
उदयपुर से उठी भक्ति की धुन, उदयपुर संभाग का दिल धड़क उठा
अहमदाबाद-उदयपुर नेशनल हाइवे…रविवार की सुबह…और रतनपुर बॉर्डर का वह दृश्य, जिसे देखकर लगा मानो सड़क अपने दोनों हाथ पसारकर किसी महान अतिथि का स्वागत कर रही हो।
तीन वर्षों के बाद जब आचार्य महाश्रमण राजस्थान में कदम रख रहे थे, तो सीमा के इस हिस्से ने खुद को सजाकर रखा था—गुलाब की पंखुड़ियां, कतारों में खड़े लोग, चेहरे पर भावनाओं की धूप और हवा में भक्ति का उठता-गिरता कंपन।
हाईवे पर पहली बार लगा कि सड़क, लोग और आसमान—तीनों एक ही लय में सांस ले रहे हैं। मेवाड़ के लिए यह सिर्फ ‘प्रवेश’ नहीं, एक वापसी थी।
गुजरात में दो चातुर्मास पूर्ण करने के बाद जब धवल वाहिनी की दो-दो की कतार आगे बढ़ रही थी, तो उसे देखकर एक बात समझ आ रही थी—मेवाड़ अपने संतों से जुड़े स्नेह को भूला नहीं है।
महिलाएं एक ओर…पुरुष दूसरी ओर…दोनों तरफ आंखों में वही चमक—
जैसे कोई अपना बहुत पुराना, बहुत प्रिय व्यक्ति घर लौट रहा हो।
और जैसे ही आचार्य ने रतनपुर की सीमा पार की—हवा का तापमान तक बदल गया।
लगा जैसे नारे नहीं, दिल धड़क रहे हों—“जय जय ज्योतिचरण…” “जय जय महाश्रमण…”
हवा में उठते और दूर तक बहते।
उदयपुर संभाग के डूंगरपुर, उदयपुर, राजसमंद और भीलवाड़ा से आए लोग ऐसी भीड़ नहीं थे—वे एक भाव थे, एक परिवार थे, एक परंपरा के वाहक थे।
देशना—जिसने सड़क पर खड़े लोगों के भीतर रोशनी जगा दी, विहार के बाद जब आचार्य महाश्रमण ने देशना दी, तो सन्नाटा सिर्फ मौन नहीं था—वह ध्यान था।
उनकी वाणी जैसे सधे हुए दीपक की लौ—धीमी, स्थिर, सच्ची और भीतर तक उतरने वाली।
उन्होंने कहा—“मनुष्य राग-द्वेष से बंधा रहे तो प्रकाश दूर चला जाता है। सम्यकत्व अपनाओ, जीवन में शांति अपने आप उतर आएगी।”
यह शब्द हाईवे की हवा में देर तक तैरते रहे। और जिस सड़क पर रोज़ ट्रक, बसें और हॉर्न की आवाज़ें दौड़ती हैं—वहीं आज कुछ देर के लिए ऐसा लगा, जैसे समय भी ठहरकर सुन रहा हो।
मेवाड़ की सांसों में आस्था—उस सुबह ने यह साबित कर दिया
दिनेश खोड़निया, किशनलाल डागलिया, राजकुमार फत्तावत, पंकज ओस्तवाल, बलवंत रांका, महेंद्र कोठारी, देवेंद्र कच्छारा…नाम कई थे, लेकिन भावना एक—
हर किसी की नज़रें धवल वाहिनी पर थीं।
और इन नज़रों में दिख रही थी वह ऊष्मा, जो मेवाड़ के लोगों को आध्यात्मिक परंपरा से बांधती है।
आगे की यात्रा—और बढ़ती प्रतीक्षा
17 नवंबर को बिछीवाड़ा विहार और बिरोठी में रात्रि प्रवास—यह सिर्फ कार्यक्रम नहीं,
उदयपुर संभाग के लोगों के लिए आने वाले दिनों की खुशबू है। और आखिर में—वह अहसास जो हबीब भी लिखता
जब कोई संत लौटता है, तो सिर्फ रास्ते नहीं बदलते—दिल भी रास्ता बनाते हैं।
रतनपुर बॉर्डर पर भी यही हुआ। सड़कें भक्ति से भर गईं। हवा भावनाओं से। और मेवाड़—गर्व से।
About Author
You may also like
-
इमली वाले बाबा का सालाना 292 वा उर्स मुबारक परचम कुशाई के साथ आगाज़
-
उदयपुर पुलिस का एरिया डोमिनेंस ऑपरेशन : अलसुबह 720 से अधिक स्थानों पर ताबड़तोड़ दबिश
-
भारतीय नौसेना कार रैली को किया रवाना
-
UDA में पहली बार नियुक्त हुआ ASP : राज्य सरकार ने किए 142 ट्रांसफर, उदयपुर में स्वाती शर्मा और माधुरी वर्मा को नई जिम्मेदारियां
-
हिन्दुस्तान जिंक ने आंध्र प्रदेश में टंगस्टन ब्लॉक हासिल कर मजबूत किया अपना ग्रोथ पाथ