स्थित विश्व की सबसे ऊंची 369 फीट शिव प्रतिमा का मुद्दा विधानसभा और लोकसभा में वहां के विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ और लोकसभा में उनकी सांसद पत्नी महिमा कुमारी ने उठाया। यह मामला शिव प्रतिमा के अंदर जूते चप्पल पहनकर जाने और आस्था को लेकर उठाया गया। इसके बाद शिव प्रतिमा के व्यवसायीकरण को लेकर भी सवाल उठे।
जब विवाद गहराया तो मिराज समूह के मुखिया एवं तत पदम् उपवन के ट्रस्टी मदन पालीवाल ने तमाम मीडिया के सामने अपना पक्ष रखा, लेकिन उन्होंने जनप्रतनिधियों ने कोई कॉमेंट नहीं किया। हालांकि उन्होंने बिना नाम लिए निशाना साधा।
पालीवाल ने कहा कि यह ट्रस्ट व्यवसायिक नहीं है। इस प्रतिमा से 600 नन्दी जो कटने के लिए जाते है उनको बचाकर उनकी देखभाल की जाती है। गायों को पाला जाता है पक्षियों को दाना डाला जाता है इससे एक अन्न क्षेत्र चलता है जहां रोज के करीब एक हजार लोग नि:शुल्क भोजन करते है।
पालीवाल ने कहा कि विश्वास स्वरूपम के बनने के बाद रोजगार के अवसर के साथ स्थानीय व्यापार में भी बढ़ोतरी हुई है। विश्वास स्वरूपम में जूते चप्पल तो दूर की बात कोई भी मोजे पहनकर भी अंदर नहीं जाने देते है, इन सब बातों का शुरू से ही विशेष ध्यान रखा जाता है।
मीडिया वालों के सामने उन लोगों को भी लाया गया जो वहां नौकरी कर रहे हैं अपना जीवन चला रहे हैं। पालीवाल ने अस्पताल में आईसीयू निर्माण करवाने की बात कही और कहा कि वहां एक डॉक्टर तो लगवा दीजिए।
बहरहाल शिव प्रतिमा पर विवाद से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक प्रतीकों के प्रति हमारी आस्था और मान्यताएँ बहुत गहरी हैं। ऐसे में, हमें अपने धर्म और आस्था के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिए। सहिष्णुता, संवाद, और समझदारी से ही हम ऐसे विवादों का समाधान निकाल सकते हैं, जिससे समाज में शांति और सद्भाव बना रहे।
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