गुलाबचंद कटारिया : अनुभव, ऊर्जा और उदयपुर की राजनीति का हातिमताई

उदयपुर। 13 अक्टूबर की शाम उदयपुर में कुछ खास थी। शहर की रोशनियों में सिर्फ एक जन्मदिन नहीं मनाया जा रहा था—मनाया जा रहा था एक राजनीतिक यात्रा का जश्न, एक विश्वास की परंपरा का उत्सव, और एक ऐसे नेता का सम्मान जिसने चार दशकों से अधिक समय तक उदयपुर की राजनीति को अपनी सादगी, सजगता और संकल्प से दिशा दी — गुलाबचंद कटारिया

उदयपुर का “महानायक”

संयोग देखिए, हिंदी सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन का जन्मदिन 11 अक्टूबर को और उदयपुर के “राजनीतिक महानायक” कटारिया का 13 अक्टूबर को।
दोनों की जीवन यात्रा अपने-अपने क्षेत्र में संघर्ष, अनुशासन और निरंतरता का प्रतीक है।
उदयपुर में तो सुबह से शाम तक ऐसा लगा मानो हर गली, हर कार्यकर्ता, हर सभा में बस एक ही नाम गूंज रहा हो—कटारिया जी जन्मदिन मुबारक हो

शहर की वाटिकाओं में सजावट थी, बीजेपी कार्यकर्ताओं का उत्साह था, और मंचों पर बार-बार एक ही भाव उमड़ रहा था—
“यह सिर्फ जन्मदिन नहीं, यह परंपरा का सम्मान है।”

एक उत्सव… जो शक्ति प्रदर्शन भी था

हालांकि राजनीति की अपनी परतें भी होती हैं। इस उत्सव का सूत्रधार थे विधायक ताराचंद जैन, जिन्होंने महीनों से इसकी तैयारियों में जी-जान लगा दी थी।
उनकी योजना स्पष्ट थी — यह केवल शुभकामनाओं का अवसर नहीं, बल्कि यह दिखाने का भी अवसर था कि उदयपुर की राजनीति में आज भी कटारिया की पकड़ और लोकप्रियता अडिग है।

कार्यकर्ताओं से लेकर मंडल पदाधिकारियों तक, सबने दिल खोलकर भाग लिया। लेकिन दिलचस्प यह रहा कि शहर जिला बीजेपी के कुछ प्रमुख पदाधिकारी इस कार्यक्रम की तैयारियों से दूर रखे गए। फिर भी वे शाम को डिनर में पहुंचे — मुस्कुराते हुए चेहरों के बीच उनकी “संवरण की गई निराशा” साफ दिख रही थी।
राजनीति में यह दृश्य नया नहीं होता — जहां तालियों की गूंज के बीच भी कुछ आवाजें खामोश रहती हैं।

किलेदारों की वापसी : दूरियों का अंत

सबसे चौंकाने वाला दृश्य तब देखने को मिला जब कटारिया के पुराने सहयोगी—जिन्हें पार्टी में “किलेदार” कहा जाता है—डिनर में नजर आए।
वो लोग, जिनके साथ कभी मतभेद की खाइयां गहरी मानी जाती थीं, अब एक ही मंच पर साथ बैठे थे। शायद राजनीति की यही परिपक्वता है — जहां समय की रेत सारे शिकवे धीरे-धीरे बहा ले जाती है। किलेदारों की मौजूदगी यह संदेश थी कि “महत्वाकांक्षा से बड़ा होता है संबंध।” जो लोग पहले अलग खड़े थे, अब फिर से एक ही छांव में लौट आए।
कटारिया के लिए यह सिर्फ एक मुलाकात नहीं, बल्कि “सुलह की सच्चाई” थी — कि राजनीति में संबंध खत्म नहीं होते, बस शांत हो जाते हैं।

हातिमताई की तरह एक किस्सा

कटारिया और ताराचंद जैन के रिश्ते को समझने के लिए एक अरेबियन दंतकथा बेहद सटीक लगती है। कहते हैं, एक सुल्तान के घर पुत्र हुआ लेकिन उसने दूध पीने से इंकार कर दिया। सुल्तान ने हकीमों को बुलाया, मंत्रियों से सलाह ली, लेकिन कोई उपाय काम न आया।
तब एक दरवेश ने कहा— “जब तक तुम्हारे राज्य में कोई बच्चा भूखा रहेगा, यह शिशु दूध नहीं पीएगा।”

सुल्तान ने तत्काल बस्ती के हर बच्चे के लिए दूध का इंतजाम कराया। और तभी शिशु ने पहली बार दूध पिया।

यह कथा सिर्फ एक दंतकथा नहीं, बल्कि राजनीति में “सेवा और संवेदना” का सार है। कटारिया ने यही दर्शन जिया — अपनी राजनीति को “सेवा के धर्म” से जोड़ा, और अब वही विरासत ताराचंद जैन आगे बढ़ा रहे हैं।

जैन न केवल कटारिया के राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं, बल्कि उदयपुर के विकास में उनके “हातिमताई” रूप का विस्तार हैं। चाहे एलिवेटेड रोड हो या फ्लाईओवर, या शहर के ट्रैफिक सुधार की जद्दोजहद — जैन उन सवालों के जवाब खोज रहे हैं जिनसे आम नागरिक की जिंदगी जुड़ी है।

जैसे हातिमताई ने दूसरों की भलाई के लिए सात सवालों के जवाब खोजे, वैसे ही जैन शहर की भलाई के लिए संघर्षरत हैं। यह राजनीति का वह चेहरा है जो सत्ता से ऊपर उठकर समाज की सांसों में जगह बनाता है।

विवादों के बीच विकास की राह

उदयपुर में चर्चा इस बार सिर्फ जन्मदिन तक सीमित नहीं रही। आर.के. सर्कल पर दो दिन पहले हुई दुकानों की सीलिंग कार्रवाई ने भी बहस छेड़ दी।
कई लोगों ने इसे व्यापारियों के साथ अन्याय कहा, तो कईयों ने राहत की सांस ली कि अब शहर में अतिक्रमण कम होगा। यह बहस दरअसल उस उदयपुर की पहचान है जो परंपरा और विकास दोनों को साथ लेकर चलना चाहता है। कटारिया और जैन की राजनीति इसी द्वंद्व को संतुलित करने की कोशिश है — जहां विकास भी हो, और संवेदना भी।

82 की उम्र में भी ऊर्जा का आलोक

कटारिया अब 82 वर्ष के हो चुके हैं, लेकिन उनके भीतर की ऊर्जा किसी युवा कार्यकर्ता जैसी है। उनके चेहरे की मुस्कान और बोलने की शैली आज भी वैसी ही है जैसे विधानसभा में बहस करते वक्त होती थी। विरोधी भी उनके संगठन कौशल की प्रशंसा करते हैं, और समर्थक तो उन्हें एक “मार्गदर्शक” मानते हैं। राजनीति में यह बहुत कम देखने को मिलता है कि आलोचक भी किसी के जन्मदिन पर बधाई देने आएं। लेकिन कटारिया के जन्मोत्सव में ऐसा हुआ — क्योंकि सम्मान, “पद” से नहीं, “व्यवहार” से मिलता है।

गुलाबचंद कटारिया सिर्फ एक नाम नहीं, उदयपुर की राजनीतिक संस्कृति का प्रतीक हैं। उनका जन्मदिन हर बार यह याद दिलाता है कि सच्ची नेतृत्व क्षमता पद में नहीं, लोगों के विश्वास में बसती है। और वही विश्वास उन्हें “राजनीति का हातिमताई” बनाता है — जो खुद के लिए नहीं, बल्कि सबके लिए जीता है।

फोटो जर्नलिस्ट कमल कुमावत के कैमरे से देखिए तस्वीरों में जन्मदिन

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