उदयपुर। उदयपुर विधानसभा सीट पर खो-खो के खिलाड़ी की दावेदारी सबसे चर्चित है। अपनी किशोरावस्था और जवानी में इस खेल की बारीकियां जानकर अपनी टीम को जिताने वाला यह खिलाड़ी सियासत में भी पूरे दम के साथ दौड़ रहा है और विरोधियों को छका रहा है। लेकिन सियासत के इस खेल में उन्हें कितनी सफलता मिलेगी यह वक्त बताएगा। जी हां हम बात कर रहे हैं डिप्टी मेयर पारस सिंघवी की।
दरअसल खो खो वह खेल है जिसका भारत के महाकाव्य महाभारत से कनेक्शन है। जुझारू परिस्थितियों में खेला जाने वाला खेल खो खो में गति, सटीकता, बुद्धिमत्ता और चपलता की आवश्यकता होती है। यही स्थिति सियासत की भी है।
महाभारत एक प्राचीन भारतीय महाकाव्य है जो हस्तिनापुर राज सिंहासन के लिए दो चचेरे भाईयों कौरव और पांडवों के बीच भीषण युद्ध पर आधारित है। इस महाकाव्य में पांडव नायक हैं और कौरव विरोधी हैं। इसका मुख्य कथानक 18 दिनों तक चलने वाले युद्ध के इर्द-गिर्द घूमता है।
उदयपुर में बीजेपी की सियासत भी इस वक्त दावेदारों के इर्द गिर्द घूम रही है। इसमें व्यक्तिगत रूप से कोई पांडव है तो कोई कौरव की भूमिका है। द्रोणाचार्य की तरह ही यहां भी सियासत के दिग्गज गुलाबचंद कटारिया को ही सब अपना गुरु मान रहे हैं, लेकिन महाभारत के युद्ध में वह स्वयं कौरव की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे। उन्होंने चक्रव्यूह तैयार किए, जो बेहद घातक और अभेद्य था।
ठीक इसी तरह असम राजभवन से सियासी चक्रव्यूह तैयार किया गया है। महाभारत में पांडवों की पराजय निश्चित थी, लेकिन यहां पांडव कौन होगा और कौरव कौन होगा, इसका खुलासा इसलिए नहीं हो पा रहा है कि सियासी गुरु के सामने सब खुद को कौरव ही मान रहे हैं।
अब तक जो कुछ भी सामने आया है उससे लगता है कि किसी भी तरह खेल खेलने वालों को गुरु पांडव ही मान रहें हैं। यही वजह है कि खिलाड़ियों ने कौरवों की दुखती रग पर हाथ रखना शुरू कर दिया है और वे अपने अन्य गुरुओं के संपर्क में भी हैं। यही नहीं, उन्होंने अपने नए सियासी गुरु बनाने की भी बात कर ली है।
युद्ध के 13 वें दिन गुरु द्रोणाचार्य जो पांडवों और कौरवों दोनों के युद्ध शिक्षक थे, लेकिन महाभारत के युद्ध में वह स्वयं कौरव की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे। उन्होंने चक्रव्यूह तैयार किया, जो बेहद घातक व लगभग अभेद्य युद्ध व्यूह रचना थी। चक्रव्यूह ऐसी रचना थी, जिससे पांडव की पराजय बिल्कुल निश्चित थी।
दरअसल पांचों पांडव में से सिर्फ अर्जुन ही चक्रव्यूह को भेदना जानते थे, जबकि बाकी सभी चार भाई इस व्यूह को तोड़ना नहीं जानते थे। अर्जुन की गैरमौजूदगी में अर्जुन के युवा पुत्र अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ने का निश्चय किया। हालांकि अभिमन्यु को चक्रव्यूह का भेदन तो पता था, लेकिन उसे इससे निकलना नहीं आता था।
चक्रव्यूह में अभिमन्यु ने बड़े ही आक्रामक अंदाज में प्रवेश किया, लेकिन केंद्र में उस अकेले के सामने कई महारथी थे, जहां उसकी हत्या हो जाती है। लेकिन पांडवों के लिए चक्रव्यूह तोड़कर अभिमन्यु ने युद्ध का पलड़ा उनकी ओर मोड़ दिया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि गुरु के चक्रव्यूह को खिलाड़ी भेदकर प्रवेश कर जाए, लेकिन, सवाल यह है कि क्या वो अपने राजनीतिक करियर को बचा पाएंगे।
नोट : उम्मीद है आपको यह खबर समझ आएगी। नहीं आए तो कटारिया के नजदीकी और उनकी राजनीति पुरानी चालों को देख कर समझें।
About Author
You may also like
-
अतिक्रमण के खिलाफ निगम की बड़ी कार्रवाई : ब्रह्मपोल बाहर दरगाह के सामने 2 बीघा 8 बिस्वा बेशकीमती भूखंड कराया कब्जा मुक्त, यहां बनेगी पार्किंग
-
उदयपुर में स्कूटी सवार की हत्या पर समाज ने सड़कों पर प्रदर्शन किया: आरोपियों के घर बुलडोजर, परिवार के लिए एक करोड़ रुपए की मांग
-
उदयपुर में वकीलों का अरावली संरक्षण आंदोलन: कोर्ट से कलेक्ट्रेट तक रैली, प्रकृति से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं
-
जयपुर में दो फार्मासिस्ट गिरफ्तार : प्रतिबंधित दवाइयों और नशीले इंजेक्शनों की तस्करी का खुलासा
-
मोदी का बंगाल दौरा: TMC पर आरोप—कमीशनखोरी और विकास रोके जाने का मामला, केंद्र और राज्य के बीच नया राजनीतिक टकराव