भूमिका : आतंकवाद का पर्याय बन चुका नाम
मसूद अज़हर—यह नाम आज भारत ही नहीं, वैश्विक स्तर पर आतंकवाद का पर्याय बन चुका है। 57 वर्षीय यह व्यक्ति न केवल भारत के विरुद्ध आतंकवादी हमलों का मास्टरमाइंड रहा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी घोषित हो चुका है। जैश-ए-मोहम्मद जैसे खूंखार आतंकी संगठन का सरगना मसूद, कश्मीर घाटी से लेकर संसद पर हमले, पुलवामा, पठानकोट और उरी तक, भारत में हुई अनेक त्रासदियों का सूत्रधार रहा है। इस जीवनी में हम मसूद अज़हर की ज़िंदगी की परतें खोलेंगे—उसका बचपन, उसका वैचारिक विकास, जेल की सलाखों से कंधार की आज़ादी तक का सफर और उसके आतंकवादी साम्राज्य का विस्तार।
1. प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
मसूद अज़हर का जन्म 10 जुलाई, 1968 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के बहावलपुर शहर में एक मध्यमवर्गीय धार्मिक परिवार में हुआ था। उसके पिता अल्लाहबख्श सबीर एक सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापक थे और जमात-ए-इस्लामी से वैचारिक रूप से प्रभावित थे।
बहावलपुर में पढ़ाई के दौरान ही मसूद का झुकाव इस्लामिक कट्टरपंथ की ओर हुआ। उसने कराची की जमिया उलूम-उल-इस्लामिया (बिनोरी टाउन) में दाखिला लिया—यही मदरसा बाद में तालिबान और अलकायदा के कई बड़े चेहरों की जन्मस्थली बना।
यहीं से मसूद अज़हर की विचारधारा को वह धार मिली, जिसने उसे भविष्य में जिहादी नेटवर्क का कुख्यात चेहरा बना दिया।
2. अफगान जिहाद और हरकत-उल-अंसार से जुड़ाव
1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ चल रहे युद्ध ने पाकिस्तान के मदरसों से हजारों युवाओं को जिहाद की ओर आकर्षित किया। मसूद अज़हर भी इन्हीं में से एक था। हालांकि उसका शारीरिक स्वास्थ्य युद्ध के लिए उपयुक्त नहीं था, लेकिन उसकी वाक्पटुता और वैचारिक कट्टरता ने उसे संगठनात्मक और प्रचारक भूमिकाएं सौंपीं।
वह हरकत-उल-अंसार नामक आतंकी संगठन से जुड़ा और कुछ ही वर्षों में संगठन का प्रचार प्रमुख बन गया। इस भूमिका में उसने दुनिया भर में जिहाद के लिए फंडिंग, भर्तियाँ और प्रशिक्षण की व्यवस्था की।
हरकत-उल-अंसार का मुख्य उद्देश्य कश्मीर को भारत से अलग करना और वहाँ इस्लामिक शासन स्थापित करना था। मसूद अज़हर की भूमिका इस संगठन को पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मदरसों से लेकर कश्मीर तक फैलाने में अहम रही।
3. भारत में प्रवेश और गिरफ्तारी (1994)
जनवरी 1994 में मसूद अज़हर ने ढाका से दिल्ली की उड़ान से भारत में प्रवेश किया। उसकी यात्रा का उद्देश्य था—कश्मीर में सक्रिय हरकत-उल-अंसार के दो आतंकी नेताओं से मिलना और अभियान की समीक्षा करना।
मसूद दिल्ली और देवबंद होते हुए अंततः कश्मीर पहुंचा। वहीं 10 फरवरी 1994 को भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने उसे पकड़ लिया। उस वक्त वह फर्जी पासपोर्ट पर यात्रा कर रहा था और उसके पास से अत्यधिक संदिग्ध दस्तावेज़ मिले।
भारत सरकार ने उसे जम्मू की कोट भलवाल जेल में रखा। जेल में रहते हुए उसने अन्य कैदियों को जिहाद की ओर उकसाया और वहाँ भी उसका प्रभाव फैलता गया।
4. रिहाई की कोशिशें और हाईजैक का काला अध्याय (1999)
मसूद की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान और कश्मीर में उसके संगठन ने बार-बार उसे छुड़ाने की कोशिश की। 1994 में दिल्ली में कुछ विदेशी पर्यटकों के अपहरण का प्रयास इसी दिशा में किया गया, लेकिन भारतीय पुलिस ने उन्हें छुड़ा लिया।
अंततः दिसंबर 1999 में भारतीय विमान IC-814 के अपहरण ने मसूद की रिहाई का मार्ग खोल दिया। नेपाल के काठमांडू से दिल्ली जा रहा यह विमान हाईजैक कर कंधार (अफगानिस्तान) ले जाया गया। यात्रियों की रिहाई के बदले मसूद अज़हर, उमर शेख और मुश्ताक जरगर की रिहाई की मांग की गई।
भारत सरकार ने मजबूरीवश यह शर्त स्वीकार की। विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने मसूद अज़हर को स्वयं विशेष विमान से कंधार पहुंचाया—यह निर्णय आज भी भारत के इतिहास में एक गहरे जख्म की तरह देखा जाता है।
5. जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना और आतंक का विस्तार
कंधार से लौटते ही मसूद अज़हर ने पाकिस्तान में अपने पुराने नेटवर्क को पुनर्गठित किया और जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना की। इस संगठन का घोषित उद्देश्य था—”भारत को इस्लामी शासन के अधीन लाना और कश्मीर को आज़ाद कराना।”
जैश-ए-मोहम्मद ने बहुत ही कम समय में पाकिस्तान के पंजाब, सिंध और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में ट्रेनिंग कैंप स्थापित कर लिए। इन कैंपों में युवाओं को हथियार चलाने, आईईडी बनाने और आत्मघाती हमलों के लिए तैयार किया जाता था।
6. आतंक के काले अध्याय: 2001 से 2019 तक
i. जम्मू-कश्मीर विधानसभा हमला (2001)
1 अक्टूबर 2001 को श्रीनगर में विधानसभा पर हुए आत्मघाती हमले में 38 लोग मारे गए। इसकी जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली।
ii. संसद हमला (13 दिसंबर 2001)
भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर—संसद भवन—पर जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने हमला किया। इस हमले में 6 सुरक्षा कर्मियों सहित 9 लोग मारे गए। हमले में अज़हर का नाम प्रमुख साजिशकर्ताओं में रहा।
iii. पठानकोट हमला (2016)
जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षित आतंकवादियों ने भारतीय वायुसेना के पठानकोट एयरबेस पर हमला किया। छह जवान शहीद हुए।
iv. पुलवामा हमला (14 फरवरी 2019)
जैश के आतंकी आदिल अहमद डार ने आत्मघाती हमला कर सीआरपीएफ के 40 जवानों की जान ली। यह हमला अज़हर के संगठन द्वारा ही अंजाम दिया गया और इसके बाद भारत ने पाकिस्तान में बालाकोट एयर स्ट्राइक की।
7. अंतरराष्ट्रीय दबाव और यूएन द्वारा प्रतिबंध
भारत 2009 से लगातार संयुक्त राष्ट्र में मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करने की मांग कर रहा था, लेकिन चीन हर बार वीटो करता रहा। पुलवामा हमले के बाद वैश्विक दबाव बढ़ा और अंततः 1 मई 2019 को संयुक्त राष्ट्र ने मसूद अज़हर को “ग्लोबल टेररिस्ट” घोषित कर दिया।
इसके बाद पाकिस्तान ने उसके संगठन पर दोबारा प्रतिबंध लगाया, लेकिन केवल दिखावे के लिए। जैश आज भी नए नामों से काम करता है।
8. चीन और पाकिस्तान की भूमिका
चीन ने वर्षों तक मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में डालने का विरोध किया। इसके पीछे चीन-पाकिस्तान रणनीतिक गठबंधन और आर्थिक हित जुड़े हुए हैं, विशेषकर CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा)।
वहीं पाकिस्तान ने हमेशा आधिकारिक रूप से मसूद अज़हर की उपस्थिति से इनकार किया, जबकि जैश के कैंप बहावलपुर, मुज़फ़्फराबाद और कोहाट जैसे शहरों में खुलेआम चलते रहे।
9. सार्वजनिक जीवन और प्रचार युद्ध
मसूद अज़हर एक ऐसा आतंकी था जिसने बंदूक नहीं उठाई, लेकिन उसके भाषणों ने हजारों युवाओं को आतंकवाद की आग में झोंका।
उसके भाषण YouTube, WhatsApp और अन्य माध्यमों से फैलाए जाते रहे। जेल में भी उसका असर अन्य आतंकियों पर गहरा था। वह खुद को “मौलाना” कहता था और इस्लाम की गलत व्याख्याओं के ज़रिए लोगों को कट्टर बनाता रहा।
10. मौजूदा स्थिति और भविष्य की आशंकाएं
2025 तक, मसूद अज़हर का ठिकाना रहस्य बना हुआ है। भारत का दावा है कि वह पाकिस्तान में है, जबकि पाकिस्तान कहता है कि वह “गायब” है।
हाल ही में भारत की एयर स्ट्राइक में उसके परिवार के 10 सदस्य मारे गए हैं, जिससे संकेत मिलता है कि वह अभी भी बहावलपुर या उसके आसपास ही मौजूद है।
भारत ने उसे अंतरराष्ट्रीय अदालत में पेश करने के लिए डोजियर भी सौंपे हैं, लेकिन पाकिस्तान उसे कभी भारत को सौंपेगा—इसकी संभावना बहुत कम है।
एक व्यक्ति, जिसने मौत का व्यापार बनाया
मसूद अज़हर की जीवनी न केवल एक व्यक्ति की कहानी है, बल्कि उस पूरी विचारधारा की कहानी है, जो मजहब के नाम पर नफरत, हिंसा और तबाही फैलाती है।
उसकी कहानी हमें यह भी बताती है कि कैसे एक शिक्षित, प्रचारक और प्रभावशाली व्यक्ति आतंक की मशीन बन सकता है, यदि उसके पीछे राज्य का संरक्षण, विचारधारात्मक ईंधन और अंतरराष्ट्रीय चुप्पी हो।
भारत के लिए मसूद अज़हर केवल एक नाम नहीं, बल्कि वह छाया है जो देश की सुरक्षा, विदेश नीति और कूटनीति को वर्षों से प्रभावित कर रही है।
स्रोत: बीबीसी, इंडियन एक्सप्रेस, यूएन रिपोर्ट, गृह मंत्रालय दस्तावेज़, पीआरएस इंडिया
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