
चित्तौड़गढ़, राजस्थान | राजस्थान सरकार द्वारा ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से संचालित “लखपति दीदी योजना” और “पशु सखी योजना” जैसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों में अब भ्रष्टाचार की गंध आने लगी है। डूंगला ब्लॉक के राजीविका कार्यालय में पदस्थापित संविदाकर्मी ममता माली को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की टीम ने 2500 रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया है।
एसीबी को शिकायत मिली थी कि ममता माली योजनाओं से एक महिला लाभार्थी का नाम बने रखने के एवज में रिश्वत की मांग कर रही थी। आरोपी महिला ने लाभार्थी से कहा कि यदि वह उसका नाम योजना में बनाए रखना चाहती है तो 2500 रुपए देने होंगे, अन्यथा उसका नाम हटाया जा सकता है।
ACB की योजना और कार्रवाई :
शिकायत की पुष्टि होने के बाद
एसीबी रेंज उदयपुर के उप महानिरीक्षक राजेन्द्र प्रसाद गोयल की निगरानी
तथा चित्तौड़गढ़ एसीबी के एएसपी विक्रम सिंह के नेतृत्व में ट्रैप टीम गठित की गई।
योजनाबद्ध तरीके से डूंगला स्थित राजीविका कार्यालय में जाल बिछाया गया।
जैसे ही ममता माली ने शिकायतकर्ता महिला से रिश्वत की राशि ली, टीम ने उसे रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया।
कौन हैं ममता माली?
गिरफ्तार ममता माली, डूंगला के राजीविका कार्यालय में ब्लॉक परियोजना प्रबंधक (BPM) के पद पर संविदा आधारित कर्मचारी के रूप में कार्यरत थी। अब उनके खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है और पूरी योजना की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
📚 योजनाएं जिनमें हुआ भ्रष्टाचार :
1. लखपति दीदी योजना :
यह योजना ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार, उद्यमिता और वित्तीय जागरूकता के माध्यम से आर्थिक रूप से मजबूत बनाने हेतु चलाई जा रही है। इसमें महिलाओं को प्रशिक्षण, सहायता और ऋण सुविधा दी जाती है जिससे वे 1 लाख रुपए वार्षिक आय अर्जित कर सकें।
2. पशु सखी योजना :
इस योजना के तहत गांवों में पशुपालन की जानकारी रखने वाली महिलाओं को “पशु सखी” के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है। इनका काम होता है गांव में पशुओं की देखभाल, प्राथमिक चिकित्सा और टीकाकरण, जिससे महिलाएं सेवा के बदले नियमित आय कमा सकें।
महिला सशक्तिकरण योजनाओं में भ्रष्टाचार: क्यों गंभीर है ये मामला?
योजनाओं की आत्मा पर चोट: ये योजनाएं समाज के सबसे वंचित तबके — ग्रामीण महिलाओं — को सशक्त बनाने के लिए हैं। यदि इन्हीं योजनाओं में भ्रष्टाचार होगा तो लाभार्थियों का विश्वास और उद्देश्य दोनों समाप्त हो जाएगा।
संविदाकर्मी पर भी भरोसा नहीं: संविदा पर नियुक्त कर्मचारी आम तौर पर स्थानीय समाज से होते हैं और उनसे अपेक्षा होती है कि वे योजनाओं को जमीनी स्तर पर प्रभावी बनाएं। लेकिन जब वही कर्मचारी रिश्वत में लिप्त हों तो प्रणाली की साख गिरती है।
पारदर्शिता की कमी: यदि लाभार्थी को योजना से निकाले जाने या बनाए रखने का फैसला रिश्वत पर आधारित हो जाए तो सही पात्र लोगों को योजना का लाभ नहीं मिल पाता, जिससे योजना का औचित्य समाप्त हो जाता है।
अब आगे क्या?
एसीबी की पूछताछ जारी है और ममता माली से यह जानने की कोशिश की जा रही है कि क्या यह व्यक्तिगत रिश्वतखोरी का मामला है या बड़े रैकेट का हिस्सा।
राजीविका विभाग ने इस गिरफ्तारी के बाद आंतरिक जांच के संकेत दिए हैं।
संभावना है कि आने वाले दिनों में और नाम सामने आ सकते हैं, खासकर यदि रिश्वतखोरी कोई नियमित प्रथा बन गई हो।
राजस्थान में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने वाली योजनाएं भ्रष्टाचार के संक्रमण की चपेट में आ रही हैं। ममता माली का रिश्वत लेते पकड़ा जाना सिर्फ एक मामला नहीं, बल्कि एक संकेत है कि नीतियों के स्तर पर जवाबदेही और निगरानी की व्यवस्था मजबूत करने की आवश्यकता है।
यदि अब भी कड़ी कार्रवाई और निगरानी नहीं की गई तो ये योजनाएं “लखपति दीदी” नहीं, भ्रष्टाचार की बंदिनी” बनकर रह जाएंगी।
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