
“क्या शादी करना गुनाह है?”
यह सवाल जब दिलीप घोष ने मीडिया से मुस्कराते हुए पूछा, तो खबर ने पल भर में बंगाल से दिल्ली तक की राजनीति को हिला दिया।
जी हां, बात हो रही है पश्चिम बंगाल बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और फायरब्रांड नेता दिलीप घोष की, जिन्होंने 60 साल की उम्र में पहली बार शादी करने का फैसला करके सबको चौंका दिया। और ये कोई साधारण शादी नहीं, बल्कि इसके पीछे एक प्रेम कहानी है, मां की जिद है, और संघ के संस्कारों से टकराती इंसानी भावना।
वक्फ कानून की गर्मी के बीच विवाह की नर्मी
जब बंगाल में वक्फ कानून में संशोधन को लेकर बवाल मचा हुआ है, उसी दौरान दिलीप घोष की शादी की खबर ने माहौल को अचानक बदल दिया। कोलकाता के न्यूटाउन स्थित उनके घर पर एक सादगी भरा, बेहद निजी समारोह हुआ, जिसमें शामिल थे सिर्फ चुनिंदा रिश्तेदार और कुछ करीबी लोग।
दुल्हन बनीं रिंकी मजूमदार, जो बीजेपी की महिला मोर्चा की सक्रिय कार्यकर्ता हैं, तलाकशुदा हैं और एक 25 साल के बेटे की मां भी। उम्र में उनसे 10 साल छोटी, लेकिन साथ में जीवन शुरू करने का जोश दोनों में बराबर।
संघ का रास्ता छोड़, रिश्ते का रास्ता चुना
1984 में आरएसएस से जुड़े दिलीप घोष अब तक ब्रह्मचारी जीवन ही जीते रहे। चुनावी मंचों, संघर्ष और विचारधारा के बीच उन्होंने कभी विवाह की ओर मुड़कर नहीं देखा। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद जब वे भावनात्मक रूप से टूटे, तो उनके जीवन में सांत्वना बनकर आईं रिंकी।
रिंकी ने ही शादी का प्रस्ताव रखा—”अब मेरे साथ कोई नहीं है, मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं।”
पहले दिलीप ने मना कर दिया। फिर बीच में आईं मां पुष्पलता घोष।
उन्होंने बेटे से कहा—”अब बहुत हो गया राजनीति, अब जीवन भी जी लो।”
एक रिश्ते की बुनियाद—संघ के शिविर से सगाई तक
रिंकी और दिलीप की पहली मुलाकात एक बीजेपी कार्यक्रम में हुई थी। फिर दोस्ती बढ़ी, और धीरे-धीरे ये रिश्ता आत्मीयता में बदल गया। दिलीप ने रिंकी को पार्टी में लाने में भी मदद की थी। दोनों एक ही इलाके—न्यूटाउन, कोलकाता—में रहते हैं, इसलिए मिलना-जुलना भी सहज रहा।
रिंकी ने दिलीप की मां से बात कर शादी की सहमति भी खुद ही जुटाई। यही नहीं, तीन अप्रैल को रिंकी, दिलीप और उनका बेटा साथ में केकेआर का आईपीएल मैच भी देखने गए थे—जिसे कई लोग अब “प्री-वेडिंग आउटिंग” कह रहे हैं।
शादी पर पार्टी में मतभेद : छवि या निजी फैसला?
बीजेपी के एक वर्ग और संघ के कुछ वरिष्ठों को दिलीप घोष की शादी “वक़्त के लिहाज़ से सही नहीं” लगी। 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं, घोष की छवि एक अनुशासित प्रचारक की रही है। ऐसे में इस शादी से जनता के मन में क्या संदेश जाएगा, इस पर अंदरखाने चर्चा तेज़ हो गई है।
लेकिन दिलीप घोष अडिग हैं—”ये मेरा निजी फैसला है, और शादी करना कोई जुर्म नहीं।”
अब जबकि दिलीप घोष शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं, सवाल ये है कि क्या उनकी भूमिका राजनीति में थोड़ी धीमी होगी? या फिर ये शादी उनके जीवन में एक नई ऊर्जा लेकर आएगी, जो उन्हें 2026 के मिशन के लिए और तैयार करेगी?
मां अब बहू के साथ खुश हैं, घर में रिश्तों की गर्माहट है, और बंगाल की राजनीति में एक नई कहानी शुरू हो चुकी है।
आख़िर में…दिलीप घोष की शादी ने एक अहम सवाल उठाया है—क्या एक राजनेता को निजी जिंदगी जीने का हक नहीं? जहां अधिकतर नेता चुनावी जोड़तोड़ में उलझे हैं, वहीं घोष ने संघ की परंपरा से आगे बढ़कर इंसानी रिश्ते को चुना।
इस शादी में सिर्फ रीत नहीं, रीति बदलने की हिम्मत दिखती है।
और शायद यही वजह है कि ये शादी सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि राजनीति में रिश्तों की वापसी की दस्तक बन चुकी है।
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