उदयपुर। ठीक एक साल पहले दो मुस्लिम कट्टरपंथी युवकों ने एक टेलर कन्हैयालाल साहू का कत्ल कर दिया। यह उदयपुर के लिए सबसे बुरा दिन था। इस घटना ने उदयपुर ही नहीं बल्कि पूरे देश में सांप्रदायिक सौहार्द को आघात पहुंचाया। घटना के बाद तमाम सियासतदां कन्हैयालाल के परिवार से मिलने पहुंचे और उन्हें संबल व सहायता प्रदान की। मिलनी भी चाहिए थी। मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी कर रही है और कई लोगों से पूछताछ के बाद अदालत में चालान पेश कर दिया गया। सुनवाई चल रही है। कन्हैयालाल का तो निधन हो गया, लेकिन उसकी दुकान पर काम करने वाले राजकुमार शर्मा और उनके परिवार को हर दिन मौत जैसे हालात से रूबरू होना पड़ रहा है।
दरअसल राजकुमार शर्मा इस घटना का चश्मदीद है। घटना के बाद से ही जांच एजेंसियों ने उन्हें कभी जयपुर तो कभी उदयपुर में ही पूछताछ के लिए बुलाया। काम धंधा छूट गया। जांच एजेंसियों ने भी उस वक्त घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी थी। तनाव की स्थिति में एक दिन राजकुमार शर्मा को ब्रेन स्ट्रोक आया और स्थिति गंभीर हो गई। प्रशासन से लेकर सीएमओ तक हलचल मची। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी परिजनों से बातचीत की। सांत्वाना तो दी। पांच लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी गई। शहर के कुछ अन्य लोगों ने भी मदद की, एक परिवार के लिए यह सहायता कितने दिन चल सकती है। परिवार ने बच्चे की नौकरी की मांग की थी, लेकिन नहीं मिली। राजकुमार शर्मा पिछले आठ दस महीनों से बेड पर है। परिवार रात दिन खिदमत कर रहा है और दुआएं मांग रहा है, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।
घटना से पहले राजकुमार शर्मा की बेटी की शादी तय हो गई थी, लेकिन पारिवारिक स्थिति के चलते खुद बेटी ने ही फिलहाल शादी करने से इनकार कर दिया क्योंकि पिता की बीमारी और परिवार को चलाने बोझ उसी पर आ गया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगातार मेवाड़ का दौरा कर रहे हैं, लेकिन हर दिन मौत से रूबरू हो रहे राजकुमार शर्मा से नहीं मिल रहे हैं। महात्मा गांधी होते तो परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी नहीं देने तक राजकुमार शर्मा के घर जाकर सत्याग्रह करते। ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की गांधी से तुलना करना बेमानी होगी।
बहरहाल चुनाव नजदीक है इसलिए कन्हैयालाल साहू के घर फिर सब नेताओं का आना जाना लगा रहेगा, लेकिन राजकुमार शर्मा से मिलने कोई नहीं जाएगा। जैसा कि भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी कन्हैयालाल के परिवार से तो मिले, लेकिन राजकुमार शर्मा के दर्द को वो साझा नहीं कर सके। सच यह है कि जिस कट्टर सोच की वजह से यह घटना घटित हुई, उसी सोच को और बढ़ावा दिया जा रहा है। जिस बाजार में लोगों ने होली और ईद पर खूब खरीदारी की, उस बाजार में दहशत कम करने की बजाय दहशत को बढ़ावा दिया जा रहा है, वो उस शहर में जो पर्यटन नगरी है, जहां इस घटना के बाद भी दोनों ही समुदाय के लोगों ने सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम की है। फिर भी आपकी विचारधारा जो भी हो आपको कमजोर और पीड़ित के साथ खड़ा होना चाहिए। खासतौर पर सरकार को क्योंकि हर नागरिक की सुरक्षा की जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की है। अगर आप घटना से पहले और घटना के बाद की राजकुमार शर्मा की तस्वीर देखेंगे तो आपकी भी आंखें भी नम हो जाएगी।
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