
उदयपुर की धरती आज कुछ और सूनी हो गई। एक आवाज़ जो कभी संसद के गलियारों में गूंजती थी, जो महिलाओं के हक़ में बुलंद होकर खामोशियों को तोड़ देती थी… आज हमेशा के लिए खामोश हो गई।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री, और नारी सशक्तिकरण की जीती-जागती मिसाल डॉ. गिरिजा व्यास अब हमारे बीच नहीं रहीं। अहमदाबाद के अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली, लेकिन सच तो यह है कि उनकी अंतिम सांसें वहीं थम गई थीं जब उदयपुर में अपने घर पर पूजा करते वक्त उनकी साड़ी में अचानक आग लग गई। 90 प्रतिशत तक झुलसीं, पर उन्होंने तब भी हार नहीं मानी। जीवन से उनका प्रेम इतना गहरा था कि हर सांस के लिए लड़ीं… पर नियति ने आख़िरकार उन्हें अपने पास बुला लिया।
यह केवल एक राजनीतिक शख्सियत का अंत नहीं है। यह एक विचार, एक दृष्टिकोण, और एक समर्पित जीवन की विराम रेखा है।
डॉ. गिरिजा व्यास कोई साधारण नाम नहीं था। यह नाम था उस स्त्री का, जो अपने ज्ञान से दर्शन शास्त्र को गहराई देती रही, जिसने मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में पढ़ाकर न जाने कितने छात्रों की ज़िंदगियों में उजास भरा। यह नाम था उस नेता का, जिसने कभी सांसद तो कभी विधायक बनकर अपने क्षेत्र के विकास में तन-मन-धन से सेवा दी — चाहे वो उदयपुर का शिल्पग्राम हो या जयसमंद से लाई गई जीवनदायिनी पाइपलाइन।
राजनीति में वो नरम लहजे की वो आवाज़ थीं, जो दृढ़ता से बात रखती थी, मगर कभी किसी को चोट नहीं देती थी। केंद्रीय मंत्री के तौर पर, महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में, या फिर राजस्थान कांग्रेस की कमान संभालते वक्त — उन्होंने हर भूमिका को उस ईमानदारी से निभाया, जो अब राजनीति में दुर्लभ हो चला है।
उनका जाना, एक ऐसा खालीपन छोड़ गया है जिसे शब्द भर नहीं सकते।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बात दिल को छू जाती है, जब वो कहते हैं – “डॉ गिरिजा व्यास का असमय जाना हम सभी के लिए बड़ा आघात है…”
वाकई, यह सिर्फ एक हादसा नहीं, एक युग की चुप विदाई है।
आज जब हम उन्हें याद करते हैं, तो सिर्फ एक नेता के रूप में नहीं, बल्कि एक मां, एक शिक्षिका, एक बहन, एक बेटी, और समाज की वह दीदी के रूप में याद करते हैं, जिनके दरवाज़े हर दुखियारे के लिए खुले रहते थे।
उनके शब्द, उनकी मुस्कान, और उनका संघर्ष अब इतिहास के पन्नों में दर्ज़ हो चुका है, पर यकीन मानिए — उनकी मौजूदगी अब भी हर उस महिला की आंखों में चमक बनकर ज़िंदा है, जिसे उन्होंने बोलने का हौसला दिया।
नमन है उस प्रेरणा को, सलाम है उस आत्मा को।
आप चली गईं गिरिजा जी, लेकिन आप हर उस दिल में रहेंगी, जो अब भी इंसानियत और सेवा के मायनों को समझता है।
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