
उदयपुर। आयड़ के सौंदर्यीकरण और विकास की चर्चाएं ज़रूर हो रही हैं, लेकिन क्या शहर के जिम्मेदार अधिकारी इस चकाचौंध के पीछे एक गंभीर खतरे को अनदेखा कर रहे हैं? आयड़ की सुंदरता के नीचे डेंगू का अंधकार छिपा हुआ है, और यह खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। हाल ही में, एक प्रतिष्ठित डॉक्टर ने जानकारी दी कि आयड़, डेंगू के लिए ‘सुपर स्प्रेडर’ के रूप में उभर रहा है। जगह-जगह जलभराव के कारण मच्छरों की कॉलोनियां फल-फूल रही हैं, और इनका सीधा असर अस्पतालों की भीड़ में देखा जा सकता है। हर अस्पताल डेंगू के मरीजों से भरा पड़ा है।
अब सवाल यह है कि क्या नगर निगम और संबंधित विभाग इस गंभीर स्थिति से वाकिफ हैं? उन्होंने केवल औपचारिकता के लिए कुछ फोगिंग कर दी और मान लिया कि समस्या हल हो गई। लेकिन अगर वास्तविक प्रयास होते, तो क्या अस्पतालों में इतनी भीड़ होती? नहीं। यह स्थिति न केवल नगर निगम की नाकामी को उजागर करती है, बल्कि यह सवाल उठाती है कि क्या शहर का विकास वास्तव में सिर्फ ढकोसला बनकर रह गया है?
आयड़ के विकास के लिए लगातार बैठकें और दौरे किए जा रहे हैं, लेकिन डेंगू मच्छरों की कॉलोनियों का सफाया करने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे? जब तक यह कागजी योजनाओं से बाहर आकर जमीन पर नज़र नहीं आता, तब तक ये समस्याएं सिर्फ बढ़ती रहेंगी। अगर यही हालात रहे, तो क्या आयड़ के आसपास रहने वाले लोग इस विकास के बदले अपने स्वास्थ्य की कीमत चुकाते रहेंगे?
सिर्फ प्रशासन ही नहीं, आमजन की भी इसमें ज़िम्मेदारी है। उन्हें अपने आसपास के जलभराव को साफ करवाना चाहिए, लेकिन यह सब तब संभव है जब नगर निगम अपनी जिम्मेदारी निभाए। आखिरकार, एक जागरूक नागरिक भी तभी आगे बढ़ेगा, जब उसे भरोसा होगा कि उसका सहयोग करने वाली व्यवस्था सक्रिय और प्रभावी है।
आखिरकार, यह सिर्फ विकास की बात नहीं है, यह स्वास्थ्य और जीवन की भी बात है।
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