उदयपुर की अद्वितीय सुंदरता, झीलों की नगरी, जहां हर सुबह सूरज की पहली किरणें झीलों के पानी में मुस्कुराती थीं, आज अपने अस्तित्व के लिए रो रही है। वर्षों तक उदयसागर झील ने इस शहर को जीवन दिया, लेकिन अब वह एक दर्दनाक सिसकी में डूबी हुई है।
इस झील के किनारे कभी बोट के मद्धम लहरों से टकराने की आवाजें गूंजती थीं। अब इन लहरों की जगह एक विशाल और भव्य होटल की परछाईं ने ले ली है। यह वही होटल है—रैफल्स उदयपुर—जिसे कभी “लक्जरी का प्रतीक” कहा गया, लेकिन इसने झील के इको सिस्टम को खत्म कर दिया।
पूजा सिंह, इस होटल की नई मार्केटिंग और संचार निदेशक, जब उदयपुर आईं, तो शायद उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि उनके करियर की यह नई भूमिका एक ऐसी जगह पर है जो खुद अपनी पहचान के लिए तरस रही है। पूजा का चेहरा भले ही आत्मविश्वास से भरा हो, लेकिन झील के किनारे से आती आहें और सिसकियां उनकी आत्मा को कभी न कभी झकझोर देंगी। बतौर कम्यूनिकेशन निदेशक पूजा सिंह कभी भी उदयपुर की प्रेस से बात नहीं कर पाएंगी क्योंकि उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि वे इन कड़वे सवालों का सामना नहीं कर पाएंगी।
होटल का निर्माण जिस तरीके से हुआ, उसने प्रकृति के नियमों को ठुकरा दिया। पक्षियों का बसेरा उजड़ गया, झील का पानी दूषित हो गया, और मछलियों का जीवन संकट में पड़ गया। जहां पहले उदयसागर झील एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र का केंद्र थी, आज वह एक उजाड़ खंडहर जैसा महसूस कराती है।
राजेश नाम्बी, होटल के महाप्रबंधक, कहते हैं, “पूजा सिंह हमारे ब्रांड को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगी,” लेकिन उदयपुर के निवासियों के लिए यह “नई ऊंचाई” उनकी संस्कृति और पर्यावरण की गिरावट के सिवा कुछ नहीं है।
कभी-कभी पूजा अपने कमरे की खिड़की से झील को देखती होंगी। शायद उन्हें झील का वह दर्द महसूस होता होगा, लेकिन उनकी जिम्मेदारियों और मार्केटिंग अभियानों की चकाचौंध उन्हें झील के आंसुओं को अनदेखा करने पर मजबूर करती है। वह इस होटल की ब्रांडिंग को बढ़ाने में पूरी लगन से लगी हैं, लेकिन हर बार जब वह झील के पास से गुजरती होंगी, तो झील की उदासी उनके दिल को हल्का सा कसक जरूर देती होगी।
यह कहानी सिर्फ पूजा सिंह या रैफल्स उदयपुर की नहीं है। यह कहानी है उस झील की, जिसने अपनी शुद्धता और शांति को खो दिया। यह कहानी है उस शहर की, जो अपनी विरासत और प्रकृति के विनाश को देखकर आंखों में आंसू लिए खड़ा है।
झील पुकारती है, लेकिन उसकी आवाज़ अब शोरगुल और चमचमाते होटल की दीवारों के पीछे दब गई है। उदयपुर के लोगों की आंखों में यह आंसू तब तक नहीं थमेंगे, जब तक झील को उसका जीवन, उसकी पहचान वापस नहीं मिलती।
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