
उदयपुर। उदयपुर के पूर्व राजपरिवार में धूणी दर्शन को लेकर चला आ रहा गतिरोध बुधवार शाम को खत्म हो गया। 40 वर्षों बाद, पूर्व राजपरिवार के सदस्य विश्वराज सिंह मेवाड़ ने सिटी पैलेस स्थित ऐतिहासिक धूणी के दर्शन किए, जिससे यह विवाद थमता नजर आ रहा है। विश्वराज सिंह मेवाड़ ने दर्शन के बाद कहा कि धूणी दर्शन करना मेरा सामाजिक व कानूनी अधिकार है। वहीं दूसरे पक्ष की ओर से लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने कहा कि कानून की प्रक्रिया व व्यवस्था के साथ सबकुछ चीजें होती है, लेकिन घमंड के घोड़े पर सवार होकर कोई काम नहीं किया जा सकता है।
धूणी, जो साधु प्रयागगिरि महाराज की तपस्या का स्थान
धूणी, जो साधु प्रयागगिरि महाराज की तपस्या का स्थान मानी जाती है, मेवाड़ की गहरी परंपरा और आस्था से जुड़ी है। यह वही धूणी है जहां से राजपरिवार के हर नए शासक की धार्मिक और सांस्कृतिक यात्रा शुरू होती है। इतिहास में दर्ज है कि महाराणा प्रताप के समय से यह परंपरा चली आ रही है, जिसमें हर नए राजा को राजतिलक के बाद सबसे पहले धूणी के दर्शन करने होते हैं।
सालों से यह परंपरा निभाई जाती रही, लेकिन हालिया विवाद ने सिटी पैलेस में इस ऐतिहासिक धूणी को लेकर मतभेदों को जन्म दिया। विश्वराज सिंह मेवाड़ के इस कदम से धूणी दर्शन की परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास हुआ है।
मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप से सुलझा मामला
यह घटनाक्रम तब संभव हो पाया, जब मुख्यमंत्री के एक संदेश ने प्रशासन और राजपरिवार के बीच संवाद स्थापित किया। जिला कलेक्टर अरविंद पोसवाल ने बताया कि मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद ही विश्वराज सिंह को सिटी पैलेस स्थित धूणी के दर्शन करवाने का निर्णय लिया गया। इस पूरे घटनाक्रम में कलेक्टर अरविंद पोसवाल ने अपनी प्रशासनिक क्षमताओं का परिचय दिया और उदयपुर में कानून व्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका अदा की।
इसके बाद, विश्वराज सिंह ने समर्थकों के साथ धूणी पर धोक लगाई और परंपरा का निर्वहन किया। यह ऐतिहासिक क्षण उदयपुर की परंपरा और आस्था के पुनर्स्थापन का प्रतीक बना।
परंपरा, विवाद और प्रशासनिक उदासीनता
हालांकि, विश्वराज सिंह ने प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “धूणी पर जाना मेरा सामाजिक और कानूनी अधिकार है। यहां हजारों लोग आते हैं, तो मेरे जाने से किसे परेशानी हो सकती है?” उनका यह बयान प्रशासन की ढिलाई और समय पर कार्रवाई न करने को लेकर तीखी आलोचना करता है।
इस घटना ने न केवल राजपरिवार के भीतर विवाद को सुलझाया, बल्कि मेवाड़ की ऐतिहासिक परंपरा को फिर से जीवित किया। विश्वराज सिंह के धूणी दर्शन के बाद उनका एकलिंगजी मंदिर में जाना और शोक भंग की रस्मों का पूरा होना परंपरा के पुनर्जागरण की ओर इशारा करता है।
धूणी का ऐतिहासिक महत्व
धूणी का इतिहास महाराणा प्रताप के समय से जुड़ा है। यह स्थान मेवाड़ के राजाओं की शक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। सिटी पैलेस के इस पवित्र स्थान ने न केवल राजाओं के लिए, बल्कि आम जनता के लिए भी एक धार्मिक केंद्र के रूप में भूमिका निभाई है।
धूणी दर्शन और राजपरिवार के विवाद ने यह साबित कर दिया कि इतिहास और परंपरा, चाहे कितनी भी पुरानी क्यों न हों, उन्हें पुनर्जीवित करना और संरक्षित करना समाज और प्रशासन दोनों की जिम्मेदारी है।
उदयपुर की जनता और इतिहास प्रेमियों के लिए यह घटनाक्रम एक उदाहरण है कि जब परंपरा और आस्था पर विवाद होता है, तो इतिहास की गहराई में जाकर समाधान खोजा जा सकता है।
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