सौरभ की सुरमयी गायकी और कृष्नेन्दु की ओडिसी ने बांधा समां


जवाहर कला केंद्र में सुर और ताल महोत्सव का दूसरा दिन

जयपुर, 7 सितंबर। जवाहर कला केंद्र के सुरमयी आंगन में सुर और ताल महोत्सव के दूसरे दिन ने संगीत और नृत्य प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, और डेल्फीक काउन्सिल ऑफ राजस्थान के संयुक्त प्रयासों से आयोजित इस महोत्सव की दूसरी संध्या में सौरभ वशिष्ठ की कर्णप्रिय शास्त्रीय गायकी और कृष्नेन्दु शाह के ओडिसी नृत्य ने दर्शकों के हृदयों को झंकृत किया।

सुबह के सत्र में, प्रसिद्ध फोटोग्राफर शिरीष कराले ने फोटोग्राफी की बारीकियों से विद्यार्थियों को परिचित कराया। इसमें स्टूडेंट्स को प्रोडक्ट फोटोग्राफी, लाइटिंग तकनीक, और पोट्रेट फोटोग्राफी का गहन ज्ञान मिला, जो महोत्सव के सांस्कृतिक रंग में एक अलग ही आयाम जोड़ता है।

शाम को रंगायन सभागार संगीत और नृत्य की अद्भुत समरसता से सराबोर हो गया। पंडित कुंदनमल शर्मा के शिष्य और युवा शास्त्रीय गायक सौरभ वशिष्ठ ने अपनी सुरमयी गायकी से संध्या को शास्त्रीय संगीत की गहराइयों में डुबो दिया। उन्होंने राग हंसध्वनि में विलम्बित बंदिश “विघ्न हरण गज वंदन गजानन” और द्रुत रचना “लागी लगन सखी पति सन” को अत्यंत मनभावन शैली में प्रस्तुत किया। सौरभ की आवाज़ में रागदारी, आलाप, और तानों का सजीव संयोग सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। उनके साथ तानपुरे पर अजय कुमार, तबले पर मल्हार मुखर्जी, और हारमोनियम पर गजेंद्र डांगी ने सधी हुई संगत कर महफिल को और भी रंगीन बना दिया।

दूसरी प्रस्तुति में ओडिसी के उभरते नृतक कृष्नेन्दु शाह और उनके समूह ने अपनी अनोखी नृत्य शैलियों से दर्शकों को रोमांचित किया। गणेश वंदना के रूप में प्रस्तुत मंगलाचरण और राग झिझोटी में कृष्ण और भक्त के प्रेम का चित्रण इतना जीवंत था कि हर भाव, हर मुद्राओं में संगीत और भक्ति का स्वरूप झलकने लगा। इस प्रस्तुति में सृष्टि पांडे, शिविका माथुर, केतिकी मुंद्रा, रुद्राक्षी चतुर्वेदी, सिथू, और भोलाक्षिका ने अपनी लयबद्ध संगत से नृत्य के हर क्षण को आनंदमयी बना दिया।

यह संध्या सुर और ताल के अद्वितीय संगम का एक ऐसा सजीव प्रमाण बन गई, जिसमें संगीत और नृत्य का हर आलाप और हर ताल दर्शकों के दिलों में गूंजता रहा।

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