जयपुर में  एसएमएस ट्रॉमा सेंटर अग्निकांड के बाद सरकार की बड़ी कार्रवाई : अधीक्षक और प्रभारी डॉक्टर पद से हटाए गए, अभियंता निलंबित, फायर एजेंसी पर एफआईआर के निर्देश

जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर के प्रतिष्ठित सवाई मानसिंह अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में रविवार देर रात लगी आग ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया। इस दर्दनाक हादसे में आठ मरीजों की मौत हो गई, जबकि कई गंभीर रूप से झुलस गए। सोमवार को राज्य सरकार ने मामले में त्वरित और कड़ी कार्रवाई करते हुए एसएमएस अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सुशील भाटी और ट्रॉमा सेंटर के प्रभारी डॉ. अनुराग धाकड़ को तत्काल प्रभाव से उनके पदों से हटा दिया। साथ ही, अस्पताल में पदस्थापित अधिशाषी अभियंता मुकेश सिंघल को निलंबित कर दिया गया है।

फायर सेफ्टी व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाल रही एसके इलेक्ट्रिक कंपनी की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठे हैं। सरकार ने इस कंपनी की निविदा निरस्त कर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने के निर्देश जारी किए हैं। यह वही एजेंसी थी जो ट्रॉमा सेंटर और एसएमएस अस्पताल में फायर अलार्म, स्प्रिंकलर और सुरक्षा प्रणाली की देखरेख करती थी। प्रारंभिक जांच में यह सामने आया है कि आग लगने के दौरान सेफ्टी सिस्टम सक्रिय नहीं हुआ, जिसके कारण आग तेजी से फैल गई और मरीजों को बाहर निकालने में भारी दिक्कत आई।

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने हादसे की सूचना मिलते ही रविवार रात करीब तीन बजे खुद अस्पताल पहुंचकर मौके का जायजा लिया। उन्होंने अधिकारियों से विस्तृत जानकारी ली और दोषियों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री के आदेश के बाद चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने सोमवार शाम बड़े स्तर पर कार्रवाई करते हुए संबंधित अधिकारियों को पद से हटाने और अभियंता को निलंबित करने का निर्णय लिया। सरकार ने डॉ. मृणाल जोशी को एसएमएस अस्पताल का नया अधीक्षक और डॉ. बी.एल. यादव को ट्रॉमा सेंटर का नया प्रभारी नियुक्त किया है।

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर सोमवार को ट्रॉमा सेंटर पहुंचे और वहां की स्थिति का निरीक्षण किया। उन्होंने कहा कि यह हादसा बेहद दुखद और पीड़ादायक है। उन्होंने मृतकों के परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और ईश्वर से उन्हें यह असहनीय आघात सहन करने की शक्ति देने की प्रार्थना की। खींवसर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि राज्य सरकार ने इस घटना की गंभीरता को देखते हुए चिकित्सा शिक्षा आयुक्त की अध्यक्षता में छह सदस्यीय उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की है। यह समिति आग लगने के सभी पहलुओं — तकनीकी, प्रशासनिक और मानवीय लापरवाही — की गहराई से जांच करेगी। मंत्री ने कहा कि रिपोर्ट में जो भी व्यक्ति दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।

घटना के बाद अस्पताल प्रशासन को निर्देश दिए गए हैं कि क्षतिग्रस्त आईसीयू को जल्द से जल्द दुरुस्त किया जाए और तब तक मरीजों के इलाज के लिए वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। मंत्री ने अस्पताल प्रशासन को निर्देश दिया कि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए फायर सेफ्टी उपकरणों की नियमित जांच की जाए और सभी अस्पतालों में प्रशिक्षण प्राप्त स्टाफ की तैनाती की जाए।

राज्य सरकार ने फायर सेफ्टी एजेंसी के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए उसकी निविदा रद्द कर दी है। अधिकारियों ने बताया कि इस एजेंसी को पहले भी कई बार नोटिस दिए गए थे, लेकिन उसने फायर सिस्टम की मरम्मत और मॉनिटरिंग में लापरवाही बरती। आग लगने की घटना ने एक बार फिर से सरकारी अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

चिकित्सा मंत्री ने बताया कि चिकित्सा शिक्षा विभाग ने जून माह में ही सीआईएसएफ से अस्पतालों की सुरक्षा और फायर सेफ्टी पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए थे। यह रिपोर्ट अब जल्द ही प्राप्त होने की उम्मीद है। रिपोर्ट के आधार पर पहले चरण में सवाई मानसिंह अस्पताल और इससे संबद्ध अस्पतालों में सुरक्षा व्यवस्थाओं को सुदृढ़ किया जाएगा। इसके बाद दूसरे चरण में राज्यभर के सभी सरकारी अस्पतालों में सुरक्षा ढांचे को मजबूत किया जाएगा।

अस्पताल में आग लगने की वजहों को लेकर अब तक जो प्रारंभिक जानकारी सामने आई है, उसके अनुसार फायर अलार्म सिस्टम उस समय काम नहीं कर रहा था। बिजली के तारों में ओवरलोडिंग और पुराने उपकरणों की देखरेख की कमी भी हादसे की एक बड़ी वजह मानी जा रही है। ट्रॉमा सेंटर जैसे महत्वपूर्ण हिस्से में सेफ्टी ऑडिट का नियमित रूप से न होना और आपातकालीन निकासी योजना का अभाव इस घटना को और भी भयावह बना गया।

घटना के बाद अस्पताल परिसर में अफरा-तफरी का माहौल रहा। परिजन देर रात तक अपने परिजनों की तलाश में परेशान रहे। कई लोगों ने अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि अगर अलार्म सिस्टम और फायर कंट्रोल उपाय समय पर सक्रिय होते, तो कई जानें बचाई जा सकती थीं।

मृतकों के परिवारों को राज्य सरकार द्वारा मुआवजा देने की घोषणा की गई है। मुख्यमंत्री ने स्वयं इस मामले में मानवता और संवेदना के आधार पर राहत सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, परिजनों की मांग है कि केवल मुआवजा नहीं बल्कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई भी की जाए ताकि भविष्य में कोई और परिवार ऐसी त्रासदी का शिकार न बने।

अस्पताल प्रशासन की ओर से कहा गया है कि ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में आग सबसे पहले ऑक्सीजन लाइन के पास लगी। इसके बाद चिंगारी तेजी से फैली और कुछ ही मिनटों में पूरा क्षेत्र धुएं से भर गया। दमकल विभाग की 12 गाड़ियां मौके पर पहुंचीं और करीब दो घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया। लेकिन तब तक कई मरीजों की दम घुटने से मौत हो चुकी थी।

घटना स्थल पर चिकित्सा शिक्षा सचिव अम्बरीष कुमार, चिकित्सा शिक्षा आयुक्त इकबाल खान, एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. दीपक माहेश्वरी सहित अन्य अधिकारी मौजूद रहे। अधिकारियों ने जांच टीम के साथ फायर सेफ्टी सिस्टम, आपातकालीन निकासी मार्ग और विद्युत संयंत्रों की स्थिति का निरीक्षण किया।

यह हादसा राजस्थान के स्वास्थ्य ढांचे के लिए एक बड़ी चेतावनी साबित हुआ है। राज्य का सबसे बड़ा और व्यस्ततम अस्पताल होने के बावजूद एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में सुरक्षा की ऐसी चूक यह दर्शाती है कि व्यवस्थाएं केवल कागजों तक सीमित रह गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि फायर सेफ्टी को लेकर अस्पतालों में नियमित ऑडिट, कर्मचारियों का प्रशिक्षण और तकनीकी सुधार बेहद जरूरी हैं।

अभी तक की जानकारी के अनुसार, सरकार ने जिस तत्परता से कार्रवाई की है, वह एक स्पष्ट संदेश है कि अब लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। लेकिन असली कसौटी तब होगी जब जांच रिपोर्ट आने के बाद दोषियों पर वास्तविक कार्रवाई हो और अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था में स्थायी सुधार किया जाए।

यह दुखद घटना न केवल प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है, बल्कि यह भी बताती है कि आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के बावजूद यदि बुनियादी सुरक्षा उपाय कमजोर हों, तो इंसान की जान कभी भी खतरे में पड़ सकती है। ऐसे में जरूरत है कि सरकार इस हादसे को एक सबक के रूप में ले और पूरे प्रदेश में अस्पतालों की फायर सेफ्टी व्यवस्था की व्यापक समीक्षा कराए।

राज्य सरकार के इस त्वरित कदम ने यह संकेत जरूर दिया है कि अब किसी भी स्तर की लापरवाही को अनदेखा नहीं किया जाएगा। मगर असली चुनौती अब इस बात की है कि क्या इस त्रासदी से मिले सबक के बाद भविष्य में अस्पतालों में सुरक्षा को लेकर वास्तविक सुधार दिखाई देगा, या फिर यह कार्रवाई भी कागजों तक सीमित रह जाएगी।

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