उदयपुर में विकास की परिभाषा बदल रही है। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के स्नातक हर मुद्दे के विशेषज्ञ बन गए हैं। सड़क से लेकर फ्लाईओवर तक और नालों से लेकर मल्टीलेवल पार्किंग तक, हर चीज का समाधान अब इन ग्रुप्स में तैयार होता है। नगर निगम और विकास प्राधिकरण के प्रशिक्षित इंजीनियरों की योग्यता पर सवाल उठाने वाले यह ‘स्वयंभू विशेषज्ञ’ अब मांग कर रहे हैं कि इंजीनियरों के बनाए डिज़ाइन और डीपीआर सार्वजनिक किए जाएं ताकि वे “सही” सुझाव दे सकें।
क्या हमें इंजीनियरिंग की ज़रूरत है?
यदि इन आलोचनाओं को सही मानें, तो हमें आईआईटी, एनआईटी जैसे संस्थानों को तुरंत बंद कर देना चाहिए। आखिरकार, जब हर गली-मोहल्ले का दुकानदार, व्यापारी और पार्षद ही इंजीनियरिंग का भविष्य तय कर सकता है, तो लाखों रुपये खर्च कर इंजीनियर तैयार करने की क्या जरूरत? नौजवानों को भी सलाह दी जानी चाहिए कि वे अपनी किताबें छोड़ दें और किसी व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल होकर “वास्तुशास्त्र” सीखें।
इंजीनियर बनाम आम राय
यह स्थिति चिंताजनक है। असल समस्या यह नहीं है कि लोग राय दे रहे हैं, बल्कि यह है कि उनकी राय को तथ्यों और तकनीकी विशेषज्ञता से ऊपर रखा जा रहा है। डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) एक वैज्ञानिक और तकनीकी दस्तावेज है जिसे बनाने में इंजीनियरों और विशेषज्ञों की टीम महीनों तक काम करती है। इसे व्हाट्सएप पर “फॉरवर्डेड मैसेज” पढ़ने वाले लोगों के सुझावों के आधार पर बदलने की मांग करना हास्यास्पद है।
इंजीनियरिंग की कीमत समझिए
इंजीनियरिंग केवल सड़कों और इमारतों का निर्माण नहीं है, यह सुरक्षा, संरचना और दीर्घकालिक टिकाऊपन का अध्ययन है। इसे हल्के में लेना खतरनाक साबित हो सकता है। यदि विशेषज्ञों को इस तरह से हाशिये पर रखा जाएगा, तो भविष्य में दुर्घटनाओं और विफल परियोजनाओं की जिम्मेदारी कौन लेगा?
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी : एक चुनौती
व्हाट्सएप पर चलने वाली बहसों को लोकतंत्र की ताकत कहना एक सीमा तक सही हो सकता है, लेकिन जब ये बहसें तकनीकी विशेषज्ञता को कमजोर करने लगें, तो यह विकास के लिए खतरा है। सुझाव देना महत्वपूर्ण है, लेकिन विशेषज्ञों की भूमिका को नकारना मूर्खता है।
आखिरकार, अगर हर कोई “इंजीनियर” बनना चाहता है, तो हमें इंजीनियरिंग संस्थानों को सच में बंद कर देना चाहिए। बेहतर होगा कि शहर में एक “व्हाट्सएप इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग” खोल दिया जाए, जहां लोग मीम्स, फॉरवर्ड्स और “भाई की सलाह” से अपना ज्ञान अर्जित करें।
शहर के विकास को मजाक बनाने से पहले हमें यह समझना होगा कि विशेषज्ञों का काम केवल कागजों पर डिज़ाइन बनाना नहीं, बल्कि उन डिज़ाइनों को धरातल पर उतारना है। व्हाट्सएप की राय और वास्तविकता के बीच के अंतर को समझना ही शहर और समाज दोनों के लिए बेहतर होगा। वरना, “सब इंजीनियर हैं” का नारा एक दिन “सब नासमझ हैं” में बदल सकता है।
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आदरणीय महोदय, नगर निगम की वैबसाइट में आयुक्त महोदय का एक संदेश है जो जन सहभागिता को प्रोत्साहित करता है । मगर वास्तविकता में कोई भी यह चाहता नहीं है । मैंने कई स्पीड पोस्ट पत्र एलिवेटेड रोड की DPR व टैंडर डॉक्यूमेंट की कमियों पर लिखे जिनका जबाब तो दूर पावती तक नहीं मिली है। मैंने, व्हॉटएप यूनिवर्सिटी से नहीं, आईआईटी रूडकी से मास्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त कर रखा है और कई बड़े बड़े प्रोजेक्टों की DPR बनाई भी है और बनवाई भी है। करोड़ों के टैंडर भी आमंत्रित किये हैं, राज्य सरकार से अधीक्षण अभियंता पद से सेवानिवृत्त हूँ। यदि मेरे द्वारा उठाये गये प्रश्नों का उत्तर नहीं बनता है, तो घोंचेबाज़ या हरकुछ कह कर मजाक बनाना जनहित में नहीं है।