विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस : हिन्दुस्तान जिंक ने पारिस्थितिकीय बहाली में रचा नया कीर्तिमान

13 हेक्टेयर औद्योगिक भूमि को बदला हरित क्षेत्र में, TERI और IUCN के साथ साझेदारी

उदयपुर। भारत की अग्रणी और दुनिया की सबसे बड़ी एकीकृत जिंक उत्पादक कंपनी हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड ने विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के अवसर पर अपनी सस्टेनेबिलिटी यात्रा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज की है। कंपनी ने पारिस्थितिकीय बहाली के अपने दूसरे चरण के तहत राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले स्थित चंदेरिया लेड जिंक स्मेल्टर में 7 हेक्टेयर बंजर औद्योगिक भूमि को हरित क्षेत्र में बदल दिया है। यह कार्य द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) के सहयोग से पूरा किया गया है। इससे पहले पहले चरण में कंपनी 6 हेक्टेयर भूमि को पुनर्जीवित कर चुकी थी। इस प्रकार कुल 13 हेक्टेयर क्षेत्र को हरित पारिस्थितिकी तंत्र में बदला जा चुका है।


यह बहाली ज़ेरोफिक्स युक्त औद्योगिक बंजर भूमि पर की गई, जहां कंपनी ने उन्नत माइकोराइजा तकनीक का प्रयोग कर पौधों की जड़ों और फफूंद के बीच सहजीवी संबंध को प्रोत्साहित किया, जिससे कठोर परिस्थितियों में भी वनस्पति का विकास संभव हो पाया। पहले चरण में लगाए गए 11,000 देशी पौधों के बाद अब दूसरे चरण में 15,000 अतिरिक्त पौधे लगाए गए, जिससे एक आत्मनिर्भर पारिस्थितिकीय तंत्र की स्थापना हो सकी।


अपनी बहाली रणनीति के तहत हिन्दुस्तान जिंक ने राजस्थान के विभिन्न परिचालन स्थलों पर हाइड्रोसीडिंग तकनीक अपनाई, जिसमें देशी वृक्षों जैसे शीशम, बबूल, खैर, करंज और डालबर्गिया लैटिफोलिया, के साथ स्थानीय घासों की प्रजातियों तथा औषधीय झाड़ियों जैसे कालमेघ और अश्वगंधा के बीजों का मिश्रण शामिल किया गया। इसका उद्देश्य जैव विविधता को पुनर्जीवित करना और भूमि के आवरण को सुदृढ़ बनाना है।


कंपनी ने चंदेरिया, देबारी और दरीबा में मियावाकी वनीकरण पद्धति भी अपनाई है, जो पारंपरिक वृक्षारोपण की तुलना में 10 गुना तेजी से वृक्षों की वृद्धि करती है और 30 गुना अधिक घनत्व प्रदान करती है। अब तक 2.4 हेक्टेयर क्षेत्र में 65 से अधिक देशी प्रजातियों के 32,500 पौधे लगाए जा चुके हैं। हाल ही में कायड़ खदान में भी 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में मियावाकी जंगल की स्थापना की गई है।


प्रकृति संरक्षण की दिशा में एक और बड़ी पहल करते हुए, हिन्दुस्तान जिंक ने उदयपुर वन विभाग के साथ बागदरा मगरमच्छ संरक्षण रिजर्व को पुनर्जीवित करने के लिए समझौता किया है। यह परियोजना 5 करोड़ रुपये के निवेश से लगभग 400 हेक्टेयर क्षेत्र को समृद्ध मगरमच्छ आवास में परिवर्तित करने का प्रयास है।


पर्यावरणीय उत्तरदायित्व को अपनी कारोबारी योजना में एकीकृत करते हुए, कंपनी ने इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) के साथ साझेदारी कर अपनी सभी परिचालन इकाइयों के लिए साइट-विशिष्ट जैव विविधता प्रबंधन योजनाएं तैयार की हैं। ये योजनाएं वैश्विक सर्वोत्तम मानकों के अनुरूप हैं और इनका उद्देश्य जैव विविधता संरक्षण, पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली और खदान बंदी के उत्तरदायी उपाय सुनिश्चित करना है।


इस अवसर पर हिन्दुस्तान जिंक के सीईओ अरुण मिश्रा ने कहा, “हिन्दुस्तान जिंक में हम मानते हैं कि औद्योगिक नेतृत्व को पर्यावरणीय जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ना चाहिए। हमारी बहाली परियोजनाएं यह साबित करती हैं कि खनन केवल संसाधन दोहन नहीं, बल्कि पुनर्जीवन का माध्यम भी हो सकता है।”


पर्यावरणीय, सामाजिक और संचालन (ESG) के क्षेत्र में नेतृत्व करते हुए, हिन्दुस्तान जिंक भारतीय उद्योग की पहली कंपनी बन गई है, जिसने नेचर-रिलेटेड फाइनेंशियल डिस्क्लोजर (TNFD) रिपोर्ट जारी की है। इसके अलावा कंपनी ने 2025 के दौरान 1.5 लाख से अधिक पौधे लगाने का संकल्प लिया है, जिससे वह अपने परिचालन के साथ-साथ समाज और प्रकृति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को और भी मजबूत कर रही है।


कंपनी का व्यापक उत्पाद पोर्टफोलियो पर्यावरण उत्पाद घोषणा (EPD) से सत्यापित है, जो उत्पादों के पर्यावरणीय प्रभाव की स्पष्ट जानकारी प्रदान करता है। इसके अलावा हिन्दुस्तान जिंक मेटल एंड माइनिंग क्षेत्र की भारत की पहली कंपनी है जिसने 1.5 डिग्री सेल्सियस के वैश्विक तापमान लक्ष्य के अनुरूप विज्ञान आधारित लक्ष्य (SBTi) हासिल किए हैं।


इन तमाम पहलों के माध्यम से हिन्दुस्तान जिंक न केवल पर्यावरणीय संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभा रही है, बल्कि भारत के सतत विकास लक्ष्यों और वैश्विक जलवायु लक्ष्यों में भी एक अहम योगदान दे रही है।

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