उदयपुर। 1 जुलाई, डॉक्टर्स डे—एक तारीख जो सिर्फ एक दिवस नहीं, बल्कि उन हज़ारों अनकहे संघर्षों का प्रतीक है जो डॉक्टर हर दिन, हर घंटे, हर पल अपने मरीजों के लिए लड़ते हैं।
लेकिन मेरे लिए यह दिन इस बार कुछ और था—एक व्यक्तिगत, गहरे भावनात्मक अनुभव से भरा हुआ।
मेरे अंकल की तबीयत अचानक बहुत बिगड़ गई थी। संक्रमण ने पूरे शरीर को अपनी चपेट में ले लिया था। अंग एक-एक कर जवाब दे रहे थे। अस्पताल में भर्ती कराना ज़रूरी था।
लेकिन दुविधा थी—चार साल पहले, उदयपुर के गीतांजली अस्पताल में ही मेरे पिताजी का इलाज चला था, और वहीं उनकी अंतिम सांसें भी थमी थीं। उस याद के साथ दोबारा उसी जगह लौटना डरावना था।
पर हालात ऐसे थे कि और कोई विकल्प नहीं था। आधी रात को, 12 बजे, हमने अंकल को गीतांजली हॉस्पिटल में भर्ती कराया। लेकिन इसी डर के बीच एक उम्मीद की रोशनी थी—मेरी भांजी, डॉ. सैयद आफरीन, जो वहीं रेजिडेंट डॉक्टर हैं।
जैसे ही हमने अस्पताल के गेट में प्रवेश किया, वो हमारे साथ खड़ी थीं। इमरजेंसी केस था, लेकिन उनके प्रयासों से भर्ती की प्रक्रिया फौरन पूरी हो गई। चेहरे पर चिंता थी, लेकिन आंखों में भरोसा भी।
जांच में सामने आया कि शरीर में जबरदस्त संक्रमण फैल चुका है। किडनी और हार्ट पर असर पड़ने लगा था। शरीर के अंदर मवाद जमा हो गया था। देर करना मौत को बुलावा देना होता।
आफरीन ने तुरंत अपने सीनियर डॉक्टरों से संपर्क किया। मरीज की हालत पर चर्चा हुई, और रविवार शाम को ऑपरेशन का फैसला लिया गया।
ऑपरेशन थिएटर में सीनियर डॉक्टर अमित गर्ग के नेतृत्व में प्रक्रिया शुरू हुई। सबकुछ सामान्य लग रहा था… लेकिन अचानक बीपी गिर गया। किडनी और दिल दोनों जवाब देने लगे।
डॉ. आफरीन घबरा गईं, लेकिन रुकी नहींं। उस पल उन्होंने पूरे भरोसे के साथ मुझे मैसेज किया—“दुआ करें”।
वो पल ऐसा था जब विज्ञान और दुआ दोनों एक साथ ऑपरेशन थिएटर के भीतर मौजूद थे।
बाहर ICU के पास डॉक्टरों की टीम और परिवार वाले एक-एक पल का इंतज़ार कर रहे थे। इस वक्त वहां ड्यूटी पर तैनात डॉ. सुरेश पालीवाल, डॉ. अजय चौहान, डॉ. मुकेश, डॉ. अदिति ने मरीज की जान बचाने में हर संभव कोशिश की और वे सफल हुए। डॉ. आफरीन ने अपने ऐसे सहयोगी डॉक्टरों की टीम का शुक्रिया अदा किया तो उनकी भी आंखें भी नम हो गई।
सीनियर डॉक्टर्स ने हमें बुलाया, और ईमानदारी से कहा—
“हमें नहीं पता अगला पल क्या लाएगा। लेकिन हम इंसान होने के नाते हर मुमकिन कोशिश करेंगे।”
उनके शब्दों में सच्चाई थी, और एक डॉक्टर की विवशता भी। लेकिन उस लम्हे में हम सबका भरोसा बढ़ा।
डॉ. आफरीन ICU में भी लगातार निगरानी कर रही थीं—कभी कंप्यूटर स्क्रीन पर रिपोर्ट देखतीं, कभी सीनियर्स से सलाह लेतीं। उनकी आंखों में नींद नहीं, सिर्फ ज़िम्मेदारी थी।
48 घंटे तक जिंदगी और मौत के बीच की ये जंग चली।
और फिर, एक सुबह… अंकल ने आंखें खोलीं।
उनकी आंखों से बहते आंसू, उनके होठों पर कांपती मुस्कान और जुबान पर पहला नाम था—“आफरीन”।
उस वक्त हॉस्पिटल में डॉक्टर्स डे मनाया जा रहा था।
जहां केक काटा जा रहा था, वहीं ICU में जिंदगी का जश्न मनाया जा रहा था।
मेरे अंकल डॉक्टरों को दुआएं दे रहे थे, और खासकर अपनी दोहिती डॉ. आफरीन को आशीर्वाद दे रहे थे।
एक डॉक्टर… एक रिश्तेदार… एक फरिश्ता
वो सिर्फ डॉक्टर नहीं थीं, हमारी आफरीन उस वक्त एक बहन थीं, एक बेटी थीं, एक योद्धा थीं।
डॉक्टर्स डे पर जब लोग सोशल मीडिया पर धन्यवाद लिखते हैं, तब मैंने उस ‘धन्यवाद’ को जी कर महसूस किया।
गीतांजली अस्पताल के सीनियर डॉक्टर्स हों या रेजिडेंट स्टाफ—सबने जिस तरह बिना थके, बिना डरे इलाज किया, वह केवल पेशेवर जिम्मेदारी नहीं थी, वह “सेवा का संकल्प” था।
डॉक्टर्स डे: सिर्फ एक तारीख नहीं… एक श्रद्धांजलि हर उस नींद को जो उन्होंने कुर्बान की
डॉक्टर्स डे पर हम अक्सर पोस्टर, विज्ञापन और बधाई संदेश देखते हैं। लेकिन उनके पीछे की थकान, मानसिक दबाव और टूटते हुए रिश्तों की आवाज़ें कम ही सुनाई देती हैं।
उनकी ड्यूटी, उनके पर्सनल जीवन से बड़ी होती है। उनकी थकान, मरीज की तकलीफ से छोटी होती है।
इस बार डॉक्टर्स डे मेरे लिए एक त्यौहार था—एक नई जिंदगी की शुरुआत का दिन।
मैंने उसी दिन ठान लिया कि अब हर डॉक्टर्स डे पर सिर्फ “थैंक यू” नहीं, बल्कि हर उस डॉक्टर को सलाम करूंगा जो किसी की जिंदगी की आखिरी उम्मीद बनकर खड़ा है।
आप सभी डॉक्टर्स को—सलाम।
आपके सफेद कोट के पीछे छुपे हुए संघर्षों को, नींदों की कुर्बानी को, और इंसानियत के प्रति आपके समर्पण को—कोटि-कोटि नमन।
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