उदयपुर। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की उदयपुर इकाई में इन दिनों कई मुद्दों पर आंतरिक तनाव और बहस जारी है, जो यह संकेत देता है कि पार्टी के भीतर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। हालिया घटनाओं—जैसे देवराज हत्याकांड के बाद हुई हिंसा, बुलडोजर कार्रवाई, और बीजेपी प्रदेश प्रभारी राधा मोहन अग्रवाल को काले झंडे दिखाने की घटना—ने पार्टी के भीतर गहरी दरारें उजागर कर दी हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा देशभर में होने वाली बुलडोजर कार्रवाइयों पर की गई तीखी टिप्पणी के बाद उदयपुर और मध्यप्रदेश के छतरपुर की कार्रवाइयों पर सबसे अधिक चर्चा हुई। खास बात यह है कि इन दोनों स्थानों की कार्रवाइयों में प्रभावित मुस्लिम थे। जब उदयपुर में इस मुद्दे पर सवाल उठे, तो बीजेपी के भीतर भी यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि प्रशासन के सामने बुलडोजर कार्रवाई की मांग किसने की थी। अब जब सवाल उठ रहे हैं, तो उस वक्त अग्रणी रहे नेता पीछे हटते हुए नजर आ रहे हैं और एक-दूसरे पर उंगलियां उठा रहे हैं।
उदयपुर में हुई हिंसा पर भी पार्टी के भीतर सवाल उठाए जा रहे हैं। पार्टी के भीतर ही चर्चा हो रही है कि हिंसा के लिए लोगों को भड़काने वाले कौन थे। एक वरिष्ठ नेता ने संघ का नाम लेकर वीडियो बनाने वालों को रोका था, जिससे यह संकेत मिलता है कि हिंसा के पीछे कौन लोग थे, इस पर पार्टी के भीतर खुलकर चर्चा हो रही है। हालांकि, पुलिस प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है, जो कि अक्सर सरकार के नजरिये पर निर्भर करती है। यह अफसरों की मजबूरी भी हो सकती है।
इस घटना के बाद पहली बार बीजेपी के प्रदेश प्रभारी राधा मोहन अग्रवाल को युवक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उदयपुर में काले झंडे दिखाए। उस वक्त उनके साथ कई बीजेपी नेता मौजूद थे। चर्चा इस बात की है कि जब उन्हें काले झंडे दिखाए गए, तब उनके सामने कौन नेता जाकर खड़ा हुआ और कौन-कौन कार में ही बैठा रहा। इसका जवाब देने के लिए बीजेपी में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को काले झंडे दिखाने का प्लान बना, लेकिन पार्टी के नेता पीछे हट गए।
हाल ही में नगर निगम बोर्ड की बैठक में बीजेपी के पार्षदों के बीच जो तीखी नोकझोंक हुई, उसने पार्टी की आंतरिक कलह को और भी स्पष्ट कर दिया। पार्षदों ने एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए, यहां तक कि ‘चोर’ और ‘डाकू’ तक कह दिया।
गहराती हुई इस बहस का लब्बोलुआब यह है कि उदयपुर बीजेपी में घमासान जारी है। इन नेताओं की निगाहें आने वाले जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर लगी है। इस पर कब्जा पाने के लिए एक दूसरे की खींचतान और दांव चले जा रहे हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपने सियासी दीये को जलाए रखना चाहते हैं, जिनमें अब तेल खत्म हो चुका है। आने वाले समय में उदयपुर बीजेपी की सियासी बिसात पर बहुत कुछ चालें और दांव देखने को मिलेंगे।
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