उदयपुर बीजेपी में जो हालिया घटनाक्रम सामने आया है, वह न केवल गुटबाजी के संकेत दे रहा है, बल्कि एक नई राजनीतिक धारा की ओर भी इशारा करता है। नए जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड़ की नियुक्ति के बाद जो अब तक पार्टी के भीतर छिपी नूरा कुश्ती चल रही थी, अब खुलकर सामने आ गया है। इसकी गहराई में जाने पर यह साफ नजर आता है कि पुराने कलेक्टर की विदाई के समय जिले की टीम का नहीं होना, और अगले दिन कटारिया के करीबी नेताओं का आना, यह राजनीति के पंख फैलाने जैसा प्रतीत होता है।
यहां तक कि पार्टी के अंदरूनी घटनाक्रमों को देखकर लगता है कि पार्टी एक तरफ यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि वे एकजुट हैं, लेकिन अंदरूनी खींचतान और अलग-अलग खेमों का असर साफ नजर आ रहा है। पुराने जिलाध्यक्ष रवींद्र श्रीमाली और किरण जैन जैसे कटारिया समर्थक नेताओं का सक्रिय होना, यह संदेश दे रहा है कि राजनीति में कोई भी ‘नायक’ अकेला नहीं होता, खासकर जब बात बीजेपी जैसी पार्टी की हो, जहां सत्ता का खेल असीमित होता है।
हालांकि, इस गुटबाजी के बावजूद जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड़ का शहर में स्वागत दर्शाता है कि कुछ लोगों में उनकी लोकप्रियता है। यह एक संकेत हो सकता है कि पार्टी के भीतर की आपसी मतभेदों के बावजूद, नेता जनता के बीच अपनी छवि सुधारने में लगे हैं।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह गुटबाजी एक अस्थायी उथल-पुथल है या उदयपुर बीजेपी में एक लंबी राजनीतिक लड़ाई का हिस्सा? यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन एक बात तय है—राजनीतिक बिसात पर हर कदम अब सोच-समझकर रखने की जरूरत है।
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