रसायन विज्ञान में नवाचार पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ : हरित संश्लेषण और औषधि डिज़ाइन में भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता पर हुआ मंथन

फोटो : कमल कुमावत

उदयपुर। राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय एवं भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित “रसायन विज्ञान में नवाचार: हरित संश्लेषण और औषधि डिज़ाइन” विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन सोमवार को प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में हुआ। यह आयोजन न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा, बल्कि इसमें भारतीय पारंपरिक ज्ञान के आधुनिक वैज्ञानिक संदर्भों में पुनर्पाठ का भी सशक्त प्रयास किया गया।

भारतीय रसायन परंपरा ही है आधुनिक ग्रीन केमिस्ट्री – प्रो. सारंगदेवोत


उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने कहा कि “भारतीय वेदों, उपनिषदों और प्राचीन ग्रंथों में वर्णित रसायन ज्ञान ही आज की ग्रीन केमिस्ट्री की नींव है। हमारे ऋषियों ने प्रकृति के साथ आत्मीय संबंध स्थापित कर रसायनों का ऐसा उपयोग बताया है, जिससे पर्यावरण को हानि नहीं होती।

उन्होंने जैव ऊर्जा के सतत उपयोग, कृषि में प्रकृति-आधारित नवाचारों और ऊर्जा खपत को नियंत्रित करने के लिए हरित रसायन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

खनिज संपदा में औषधीय नवाचार की असीम संभावनाएं – प्रो. सतीश तिवारी


मुख्य वक्ता डाॅ. सतीश चंद्र तिवारी (पूर्व निदेशक, रोटम एग्रोकेमिकल्स, हांगकांग) ने कहा कि “राजस्थान की खनिज संपदा में अनेक औषधीय रसायनों की संभावनाएं निहित हैं, जिन्हें शोध एवं नवाचार के माध्यम से पर्यावरण-संवेदनशील औषधि निर्माण में परिवर्तित किया जा सकता है।”
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्रीन फार्मास्यूटिकल्स की बढ़ती मांग के संदर्भ में भारतीय खनिजों की उपयोगिता पर व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

संवेदनशील विज्ञान के लिए मातृभाषा और स्वदेशी ज्ञान आवश्यक – प्रो. कैलाश सोडानी


भूपाल नोबल्स संस्थान के मंत्री प्रो. महेन्द्र सिंह आगरिया, प्रबंध निदेशक डॉ. मोहब्बत सिंह रूपाखेड़ी, संयुक्त मंत्री राजेन्द्र सिंह ताणा, एवं कुलाधिपति बी.एल. गुर्जर की गरिमामयी उपस्थिति में सम्पन्न इस उद्घाटन सत्र में प्रो. कैलाश सोडानी ने अपने वक्तव्य में कहा : “गंभीर वैज्ञानिक अनुसंधान को जमीनी स्तर तक पहुंचाने के लिए मातृभाषा में वैज्ञानिक संवाद और स्वदेशी अवधारणाओं का समावेश आवश्यक है।”

वहीं कुलाधिपति बी.एल. गुर्जर ने कहा कि “अनुसंधान में भारतीय ज्ञान परंपरा को साथ लेकर चलना ही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। हमारी परंपराएं सिर्फ अतीत नहीं, भविष्य की दिशा हैं।”

संगोष्ठी में शामिल हुए देश-विदेश के वैज्ञानिक एवं शोधार्थी
दो दिवसीय इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में डाॅ. युवराज सिंह राठौड़, नवल सिंह जूड, प्रो. प्रेम सिंह रावलोत, डाॅ. गिरधरपाल सिंह, प्रो. शिव सिंह दुलावत, डाॅ. सपना श्रीमाली, डाॅ. मंगल श्री दुलावत, डाॅ. भावेश जोशी, डाॅ. उत्तम शर्मा, डाॅ. योगिता श्रीमाली, डाॅ. पूजा जोशी, डाॅ. लोकेश सुथार, डाॅ. मोनिका, डाॅ. नीतू, डाॅ. हिमानी वर्मा, डाॅ. कीर्तनपाल सिंह, लालिमा शर्मा, शक्ति चाैधरी सहित अनेक वैज्ञानिकों, प्राध्यापकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने सहभागिता की।

सत्र का संचालन लालिमा शर्मा एवं सिधिमा शर्मा ने किया, जबकि आभार ज्ञापन डाॅ. जय सिंह जोधा द्वारा प्रस्तुत किया गया।

विषयगत सार : विज्ञान, परंपरा और पर्यावरण का त्रिकोणीय संवाद


यह संगोष्ठी न केवल रसायन विज्ञान के तकनीकी पक्षों पर केंद्रित रही, बल्कि इसमें भारतीय दर्शन, ग्रीन केमेस्ट्री, औषधीय नवाचार और सतत विकास के समवेत सूत्रों को भी जोड़ने का प्रयास किया गया। पर्यावरण के प्रति वैज्ञानिक संवेदनशीलता और औषधि अनुसंधान के स्वदेशीकरण की दिशा में यह आयोजन एक मील का पत्थर साबित हुआ।

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