उदयपुर। स्वच्छता अभियान की आड़ में दिखावे और सच्चाई के बीच की खाई दिन-ब-दिन गहरी होती जा रही है। एक तरफ बाड़मेर की कलेक्टर टीना डाबी हैं, जिन्होंने सफाई अभियान को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। उन्होंने दुकानदारों, वेंडर्स और खुद गंदगी फैलाने वालों को ज़बरदस्ती सफाई करने पर मजबूर किया। यहां तक कि खुद भी झाड़ू उठाई और जुर्माना लगाने की धमकी तक दे डाली। तीन दिन में बाड़मेर की सड़कों पर गंदगी मानो इतिहास का हिस्सा बन गई। लेकिन, उदयपुर? उदयपुर में सिर्फ रस्म अदायगी हो रही है, और वो भी इतनी बेतुकी कि हंसी छूट जाए।
उदयपुर में क्या हो रहा है? नगर निगम के अधिकारी रस्मी तौर पर कुछ खरपतवार झील से निकालते हैं, और उसपर भी फोटो खिंचवाकर अपनी पीठ थपथपा लेते हैं। क्या ये मजाक नहीं है? तस्वीरों में दिखाए जाने वाले काम से कहीं ज्यादा सफाई तो हर रविवार वरिष्ठ नागरिक और झील संरक्षण से जुड़े लोग, बिना किसी प्रचार के, निस्वार्थ भाव से करते हैं। क्या यही है ‘स्वच्छता अभियान’ का असली चेहरा?
स्वच्छता पर भाषण और ज़मीनी सच्चाई: क्या केवल बातें काफी हैं?
नगर निगम के उप महापौर और स्वास्थ्य समिति अध्यक्ष पारस सिंघवी ने बड़ी गंभीरता से कहा, “स्वच्छता ही सेवा पखवाड़ा के तहत गांधी जयंती तक सफाई अभियान चलाया जाएगा।” लेकिन इन भाषणों से क्या शहर सच में साफ हो जाएगा? या फिर ये बस एक और सरकारी औपचारिकता है? सिंघवी और नगर निगम आयुक्त राम प्रकाश ने झील से खरपतवार निकालते वक्त जो ‘शो’ किया, वो तो महज मीडिया की सुर्खियों के लिए था। हर नागरिक को लगता है कि क्या ऐसे ही भाषणों और रस्म अदायगी से उदयपुर की झीलें साफ हो जाएंगी?
अगर उदयपुर की झीलें इतनी महत्वपूर्ण हैं, तो सवाल ये है कि क्यों सालभर सिर्फ अभियान के नाम पर खानापूर्ति की जाती है? जहां आम लोग निस्वार्थ होकर हर हफ्ते सफाई करते हैं, वहीं नगर निगम के बड़े अधिकारी और पार्षद सिर्फ फोटो खिंचवाकर चले जाते हैं।
क्यों नहीं होती है जवाबदेही?
उदयपुर की झीलें सिर्फ पानी का स्रोत नहीं हैं, ये शहर की धरोहर हैं, पर्यटन का केंद्र हैं। लेकिन जब सफाई के नाम पर सिर्फ दिखावा हो, और असली सफाई करने वाले नागरिकों के योगदान को नजरअंदाज किया जाए, तो जिम्मेदारों से सवाल उठाना तो बनता है। क्या पारस सिंघवी और उनके साथ खड़े अधिकारी बस भाषण देकर शहर को साफ कर सकते हैं?
ऐसे में उदयपुर के नागरिकों का गुस्सा वाजिब है। जब जिम्मेदार लोग सिर्फ कैमरे के सामने दिखाने के लिए कुछ खरपतवार निकालकर चले जाते हैं, तो जनता क्यों न इन पर सवाल उठाए? क्यों न वो इन्हें गालियां दे? यही हालत रही तो सफाई के नाम पर ये सिर्फ एक मजाक बनकर रह जाएगा। क्या स्वच्छता अभियान का मतलब सिर्फ फोटो सेशन है?
अब बस, बहुत हो गया!
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