
उदयपुर। युगधारा साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक मंच की अध्यक्ष और प्रख्यात कवयित्री किरण बाला ‘किरण’ के नवीन काव्य संग्रह “किरण हूँ मैं” का भव्य लोकार्पण समारोह शनिवार को मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के अतिथि सभागार में ऐतिहासिक साहित्यिक गरिमा के साथ सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में प्रदेशभर से साहित्यजनों, कवियों, समीक्षकों और काव्यप्रेमियों ने बड़ी संख्या में सहभागिता की।
मुख्य अतिथि का वक्तव्य: साहित्य से संवेदनशील समाज की ओर
समारोह के मुख्य अतिथि श्री पंकज ओझा (आरएएस), अतिरिक्त आयुक्त, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि नियंत्रण, राजस्थान सरकार ने अपने प्रेरक उद्बोधन में कहा, “संगीत और साहित्य के बिना मनुष्य अधूरा है। साहित्य न केवल आत्मा को आलोकित करता है, बल्कि समाज को विचार, करुणा और समरसता का पथ भी दिखाता है।” उन्होंने किरण बाला को इस काव्य संग्रह हेतु हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि उनकी कविताओं में भक्ति, ईश्वर प्रेम और आत्मसमर्पण की गहराई सहज अनुभूत होती है।
कविता में जीवनदृष्टि और सामाजिक चेतना: समीक्षकों की दृष्टि
समारोह की अध्यक्षता कर रहे प्रो. कर्नल शिवसिंह सारंगदेवोत ने कहा कि यह संकलन नारी स्वर की वह सशक्त अभिव्यक्ति है, जो जीवन की ऊबड़-खाबड़ राहों में भी आशा की किरण खोज लाती है।
प्रो. नवीन नंदवाना ने समीक्षात्मक विवेचना में कहा कि संकलन की रचनाओं में प्रकृति का मानवीकरण, गहन भावनात्मक अनुभूति, आशावाद और सामाजिक चेतना की स्पष्ट झलक मिलती है। “यह संकलन मात्र कविता नहीं, आत्मचिंतन का सजीव संवाद है।”
रेखा अरोड़ा ‘स्मित’ ने किरण बाला की कविताओं में अव्यक्त को व्यक्त करने की दुर्लभ कला, व्यष्टि से समष्टि तक की यात्रा और कृष्णमयी आध्यात्मिक भावभूमि को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “इनकी कविताएं शब्दों का शोर नहीं, बल्कि अनुभूतियों की वह नमी है जो पाठक के हृदय को भीतर तक भिगो जाती है।”
“किरण हूँ मैं” में नारी चेतना, स्वाभिमान और सांस्कृतिक संवेदनशीलता
युगधारा मंच के वरिष्ठ साहित्यकार ज्योतिपुंज ने कहा, “यह संग्रह केवल कविताओं का संकलन नहीं, बल्कि किरण बाला के नारी स्वाभिमान, सांस्कृतिक चेतना और सामाजिक सरोकारों का जीवंत दस्तावेज है। यह लोकार्पण समारोह युगधारा मंच के लिए भी एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, क्योंकि मंच की प्रथम महिला अध्यक्ष का यह रचनात्मक सृजन अपनी पगध्वनि छोड़ता है।”
परिवारजनों की भावपूर्ण प्रस्तुतियां
इस अवसर पर किरण बाला के परिवारजन भी उपस्थित रहे। उनके सुपुत्र चेतन जीनगर ने कहा कि उनकी मां की रचनाओं में सामाजिक यथार्थ और जीवन के सूक्ष्म अनुभवों की झलक मिलती है। कोमल जीनगर ने कहा, “उनकी लेखनी में कोई शोर नहीं, बल्कि वह खामोशी है जो आत्मा तक उतर जाती है।”
राकेश जीनगर ने कहा कि किरण बाला का काव्य-संसार शब्दों का संयोजन नहीं, बल्कि गहराइयों से उपजे भावों का उद्गार है।
कवयित्री किरण बाला की आत्मप्रकाशना
खुद कवयित्री किरण बाला ने अपने वक्तव्य में कहा, “पुस्तकें बहुत बोलती हैं। जब वे हाथ में आती हैं, तो जैसे आत्मीय संवाद करने लगती हैं। एक कवि का कार्य सिर्फ लिखना नहीं, शब्दों को जीवित अनुभवों में ढालना होता है।”
समारोह में साहित्य की सजीव उपस्थिति
कार्यक्रम में राजस्थान के अनेक जिलों से पधारे 150 से अधिक साहित्य साधकों और रचनात्मक व्यक्तित्वों ने भाग लिया। सभा में उपस्थित प्रमुख साहित्यकारों में माधव नागदा, प्रमोद सनाढ्य, सूर्य प्रकाश दीक्षित, अफ़ज़ल खान ‘अफ़ज़ल’, राजकुमार पालीवाल, डॉ. मंजू चतुर्वेदी, डॉ. सरवत खान, डॉ. मधु अग्रवाल, इक़बाल हुसैन ‘इक़बाल’, अरुण चतुर्वेदी, स्वाति शकुन, पुरुषोत्तम शाकद्वीपीय, युगधारा के पूर्व अध्यक्ष मदन क्षितिज, पुरुषोत्तम पालीवाल, नरोत्तम व्यास, अशोक जैन ‘मंथन’, एवं डॉ. मनोहर श्रीमाली, प्रो. श्रीनिवासन अय्यर, डॉ. सिम्मी सिंह जेठानंद, घनश्याम सिंह कीनिया, हेमेंद्र जानी, अर्जुन पार्थ, सुनिता सिंह, चंद्रकांता बंसल, विजय निष्काम सहित दर्जनों साहित्यिक विभूतियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।
समापन: साहित्य की लौ
समारोह न केवल एक काव्य संग्रह का लोकार्पण था, बल्कि यह एक साहित्यिक चेतना का सार्वजनिक उत्सव बन गया, जहां शब्द, विचार और संवेदना ने मिलकर एक अद्भुत सांस्कृतिक क्षण की रचना की।
“किरण हूँ मैं” न केवल किरण बाला के नाम की अभिव्यक्ति है, बल्कि समस्त नारी चेतना, आध्यात्मिक जिज्ञासा और रचनात्मक ऊर्जा की प्रतीकात्मक उद्घोषणा भी है।
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