
रात का अंधेरा धीरे-धीरे शहर पर हावी हो रहा था। उदयपुर की गलियों में आम दिनों जैसा सन्नाटा पसरा था, लेकिन टीकम सिंह राव के विशाल हवेली के भीतर हलचल अपने चरम पर थी। यह हलचल किसी साधारण घटना की नहीं, बल्कि एक ऐसे राज का पर्दाफाश कर रही थी, जिसने पूरे शहर को सन्न कर दिया।
28 नवंबर की सुबह, जब उदयपुर में सूरज की पहली किरणें झीलों पर झलकने लगीं, तभी इनकम टैक्स विभाग की टीमों ने ट्रांसपोर्ट व्यापारी टीकम सिंह राव और उनकी कंपनी पर छापेमारी का मन बनाया। 250 से ज्यादा अधिकारियों का यह दल, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में फैले उनके 23 ठिकानों पर एक साथ कार्रवाई कर रहा था। उनकी नजरें थीं उस संपत्ति पर, जिसके बारे में सिर्फ अफवाहें थीं, लेकिन अब वो हकीकत बनने वाली थी।
छिपा हुआ खजाना :
उदयपुर के सेक्टर-13 में स्थित टीकम सिंह राव के घर की तलाशी के दौरान टीम के हाथों कुछ ऐसा लगा, जिसे देखकर उनके होश उड़ गए। एक के बाद एक 25 किलो सोने की ईंटें, अलमारियों में छुपी नकदी और फिर गोदामों में छुपा रहस्य। इस सोने की चमक ने अंधेरे रहस्यों को उजागर करना शुरू कर दिया।
टीम को 8 लॉकर का पता चला, जिनमें और भी अधिक खजाने का शक था। जब शनिवार को इन लॉकरों को खोला गया, तो एक बार फिर आंखें चमक उठीं—लॉकरों में 25 किलो और सोना और 1 करोड़ रुपए नकद मिला। कुल मिलाकर अब तक 50 किलो सोना और 5 करोड़ कैश बरामद हो चुका था। इस पूरे मामले की कीमत 37 करोड़ रुपए तक आंकी गई।

साजिश की परतें :
जांच में पता चला कि यह मामला सिर्फ काले धन का नहीं, बल्कि अवैध ट्रांसपोर्टेशन का भी था। टीकम सिंह राव, जो बांसवाड़ा के भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष गोविंद सिंह राव के बड़े भाई थे, इस पूरे खेल के मास्टरमाइंड माने जा रहे थे। गोविंद सिंह खुद बांसवाड़ा में कंपनी का संचालन संभालते थे, और उनके कार्यालय से कई संदिग्ध दस्तावेज भी बरामद हुए।
घर या खजाना?
टीकम सिंह राव का सेक्टर-13 में तीन घरों का एक समूह था। इनमें से हर घर किसी किले जैसा लगता था, जहां टीम ने गहन जांच की। 2 किलोमीटर दूर उनके ट्रांसपोर्ट गोदाम और एक आलीशान रिजॉर्ट पर भी छापेमारी की गई। हर जगह, कुछ न कुछ ऐसा मिल रहा था, जो कहानी को और रहस्यमय बना रहा था।
आखिरी सुराग :
जैसे-जैसे रात बढ़ती जा रही थी, इनकम टैक्स अधिकारियों को एहसास हो रहा था कि यह मामला 100 करोड़ से ज्यादा की अघोषित संपत्ति तक जा सकता है। सोने और नकदी के अलावा, दस्तावेजों से और भी बड़े राज खुलने की उम्मीद थी।

अंतहीन रहस्य :
यह छापेमारी खत्म हो चुकी थी, लेकिन जो सवाल पीछे छोड़ गई, वो अभी भी हवा में गूंज रहे थे। आखिर यह संपत्ति कहां से आई? इतने सालों तक कैसे छुपाई गई? और क्या यह कहानी यहीं खत्म होगी, या अभी और राज़ सामने आने बाकी हैं?
“उदयपुर का सुनहरा रहस्य” केवल एक शुरुआत थी, जो आने वाले समय में और भी बड़े खुलासों की ओर इशारा कर रहा था।
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