उदयपुर में “लूट की योजना” का अनोखा इलाज : पहले कोर्ट बुलाया, फिर अस्पताल पहुंचाया!
उदयपुर/खेरवाड़ा। कहते हैं पुलिस जनता की रक्षक होती है… लेकिन कभी-कभी ये रक्षक इतने ‘एक्टिव’ हो जाते हैं कि पहले आरोपितों की नस-नस दुरुस्त कर देते हैं और फिर उन्हें खुद ही अस्पताल में भर्ती करवा देते हैं—बिल्कुल वैसा ही मामला खेरवाड़ा में सामने आया, जहां पुलिस पर एक युवक को पहले “गिरफ्तार” और फिर “अस्पताल में दाखिल” कराने का दोहरा उपकार करने का आरोप लगा है।
बंजारिया गांव की लीलादेवी के लिए 17 अप्रैल कोई आम दिन नहीं था। उनके इकलौते बेटे अभिषेक मीणा को पुलिस उठा ले गई, न वॉरंट दिखाया, न सूचना दी—सीधा थाने, और फिर… सीधा अस्पताल। शायद अब पुलिस गिरफ्तारी के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा भी देने लगी है!
लीलादेवी बताती हैं कि पहले पुलिस ने फोन कर कहा, “कोर्ट में पेशी है, जल्दी आओ।” जब मां उदयपुर कोर्ट पहुंचने लगी, तभी दोबारा फोन आया—“कोर्ट छोड़िए, सीधे अस्पताल आइए, बेटा इमरजेंसी में है।” ऐसा लगा जैसे अदालत और अस्पताल में अब कोई खास फर्क नहीं बचा।
अस्पताल पहुंची मां ने जो देखा, वह किसी हॉरर फिल्म से कम नहीं था—बेटे के पैरों और कान से खून, गले में सूजन, हाथ सूजा हुआ और पूरे शरीर पर नील के निशान। पुलिस कहती है, “नशा किया था।” मां कहती हैं, “मेरा बेटा दूध पीकर सोता है, ये सब झूठ है।”
थानाधिकारी महोदय ने भी कमाल की दलील दी—“लूट की योजना बना रहा था, तभी पकड़ा। तबीयत मस्तिष्क बुखार के कारण बिगड़ गई।” अब कोई पूछे, बुखार था तो लूट की योजना कौन बना रहा था? या फिर पुलिस की मौजूदगी में बुखार और भी तेज हो गया?
लीलादेवी जो रोडवेज की चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं, कहती हैं, “बेटा कोई आतंकवादी नहीं, ना ही किसी की जान ली है। पर इस सिस्टम ने उसकी हालत ऐसी कर दी जैसे उसने संसद पर हमला कर दिया हो।”
अब सवाल यह है कि क्या हर “लूट की योजना” पर ऐसी ही “इलाज योजना” चलाई जाएगी? और क्या अदालत से पहले पुलिस थाने और फिर अस्पताल ही न्याय का नया रास्ता बनता जा रहा है?
जनता पूछ रही है, मगर जवाब देने वाला कोई नहीं। बेटा अब भी अस्पताल में है, और सिस्टम… वही पुराना सिस्टम है—बोलता कम है, करता ज़्यादा है… अक्सर कुछ ज़्यादा ही।
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