उदयपुर। उदयपुर में इस वक्त बीजेपी में विधानसभा टिकट के लिए दावेदारों की बाढ़ सी आई है। यह बात अलग है कि शहर अखबारों, यूट्यूब व डिजिटल मीडिया में चंद लोगों के नाम ही चल रहे हैं। उन्हीं के इंटरव्यू लिए जा रहे हैं। एक नजर डालेंगे और लोगों से जानकारी लेंगे तो पता चलेगा कई पार्षद भी दावेदारी की दौड़ में है।
अभी तक जो सामने आया है कि उनमें पूर्व सभापति (चूंकि अब उदयपुर में मेयर का पद है) रवींद्र श्रीमाली, युधिष्ठिर कुमावत, पूर्व मेयर डांगी का नाम शामिल है। मौजूद डिप्टी मेयर पारस सिंघवी, वर्तमान निर्माण समिति अध्यक्ष ताराचंद जैन, पूर्व अध्यक्ष प्रमोद सामर, किरण जैन का नाम प्रबल दावेदारों के रूप में शामिल हैं।
अगर यही दावेदारी का आधार है तो पूर्व मेयर चंद्रसिंह कोठारी, पूर्व में दो बार उपसभापति रहे वीरेंद्र बापना, हीरालाल कटारिया, पूर्व डिप्टी मेयर महेंद्र सिंह शेखावत, लोकेश द्विवेदी भी दावेदार हैं। ऐसा नहीं है कि इन पदों पर रहते हुए शहर के विकास कार्यों में इनका कोई योगदान नहीं रहा हो। वैसे इनकी दावेदारी खुलकर सामने नहीं आई है।
इसी प्रकार पूर्व में पार्षद और ट्रस्टी रहे नानालाल वया जो लगातार पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से दिए गए सभी दायित्वों का निर्वाह कर रहे हैं। संघ के निर्देशों पर काम करने वाले ऐसे उदयपुर में कई लोग है जो लगातार अपने दायित्वों का निर्वाह कर रहे हैं। पूर्व पार्षद रहे जगत नागदा ने भी प्रदेश के समक्ष अपने कार्यों की सूची भेजकर उदयपुर शहर से दावेदारी की है। नगर परिषद बोर्ड व निगम में दो बार या इससे अधिक पार्षद रहे मनोहर चौधरी, श्रीमती हंसा माली, राकेश पोरवाल, सिद्धार्थ शर्मा आदि ने भले ही खुलकर दावेदारी नहीं जताई हो, लेकिन मौका मिले और पार्टी जिम्मेदारी दे तो कौन इनकार कर सकता है।
दरअसल पार्षदों का दावा इसलिए भी मजबूत है क्योंकि उदयपुर निकाय में पार्षद रहे त्रिलोक पूर्बिया, फूल सिंह मीणा विधायक चुने गए थे। इसी प्रकार महिला पार्षदों की दावेदारी भी इसलिए प्रबल है कि उदयपुर में ही पार्षद चुनीं गईं स्व. किरण माहेश्वरी ने राजनीति में सभापति से लेकर सांसद, विधायक और मंत्री तक का सफर तय किया था।
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