उदयपुर। वर्ल्ड हेबिटेट डे की पूर्व संध्या पर उदयपुर में “सहभागिता से सुखद शहरी विकास” विषयक परिचर्चा आयोजित की गई। इस परिचर्चा में शहर के अनियंत्रित शहरीकरण और उससे उत्पन्न समस्याओं पर गंभीर चर्चा हुई। आयोजन स्थल, पिछोला झील पेटे में बनी रिंगरोड, जहां कचरा और मृत जानवरों की दुर्गंध फैली थी, ने उदयपुर के प्रदूषण और अव्यवस्था की स्थिति को बखूबी उजागर किया।
परिचर्चा के दौरान कई स्थानीय नागरिकों ने दूषित पेयजल आपूर्ति और स्वच्छता की कमी के चलते फैलने वाले हेपेटाइटिस, मलेरिया, पीलिया और डेंगू जैसी बीमारियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया।
विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ. अनिल मेहता ने कहा कि “प्रत्येक नागरिक को स्वच्छ पर्यावरण, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ नाली और स्वच्छ सड़कें प्रदान करना किसी भी स्मार्ट सिटी की मूलभूत आवश्यकता होनी चाहिए। हालांकि, वास्तविकता यह है कि शहर के सतही जल और भूजल दोनों प्रदूषित हो रहे हैं। सड़कों और नालियों में कचरा विसर्जन से पर्यावरणीय संकट गहरा रहा है। अगर नागरिक और प्रशासन अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाएं, तो इस स्थिति को सुधारा जा सकता है।”
झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने शहर के भीतरी इलाकों में मटमैले और दूषित पेयजल की आपूर्ति पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, “बढ़ते टूरिज्म के साथ शहर में वाहनों का शोर, जहरीला धुआं और गंदगी भी बढ़ गई है, जिससे स्थानीय निवासियों की परेशानियां बढ़ रही हैं। इस स्थिति में उदयपुर को स्मार्ट सिटी कहना कितना उचित है?”
गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने शहरी विकास के नाम पर झील के किनारे बनी रिंगरोड की आलोचना की। उन्होंने कहा कि “यह मार्ग अब कचरा और शौच विसर्जन का केंद्र बन चुका है, जो पिछोला झील के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। पेयजल की गुणवत्ता बिगड़ती जा रही है, जिसे तुरंत रोके जाने की जरूरत है।”
युवा पर्यावरणविद कुशल रावल ने कहा कि इस साल विश्व हेबिटेट दिवस का थीम “युवाओं की सहभागिता से बेहतर शहरी भविष्य” पर केंद्रित है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे अनियंत्रित शहरी विकास को रोकने और स्वच्छ एवं सुंदर शहर बनाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं।
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