मधुबनी से भारत का संदेश : आतंकियों को मिट्टी में मिलाने का वक्त आ गया, पाक पर अबकी बार पानी से वार, कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी

मधुबनी। 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश की आत्मा को झकझोर कर रख दिया। इस हमले में विभिन्न राज्यों के निर्दोष नागरिकों की हत्या ने समूचे भारत को एक सूत्र में पिरो दिया। इस घटना के महज कुछ ही घंटों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के मधुबनी पहुंचे, जहां उन्होंने न सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ देश की प्रतिबद्धता को दोहराया, बल्कि पंचायती राज दिवस के अवसर पर गांवों के विकास की नई तस्वीर भी सामने रखी। मधुबनी की धरती पर दिया गया यह भाषण सिर्फ एक बयान नहीं था, यह भारत की बदलती सोच और उसकी निर्णायक कार्रवाई का ऐलान था।

पहलगाम हमले पर भावुकता और सख़्ती का समन्वय

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत ही श्रद्धांजलि के साथ की। वे बोले—“22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मासूम लोगों को जिस बेरहमी से मारा गया, उसने पूरे देश को व्यथित कर दिया है। इनमें से कोई बंगाल का था, कोई कर्नाटक से था, कोई गुजराती था, और कोई बिहार का लाल। यह दर्द सिर्फ एक राज्य का नहीं, बल्कि भारत माता के हर सपूत का है।”

फिर उन्होंने मंच से आह्वान किया— “जहां हैं, वहीं खड़े न हों, बैठे रहकर ही उन शहीदों को श्रद्धांजलि दें।”

यह दृश्य न सिर्फ संवेदना से भरा था, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक नेतृत्व की वह संवेदनशीलता भी दिखाता है जो हर वर्ग के दर्द को साझा करता है।

आतंकियों को चेतावनी : मिट्टी में मिलाने का वक्त

फिर स्वर तीव्र हुआ। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा— “पहलगाम के दोषियों को मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है। आतंकियों को कल्पना से भी बड़ी सजा मिलकर रहेगी।”

अंतरराष्ट्रीय मंच की भाषा को अपनाते हुए उन्होंने अंग्रेज़ी में कहा—
“We will chase them to the last ends of the Earth. The soul of India will never be broken. Terrorism will be punished.”

यह संदेश सिर्फ देश के नागरिकों के लिए नहीं था, बल्कि पूरी दुनिया को यह बताने के लिए था कि भारत अब सिर्फ शोक नहीं करेगा, बल्कि कार्रवाई करेगा। यह वह बदला हुआ भारत है, जो आँसू नहीं बहाता, जवाब देता है।

मानवता के पक्ष में वैश्विक एकता

प्रधानमंत्री ने इस मौके पर उन सभी देशों और नेताओं का भी आभार जताया जिन्होंने इस संकट की घड़ी में भारत का साथ दिया। यह वैश्विक समर्थन दर्शाता है कि आतंक के खिलाफ भारत की लड़ाई अब सिर्फ राष्ट्रीय नहीं रही, यह मानवता की लड़ाई बन गई है।

गांवों के उत्थान का महायज्ञ: पंचायती राज से विकास का संकल्प

यह दिन सिर्फ दुख और आक्रोश का नहीं था, बल्कि विकास की घोषणा का भी था। पंचायती राज दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने मधुबनी की धरती से हजारों करोड़ के विकास प्रोजेक्ट का उद्घाटन और शिलान्यास किया।

उन्होंने कहा— “जब तक गांव का विकास नहीं होगा, तब तक भारत का विकास अधूरा रहेगा।”

रामधारी सिंह दिनकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे बापू की सोच आज की नीतियों में जीवित है। डिजिटल इंडिया से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं तक, गांवों को अब किसी शहर की तरह अधिकार मिल रहे हैं।

डिजिटल क्रांति गांवों तक: इंटरनेट और सर्विस सेंटर का विस्तार

पीएम मोदी ने बताया कि अब तक 2 लाख से ज्यादा पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ा गया है, और 5.5 लाख से अधिक कॉमन सर्विस सेंटर बन चुके हैं। इससे अब प्रमाण-पत्र, दस्तावेज और सरकारी योजनाओं का लाभ घर बैठे मिलने लगा है।

महिलाओं की भागीदारी: जीविका दीदी से संसद तक की यात्रा

प्रधानमंत्री ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाए गए कदमों का जिक्र करते हुए कहा:

  • बिहार पहला राज्य था जिसने पंचायतों में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया।
  • जीविका दीदियों को 1000 करोड़ रुपये की सहायता दी गई।
  • 35% आरक्षण लोकसभा-विधानसभा में महिलाओं के लिए सुनिश्चित किया गया।

इन कदमों से गांव की महिलाएं सिर्फ ‘रसोई’ तक नहीं, ‘राजनीति’ तक पहुंच रही हैं।

PM आवास योजना: हर गरीब के सिर पर छत

प्रधानमंत्री ने बताया कि अब तक 4 करोड़ से ज्यादा पक्के घर बन चुके हैं। सिर्फ बिहार में 57 लाख घर गरीबों को दिए गए हैं। उन्होंने घोषणा की कि आने वाले दिनों में 3 करोड़ नए घर दिए जाएंगे।

सिर्फ घर नहीं, साथ में गृह प्रवेश का उत्सव भी था—बिहार के 1.5 लाख परिवार उसी दिन अपने पक्के घर में गृह प्रवेश कर चुके थे।

जल-विद्युत-रसोई की क्रांति

  • 12 करोड़ परिवारों को पहली बार नल से जल
  • 2.5 करोड़ को पहली बार बिजली
  • उज्ज्वला योजना से करोड़ों महिलाओं को गैस कनेक्शन।

ये सब योजनाएं दिखाती हैं कि भारत की विकास गाथा अब सिर्फ कागज़ों तक सीमित नहीं, ज़मीनी हकीकत बन चुकी है।

स्वास्थ्य सेवाओं में बदलाव: गांवों में भी आधुनिक चिकित्सा

प्रधानमंत्री ने बताया कि देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या दोगुनी हो चुकी है। बिहार में भी 800 जन औषधि केंद्र बन चुके हैं। आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीबों को मुफ्त इलाज मिल रहा है।

बाढ़ नियंत्रण और कृषि विकास

कोसी-बूढ़ी गंडक जैसे क्षेत्र दशकों से बाढ़ से त्रस्त हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि अब 11,000 करोड़ रुपये खर्च कर वहां बांध और सिंचाई प्रोजेक्ट शुरू होंगे। इसका सीधा लाभ किसानों को मिलेगा।

मखाने को GI टैग और मिथिला की अर्थव्यवस्था

मिथिला के ‘मखाना’ को GI टैग देकर उसे एक वैश्विक पहचान दी गई है। अब मखाना बोर्ड से न सिर्फ किसान, बल्कि मिथिला की आर्थिक रीढ़ मजबूत होगी।

नीतीश कुमार का समर्थन और आत्मस्वीकृति

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी मंच से आतंकवाद की कड़ी निंदा की और प्रधानमंत्री के कार्यों की सराहना की। साथ ही अपनी राजनीतिक भूल को स्वीकार करते हुए कहा— “बीच में गड़बड़ कर दी थी, अब नहीं करेंगे।”

यह बयान एक राजनीतिक परिपक्वता का संकेत था, जहां सत्ता के लिए नहीं, संकल्प के लिए गठबंधन होता है।

निष्कर्ष: एक साथ खड़ा भारत, विकास और सुरक्षा के संकल्प के साथ

मधुबनी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह संदेश सिर्फ एक भाषण नहीं, बल्कि भारत के भविष्य का रोडमैप था। एक तरफ सुरक्षा की गारंटी, दूसरी तरफ विकास की झलक। एक ओर आतंक के खिलाफ निर्णायक सख्ती, दूसरी तरफ गांव की बेटी को पंचायत और संसद तक पहुंचाने का वादा।

मधुबनी की मिट्टी से निकला यह स्वर अब देश के हर कोने में गूंज रहा है:
भारत डरेगा नहीं, लड़ेगा भी और जीतेगा भी।”

 

एकता में शक्ति: पहलगाम की घटना ने भारत को एक सूत्र में पिरोया
प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य कि—“मरने वाले किसी एक राज्य के नहीं, पूरे भारत के हैं”, दरअसल भारतीय गणतंत्र की वह भावना है जिसे अक्सर राजनीतिक सीमाएं बांध देती हैं, लेकिन संकट के समय वही सीमाएं टूट जाती हैं। पहलगाम हमला एक तरह से देश के हर नागरिक को झकझोरने वाला हमला था।

यह हमला सिर्फ सुरक्षा की चूक नहीं था, बल्कि भारत की सामाजिक समरसता पर भी एक हमला था। मोदी का यह भाषण बताता है कि देश का नेतृत्व अब सिर्फ़ प्रतिक्रिया नहीं दे रहा, बल्कि ‘पूर्वक्रियात्मक रणनीति’ अपना रहा है। जब वे कहते हैं—“जहां भी छिपे हैं, आतंकियों को खोज कर सजा दी जाएगी”, तो यह महज़ एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि नीति का संकेत है।

जनता से सीधा संवाद: प्रधानमंत्री की भाषण शैली की विशेषता
मधुबनी की जनसभा में प्रधानमंत्री की भाषण शैली बिल्कुल पारंपरिक नहीं थी। उन्होंने जनता से सीधा संवाद किया। जैसे ही उन्होंने कहा—“जहां बैठे हैं, वहीं खड़े न हों, बैठे-बैठे ही श्रद्धांजलि दें”, उस पल ने भीड़ को एकजुट कर दिया।

इसमें नेतृत्व की वह कला दिखती है जिसमें जनता को सिर्फ़ श्रोता नहीं, सहभागी बनाया जाता है। यही वो कारण है जिससे मोदी को “Mass Communicator” के रूप में देखा जाता है, जो जनता की भाषा बोलते हैं, और उसी में भावनाओं को पिरोते हैं।

राजनीतिक संदेश: पंचायतों से संसद तक भाजपा की रणनीति
प्रधानमंत्री के भाषण में पंचायती राज दिवस को लेकर जो बातें हुईं, वे कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी का एक विस्तार भी थीं। जब उन्होंने कहा कि “महिलाएं 50% से ज्यादा पंचायतों में नेतृत्व कर रही हैं,” तो ये सिर्फ बिहार की प्रशंसा नहीं थी, ये संदेश था कि भाजपा महिला सशक्तिकरण को अपने राजनीतिक विजन का हिस्सा बना चुकी है।

पंचायतों में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित कर उन्होंने सीधे तौर पर ग्रामीण महिला वोट बैंक को संबोधित किया। यही कारण है कि जीविका दीदियों को आर्थिक सहायता का वादा, उज्ज्वला योजना, और स्वच्छता मिशन के संदर्भ में बातें की गईं।

विकास और गौरव का मिश्रण: मिथिला की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक मंच पर लाना
मधुबनी सिर्फ एक जिला नहीं, एक संस्कृति है। प्रधानमंत्री ने जब मखाने को GI टैग मिलने का उल्लेख किया, तब वह मिथिला की अर्थव्यवस्था से ज्यादा, उसकी अस्मिता की बात कर रहे थे। इसी तर्ज पर उन्होंने कहा कि “मिथिला के शौर्य और साहित्य को दुनिया के हर कोने तक पहुंचाना है।”

यह सांस्कृतिक गौरव सिर्फ एक स्मरण नहीं, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का एक आयाम भी है जो बीजेपी की राजनीति की जड़ों में मौजूद है। जब वे दिनकर और बापू का नाम लेते हैं, तो यह लोकमानस से जुड़ने की कोशिश होती है।

सुरक्षा से विकास की ओर: राष्ट्र निर्माण का द्वंद्वात्मक दर्शन
मोदी की राजनीति हमेशा दो ध्रुवों पर चलती दिखी है—सुरक्षा और विकास। मधुबनी में यह दर्शन और भी स्पष्ट था। एक ओर आतंकवादियों को खत्म करने की बात, दूसरी ओर गांव में इंटरनेट पहुंचाने का वादा। एक तरफ सीमा सुरक्षा, दूसरी तरफ किसान के खेत तक पानी पहुंचाने की योजना।

इस द्वंद्व को एकीकृत कर जो राजनीति खड़ी होती है, वह न केवल जनता को सुरक्षित महसूस कराती है, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने के अवसर भी देती है। यह राष्ट्रवाद का वह संस्करण है जिसमें “सुरक्षा से उन्नति तक” की यात्रा होती है।

नव भारत की तस्वीर: ग्रामीण भारत अब सिर्फ दर्शक नहीं, निर्माता है
एक समय था जब ग्रामीण भारत को केवल वोट बैंक माना जाता था। योजनाएं बनती थीं, घोषणाएं होती थीं, पर जमीन पर कुछ नहीं उतरता था। लेकिन अब गांवों को भी वह सम्मान मिल रहा है, जो कभी सिर्फ शहरों तक सीमित था।

डिजिटल सेवाओं से गांव जोड़ना

पीएम आवास योजना से घर देना

उज्ज्वला योजना से रसोई गैस

नल से जल और आयुष्मान भारत से स्वास्थ्य सेवा

इन सबका सामूहिक प्रभाव यह है कि गांव अब उपभोक्ता नहीं, सहभागी बन गए हैं। उन्हें अब उपकार नहीं, अधिकार मिल रहे हैं।

सीमांत जिलों से राष्ट्र निर्माण: बिहार का भूगोल, भारत की रणनीति
मधुबनी जैसे सीमावर्ती जिले सिर्फ भौगोलिक नहीं, रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं। नेपाल की सीमा से सटे इस क्षेत्र में विकास की रोशनी लाना, देश की सीमा सुरक्षा और राजनैतिक स्थायित्व दोनों के लिए अहम है।

प्रधानमंत्री का यहां आना और इतने बड़े पैमाने पर योजनाओं की घोषणा करना, यह दिखाता है कि भारत अब सीमाओं को प्रतीक मात्र नहीं, संकल्प का केंद्र मानने लगा है।

नीतीश कुमार की स्वीकृति: गठबंधन की मजबूरी या समझदारी?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मंच से यह कहना कि “बीच में गड़बड़ कर दी थी, अब नहीं करेंगे,” न केवल आत्मस्वीकृति थी, बल्कि बिहार की जनता के लिए एक संदेश भी कि अब विकास के नाम पर ही गठबंधन होंगे।

यह बयान एक तरह से यह संकेत भी था कि राज्य की राजनीति अब वैचारिक जटिलताओं से ऊपर उठकर परिणामों की राजनीति पर लौट रही है।

आख़िरी शब्द: मधुबनी से निकला भारत का नारा
जब एक नेता देश की पीड़ा को मंच पर साझा करता है, और उसी मंच से हजारों लोगों को विकास के नए सपनों की झलक देता है, तो वह केवल चुनाव प्रचार नहीं कर रहा होता—वह राष्ट्र निर्माण का नेतृत्व कर रहा होता है।

मधुबनी की इस रैली में आतंकवाद के खिलाफ गुस्सा था, गांवों के लिए योजनाओं की झड़ी थी, महिलाओं के लिए नए अवसर थे, किसानों के लिए राहत की सांस थी, और युवाओं के लिए प्रेरणा।

इस मंच से निकला हर शब्द अब गूंज रहा है—
“भारत सिर्फ देखेगा नहीं, अब दिशा भी तय करेगा।”

 

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