फोटो : कमल कुमावत
उदयपुर की शाही हवाओं में आज मातम की हलचल थी। सिटी पैलेस के हर पत्थर पर ग़म के नक्श खिंच गए थे। सोमवार की सुबह जब शंभू निवास से अरविंद सिंह मेवाड़ की अंतिम यात्रा निकली, तो मानो सदियों पुरानी परंपराओं का सीना चीर कर एक और दुखद अध्याय जुड़ गया। राजपरिवार का यह नगीना पंचतत्व में विलीन हो गया, लेकिन पीछे छोड़ गया अनगिनत यादें, अपनों की भीगी आंखें और दिलों में उमड़ते एहसासों का समंदर।
आखिरी सफ़र : हर गली में बिखरा सन्नाटा
“ग़म की इस आंधी में, कोई सहारा न मिला,
बिछड़ गया जो अपना, वो दोबारा न मिला…”
सुबह 11 बजे जैसे ही शंभू पैलेस से पार्थिव शरीर महासतिया की ओर बढ़ा, उदयपुर की गलियां गमगीन हो गईं। बड़ी पोल, जगदीश चौक, घंटाघर और बड़ा बाजार की हवाओं में बस एक ही सिसकी गूंज रही थी। सफेद कपड़ों में लिपटे लोग, आंखों में नमी और होठों पर मौन लिए, इस विदाई के मंजर के गवाह बन रहे थे।
शाही परंपराओं के अनुसार, जब लक्ष्यराज सिंह ने अपने पिता को मुखाग्नि दी, तो उनके सब्र का बांध टूट गया। बहनों ने उन्हें गले लगाया, मगर उस आलिंगन में जो दर्द था, उसे सिर्फ़ वो ही समझ सकते हैं, जिन्होंने अपने सिर से पिता का साया खोया हो।
बिछड़े दिल फिर मिले, लेकिन कितनी देर से!
“बरसों से खामोश थे जो रिश्ते, वो आज बोले,
ग़म की बारिश में, कुछ शिकवे भी धुले…”
स्व. अरविंद सिंह मेवाड़ के भतीजे विश्वराज सिंह मेवाड़ भी अंतिम संस्कार में शामिल हुए। कुछ महीने पहले महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद, राजपरिवार में दरारें पड़ गई थीं। लेकिन आज, जब दो भाइयों ने एक-दूसरे को देखा, तो लगा जैसे विवादों की बर्फ पिघलने लगी हो। शाही रगों में खून का रिश्ता था, जो आज फिर एकजुट हुआ, लेकिन अफ़सोस कि इस मिलन का गवाह बनाने के लिए न महेंद्र सिंह मेवाड़ थे और न ही अरविंद सिंह मेवाड़ थे।
जब हवाओं में गूंज उठी यादें…
“महल की सीढ़ियों पर जो क़दमों की गूंज थी,
आज वहीं ख़ामोशी का पहरा है…”
सिर्फ़ परिवार ही नहीं, उदयपुर के कई सम्मानित लोग भी इस शोक में शामिल हुए। पूर्व क्रिकेटर अजय जडेजा, अभिनेता शैलेश लोढ़ा, ताज ग्रुप के CEO पुनीत चटवाल और उदयपुर एसपी योगेश गोयल भी पहुंचे। लेकिन सबसे भावुक पल तब आया जब लक्ष्यराज सिंह अपनी बहनों से लिपटकर रो पड़े। यह रोना सिर्फ़ एक बेटे का नहीं था, बल्कि एक युग के ख़त्म होने का था।
एक युग का अंत, मगर विरासत अमर रहेगी
“जिसकी रगों में इतिहास की रवानी थी,
वो आज यादों में बसा एक फ़साना बन गया…”
रविवार, 16 मार्च, वह दिन जब मेवाड़ ने अपना एक और सितारा खो दिया। भगवत सिंह मेवाड़ और सुशीला कुमारी मेवाड़ की विरासत को संभालने वाले अरविंद सिंह मेवाड़ ने आख़िरी सांस ली। उनके बड़े भाई महेंद्र सिंह मेवाड़ का निधन कुछ ही महीने पहले हुआ था, और अब यह शाही परिवार एक और दुख के साए में आ गया।
राजमहल की हवाओं में अब भी उनकी हंसी की गूंज होगी, हर कोना उनकी यादों को संजोए रखेगा। लेकिन आज, सिटी पैलेस की हवाओं में सिर्फ़ एक ही आहट थी—विदाई की!
“चली गई जो रौशनी, वो लौटकर न आएगी,
शमा बुझ भी जाए, मगर रौशनी रह जाएगी…”
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