
उदयपुर। पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया के हालिया बयान ने एक बार फिर से विवादों को जन्म दिया है। उदयपुर के गोगुंदा क्षेत्र में आयोजित कार्यक्रम में कटारिया ने महाराणा प्रताप और उनके योगदान के बारे में अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप को सही पहचान जनता पार्टी के शासनकाल में मिली, और हल्दीघाटी, पोखरगढ़ और चावंड जैसे ऐतिहासिक स्थलों को विकास कार्यों के माध्यम से नई पहचान दिलाई गई। इसके साथ ही उन्होंने युवाओं से ईमानदारी, शिक्षा और विकास के मार्ग पर चलने की अपील की और समाज को बांटने वाले तत्वों के खिलाफ चेतावनी दी।
विवाद का कारण और सामाजिक प्रतिक्रिया
कटारिया के इस बयान को कुछ लोग महाराणा प्रताप के अपमान के रूप में ले रहे हैं। सोशल मीडिया पर करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज शेखावत द्वारा दिए गए धमकीपूर्ण बयान ने विवाद को और तेज कर दिया। उन्होंने कटारिया को जान से मारने की धमकी देते हुए कहा, “जहां मिले मारो।” यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गया और कई लोग इसे समर्थन देने लगे, जिससे स्थिति और जटिल हो गई।
पहले भी विवाद
यह पहला मामला नहीं है जब कटारिया के बयान ने विवाद पैदा किया हो। इससे पहले भी उनके कुछ भाषणों पर ऐतिहासिक दृष्टिकोण और राजनीतिक पक्षपात को लेकर आलोचना हुई थी। आलोचक कहते हैं कि उनके दृष्टिकोण में राजनीतिक नजरिया साफ दिखाई देता है, जबकि समर्थक इसे ऐतिहासिक तथ्यों और विकास कार्यों की पहचान बताने वाला बयान मानते हैं।
नजरिये का फर्क
इस विवाद में मुख्य अंतर नजरिये का है।
समर्थक दृष्टिकोण : कटारिया का बयान ऐतिहासिक तथ्यों और विकास कार्यों की सराहना करता है। उनका तर्क है कि उन्होंने समाज को बांटने वालों की आलोचना करते हुए युवाओं को सही मार्ग दिखाने की कोशिश की।
आलोचक दृष्टिकोण : उनके आलोचक इसे महाराणा प्रताप के अपमान और राजनीतिक एजेंडा से प्रेरित बताते हैं। इसके चलते भावनात्मक प्रतिक्रिया और हिंसक बयान सामने आए।
कानूनी और प्रशासनिक पहलू
उदयपुर पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। सोशल मीडिया पर किसी को जान से मारने की धमकी देना गंभीर अपराध है और इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 506 और IT एक्ट की धाराओं के तहत कार्रवाई की जा सकती है। राज्यपाल की सुरक्षा के मद्देनजर प्रशासन संभावित कदम उठा सकता है।
कटारिया का बयान और उस पर हुई प्रतिक्रिया दिखाती है कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मुद्दे भारतीय राजनीति में संवेदनशील हैं। ऐसे विवाद केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं रहते, बल्कि सामाजिक तनाव और हिंसा की संभावना भी बढ़ाते हैं। यह मामला एक बार फिर से यह याद दिलाता है कि राजनीतिक और सामाजिक बयान देते समय संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जबकि जनता को भी किसी विवाद पर प्रतिक्रिया देने से पहले तथ्यों को समझना चाहिए।
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