उदयपुर। उदयपुर में एक बार फिर इतिहास दोहराया गया—एक नए कलेक्टर साहब (नमित मेहता) ने पदभार ग्रहण किया। जबरदस्त स्वागत, कैमरों की फ्लैश में नहाए, और अधिकारियों से घिरे, कलेक्टर साहब ने आते ही ऐलान कर दिया—आपसी समन्वय से करें कार्य, आमजन को पहुंचाएं राहत। उदयपुर में पर्यटन की नई संभावनाओं को तलाशने के करेंगे प्रयास। स्वागत का दौर अभी कुछ दिन चलेगा। नेता, अभिनेता, व्यापारी, प्रभावशाली लोग कलेक्टर साहब का स्वागत करने जरूर आएंगे, जैसा कि वे हर बार करते हैं।
जब भी नए कलेक्टर ज्वाइन करते हैं, उसके बाद क्या स्थिति होती है…उसकी रिपोर्ट पढ़िए
यानी अगले कुछ हफ्तों तक जनता के आवेदन हाथों-हाथ लिए जाएंगे, अधिकारियों की फाइलें तेजी से पलटी जाएंगी, और हर समस्या के समाधान के लिए एक “विशेष बैठक” बुलाई जाएगी। फिर धीरे-धीरे…
पहला हफ्ता : “मीटिंग्स का महासागर”
कलेक्टर साहब अभी कुर्सी पर ठीक से बैठे भी नहीं कि बैक-टू-बैक बैठकें शुरू हो गईं।
पहली बैठक : “जिले की प्राथमिकताएं क्या हैं?”
(निष्कर्ष—सब कुछ प्राथमिकता में है, बस समाधान समय लेगा!)
दूसरी बैठक : “जनता दरबार लगाकर समस्याओं का समाधान किया जाएगा!”
(अब समस्या यह कि जनता दरबार में जनता की संख्या से ज्यादा अधिकारियों की फौज होती है।)
तीसरी बैठक : “स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को तेजी से पूरा किया जाएगा!”
(इस प्रोजेक्ट की तेजी ऐसी है कि चींटी भी इसे देख हंसी रोक न पाए!)
दूसरा हफ्ता : “मुआयना दौरों की धूम”
अब कलेक्टर साहब फील्ड में निकले—
अस्पताल गए—”स्वास्थ्य सेवाओं को और दुरुस्त किया जाएगा!” (अस्पतालों में डॉक्टर फिर भी नदारद)
ट्रैफिक पुलिस से मिले—”ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारना हमारी प्राथमिकता!” (अगले दिन शहर का सबसे बड़ा जाम!)
सफाई अभियान शुरू करवाया—”शहर को स्वच्छ बनाएंगे!” (फोटो खिंचते ही झाड़ू वापस रख दी गई)
तीसरा हफ्ता: “फाइलों का जंगल”
अब कलेक्टर साहब के सामने ढेरों फाइलें रख दी गईं।
“साहब, यह पर्यटन विकास योजना है!”
“साहब, यह पिछली सरकार के समय बनी योजना है, जिस पर कुछ काम नहीं हुआ!”
“साहब, यह नई योजना है, जिस पर आने वाले समय में भी कुछ नहीं होगा!”
कलेक्टर साहब ने सभी फाइलों को ध्यान से देखा, सर हिलाया, और सबको अगली मीटिंग में चर्चा करने के लिए टाल दिया।
छठा महीना : “ट्रांसफर की चर्चा”
अब अचानक अफवाहें उड़ने लगीं कि कलेक्टर साहब का तबादला होने वाला है!
अधिकारियों के चेहरे पर चिंता—”अब नए कलेक्टर साहब आएंगे, उन्हें फिर से सब समझाना पड़ेगा!”
जनता के चेहरे पर तटस्थ भाव—”कौन आया, कौन गया, हमारी समस्या तो जस की तस है!”
निष्कर्ष : “सब चलता रहेगा!”
हर नया कलेक्टर आते ही बड़े वादे करता है, लेकिन प्रशासनिक प्रक्रिया का पहिया इतना भारी होता है कि उसकी रफ्तार कभी तेज़ नहीं होती। बैठकों, दौरों और निर्देशों के बीच, आम जनता वहीं की वहीं खड़ी रहती है—ठीक उसी तरह, जैसे पिछली बार नए कलेक्टर के स्वागत में खड़ी थी!
क्योंकि कलेक्टर आते-जाते रहेंगे… लेकिन सिस्टम वही रहेगा!
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