तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे…रिश्तों का मुकम्मल एहसास

शंकर-जयकिशन के संगीत पर हसरत जयपुरी के बोलों (तुम हमें यूं भुला न पाओगे) को जब मोहम्मद रफ़ी की आवाज मिलती है तो वह बस नग़मा नहीं रह जाता, एक गहरा एहसास बन जाता है। वैसे यह गीत महबूब की मुहब्बत के लिए लिखा गया है, लेकिन गीतकार के ये शब्द स्व. प्रो. विजय श्रीमाली के लिए सटीक बैठते हैं, जिनको इस दुनिया से विदा हुए छह साल हो गए, लेकिन उनके चाहने वालों के जहन में वे आज भी उसी ताकत की तरह दिखाई पड़ते हैं, जितनी ताकत उन्होंने अपने जीवनकाल में दोस्तों, रिश्तेदारों को दी थी। यही वजह है कि उनके दोस्त, छात्र, टीचर्स यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी लीडर जिनके साथ भी उन्होंने काम किया, वो उनको नहीं भूल पाए हैं। उन्होंने लोगों के साथ जितने मुकम्मल रिश्ते निभाए थे, उतनी ही शिद्दत से विरोधियों को भी जवाब दिए थे। इसलिए विरोधी भी उन्हें नहीं भूल पाएंगे।

प्रो. विजय श्रीमाली ने शिक्षा, समाज, राजनीति और पर्यावरण के क्षेत्र में बेहतरीन काम किया। यूनिवर्सिटी का रिपोर्टर होने के नाते उनके साथ बिताए लम्हे इत्र की तरह थे, जिन्हें याद करके जहन को महकाया जा सकता है। 21 जुलाई को उनकी पुण्य तिथि की पूर्व संध्या पर उनकी याद ने फिर एक बार जहन को महकाने का मौका दिया है। उनका जाना परिजनों के लिए तो बहुत बड़ा सदमा था ही, उनके दोस्तों, छात्रों, साथी टीचर्स के लिए भी बड़ी दुख की घड़ी थी। आज भी यदि आप उनके चाहने वालों से मिलेंगे तो उनके द्वारा की गई मदद के किस्से खत्म नहीं होंगे। दुनिया से उनका जल्दी चला जाना एक अधूरी कहानी की तरह हैं। जहां दास्तानें अधूरी रह जाती है वहां सिवाय यादों के कुछ और सहेजने को नहीं रह जाता। इन्हीं अधूरे जज्बातों को उनकी यादों के जरिये ही समेटा जा सकता है।


जैसे ढलती शाम न जाने कितने बीत चुके पलों को खींच कर ले आती है, उसी तरह प्रो. विजय श्रीमाली की पुण्य तिथि पर होने वाले कार्यक्रम उनकी याद दिला ही देते हैं। उनके बाद भी जिंदगी के सफर में कई फसाने आंखों के सामने गुजर जाएंगे…लेकिन हम उन्हें नहीं भूला पाएंगे।

परिवार के अलावा उनके दिल से जुड़े दो स्थान थे, पहला सूरजपोल और दूसरा यूनिवर्सिटी, जहां उनका ज्यादातर समय बीतता था। आज भी जब आप यूनिवर्सिटी जाएंगे और प्रो. विजय श्रीमाली की बात छेड़ेंगे तो उनकी किस्सागोई शुरू हो जाएगी। हालांकि उनके विरोध में भी किस्से सुनने को मिलेंगे, लेकिन उनकी संख्या काफी कम होगी। अपने आक्रामक स्वभाव के कारण कई लोग उनसे दूरी बनाकर रखते थे, लेकिन ज्यादातर लोग ऐसे मिलेंगे जो उनके अहसानों का जिक्र आज भी करते हुए नहीं भूलते हैं।
सूरजपोल चौराहे पर वक्त बिताए बगैर उनका दिन पूरा नहीं होता था। उनके जाने के बाद चौराहे पर राजनीतिक किस्सागोई भी खत्म सी हो गई है।

हालांकि यहां मजमा जमाने वाले और लोग भी इस दुनिया में नहीं रहे इसलिए जो हैं उन्होंने भी आना छोड़ दिया। राजनीतिक क्षेत्र में पूर्व सभापति युधिष्ठिर कुमावत, अनिल सिंघल, कमर इकबाल उनके अति करीबी रहे हैं, उनकी कार्यशैली को इन दोस्तों में देखा जा सकता है जो अपने चाहने वालों की मदद के लिए हमेशा तैयार खड़े मिलते हैं। मदद नहीं कर पाए तो आपको सही रास्ता जरूर बता देंगे। यही वजह है कि उनके ये दोस्त पार्टी में पद पर नहीं होते हुए भी लोगों के दिलों में जगह बनाए हुए हैं। बहरहाल प्रो. विजय श्रीमाली अजमेर यूनिवर्सिटी में मात्र तीन महीने ही कुलपति के पद पर रहे, लेकिन उनके कार्यकाल को अजमेर की जनता भी नहीं भूल पाई है।


प्रो. विजय श्रीमाली ने जिस हद तक जाकर लोगों की मदद की है वो कल्पना भी कल्पना से परे है। जो उनको दूर से जानते थे, उनके लिए ये बातें अतिश्योक्ति हो सकती है, लेकिन जिन लड़कों की उन्होंने फीस जमा करवाई, जिनका एडमिशन करवाया, जिसकी लड़की की शादी तय और शादी करवाई, जिन आर्थिक या सामाजिक रूप से कमजोर लोगों के साथ वे पहाड़ बनकर खड़े हुए वो इन बातों को यतार्थ मानते हैं। यही वजह है कि प्रो. श्रीमाली के लिए गीत की यह पहली लाइन सटीक बैठती है कि तुम हमें यूं भूला न पाओगे।

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