मेडिकल टूरिज्म में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के फर्जी सर्टिफिकेट का खेल, ऑर्गन खरीद-फरोख्त की आशंका पर सबूत नहीं, फोर्टिज-इएचसीसी समेत अन्य प्राइवेट अस्पताल के नाम

जयपुर। राजधानी जयपुर में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के फर्जी सर्टिफिकेट जारी करने वाले गिरोह के पकड़े जाने के बाद और भी बड़े खुलासे हो सकते हैं। एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने फोर्टिस-ईएचसीसी हॉस्पिटल से कई फाइलें जब्त की है। दरअसल यह सर्टिफिकेट ऑर्गन डोनेट करने के लिए मंजूरी के रूप में काम आता है और क्रिटिकल मरीजों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट का सर्टिफिकेट जल्दी जारी करने की एवज में आरोपी घूस लेते रहे हैं। इन लोगों ने एक हजार से अधिक सर्टिफिकेट जारी किए हैं।

एक दिन पहले फोर्टिस अस्पताल के समन्वय विनोद सिंह के पकड़े जाने के बाद एसीबी ने मंगलवार को फोर्टिस और ईएचसीसी अस्पताल में छानबीन की। इस दौरान फोर्टिस अस्पताल से ऑर्गन ट्रांसप्लांट की 20 से ज्यादा फाइलें जब्त की। टीम ने फोर्टिस अस्पताल के ऑर्गन को-ऑर्डिनेटर विनोद सिंह के चेंबर में भी तलाशी ली। ईएचसीसी अस्पताल से भी ऑर्गन ट्रांसप्लांट की 15 फाइलें जब्त की है।

एसीबी के उपमहानिरीक्षक डॉ. रवि ने बताया कि अब तक की जांच में सामने आया है कि आरोपियों ने नेपाल, बांग्लादेश, कंबोडिया के लोगों को फर्जी एनओसी देकर उनका ऑर्गन ट्रांसप्लांट करवाया था। एसीबी के पास कई अहम जानकारी है, जिससे पता चला है कि प्रदेश में पिछले 3 साल में इन लोगों ने 1 हजार से ज्यादा फर्जी सर्टिफिकेट बनाए, जिससे अस्पताल के डॉक्टर्स ने ऑर्गन ट्रांसप्लांट किए।
प्राइमरी इन्वेस्टिगेशन में यह पता चला है कि आरोपियों का कई प्राइवेट अस्पताल संचालकों, डॉक्टरों से संपर्क था। इसमें राज्य के बाहर के अस्पताल भी शामिल हैं।

ऑर्गन की खरीद-फरोख्त की बात से किया इनकार
डॉ. रवि ने बताया कि एसीबी ने 15 से 20 दिनों तक इन लोगों की कॉल को सुना है। इसमें कहीं भी ऑर्गन के खरीद-फरोख्त के कोई सबूत नहीं मिले हैं। एसीबी को शक था कि ये लोग ऑर्गन की खरीद-फरोख्त करते हैं, लेकिन इनकी बातें सुनने के बाद और मौके से मिले फर्जी सर्टिफिकेट से यह बात लगभग तय हो चुकी है कि इनकी ओर से किसी भी प्रकार से गलत व्यक्ति को ऑर्गन डोनेट नहीं किया गया था।

मरीज से सर्टिफिकेट जारी करवाने की रेट तय थी
पूछताछ में सामने आया है कि जिन मरीजों की स्थित नाजुक होती थी, ये लोग उनसे जल्दी सर्टिफिकेट बनाने के लिए मनचाहा पैसा लेते थे। अस्पताल में ये लोग प्रति सर्टिफिकेट 35 हजार दिया करते थे, जबकि मरीज से 1 लाख रुपए तक लेते थे।
अब ऑनलाइन होगी प्रक्रिया
ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए एनओसी देने के मामले में फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद अब एसएमएस हॉस्पिटल प्रशासन ने अब पूरे सिस्टम को ऑनलाइन करने का निर्णय किया है। ऑनलाइन करने के साथ ही इसके लिए नई एसओपी बनाने पर विचार किया गया है। एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. राजीव बगरहट्टा की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा करने के बाद इसके लिए जल्द एसओपी बनाने का निर्णय किया।

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