तेहरान/तेल अवीव। पश्चिम एशिया एक बार फिर युद्ध की आग में झुलसने के कगार पर खड़ा है। शुक्रवार सुबह, इजराइली वायुसेना ने ईरान की राजधानी तेहरान और आसपास के इलाकों में छह सैन्य ठिकानों पर हमला किया। इन हमलों में ईरान के सबसे वरिष्ठ सैन्य और वैज्ञानिक अधिकारियों के मारे जाने की खबर है। घटनाक्रम के बाद से क्षेत्र में भय, असमंजस और वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक खलबली मच गई है।
क्या हुआ हमले में?
न्यूयॉर्क टाइम्स और अल-जज़ीरा जैसी अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार:
तेहरान में छह सैन्य ठिकानों पर मिसाइल और ड्रोन से हमला किया गया।
IRGC (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स) के कमांडर हुसैन सलामी मारे गए।
ईरानी आर्मी चीफ मोहम्मद बाघेरी के मारे जाने की भी इजराइली मीडिया में पुष्टि की जा रही है।
दो प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक — मोहम्मद मेहदी तेहरांची और फेरेदून अब्बासी भी हमले का शिकार बने।
कई नागरिक इमारतों, वाहनों और प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचा।
क्यों खास थे हुसैन सलामी और मोहम्मद बाघेरी?
हुसैन सलामी
IRGC चीफ के रूप में हुसैन सलामी ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल रणनीति और परमाणु प्रोग्राम के कर्ताधर्ता थे। उनकी मौत ईरान की सामरिक रीढ़ तोड़ने के समान मानी जा रही है।
मोहम्मद बाघेरी
ईरान के सेना प्रमुख रहे बाघेरी का मारा जाना दर्शाता है कि इजराइल ने इस हमले की योजना गहराई से बनाई थी और उसका मकसद केवल सैन्य ठिकानों को नुकसान पहुंचाना नहीं बल्कि कमांड स्ट्रक्चर को खत्म करना था।
इजराइल की मंशा क्या है?
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा:
“अगर अभी कार्रवाई नहीं की गई, तो आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित नहीं रहेगा।”
उन्होंने दावा किया कि:
यह हमला ईरान के परमाणु खतरे को खत्म करने के उद्देश्य से किया गया है।
इजराइल ईरानी सरकार से लड़ रहा है, न कि जनता से।
यह कार्रवाई पूरी दुनिया की सुरक्षा के लिए जरूरी थी।
नेतन्याहू के भाषण के मुख्य बिंदु इशारा करते हैं कि इजराइल इसे “रक्षात्मक हमला” मान रहा है और उसकी रणनीति अब पूर्व-आक्रामक (preemptive strike) में बदल गई है।
ईरान की प्रतिक्रिया: अब क्या?
इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक ईरान की ओर से आधिकारिक सैन्य प्रतिक्रिया की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन:
तेहरान में आपातकालीन बैठकें चल रही हैं।
IRGC ने “कड़ी प्रतिक्रिया” की चेतावनी दी है।
सोशल मीडिया पर ईरानी युवाओं का आक्रोश और शोक देखा जा रहा है।
संभावित प्रतिक्रियाएँ:
इराक, सीरिया, यमन या लेबनान स्थित ईरानी समर्थक गुट जैसे हिज़बुल्लाह या हौथी विद्रोही इजराइल पर जवाबी हमला कर सकते हैं।
सीधा मिसाइल हमला इजराइली सैन्य अड्डों या शहरों पर हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ क्या कहती हैं?
अभी तक की खबरों के अनुसार:
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाए जाने की संभावना है।
अमेरिका की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया, लेकिन यह माना जा रहा है कि इजराइल ने वॉशिंगटन को पहले से जानकारी दी थी।
रूस और चीन जैसे देश हमले की निंदा कर सकते हैं और स्थिति को भड़काने वाला कदम बता सकते हैं।
सऊदी अरब, UAE और अन्य अरब देश मूक समर्थन या चुप्पी की नीति अपना सकते हैं।
क्या यह एक बड़े युद्ध की शुरुआत है?
इतिहास गवाह है कि इजराइल और ईरान के बीच तनाव लंबे समय से जारी है, लेकिन यह हमला सीधा सैन्य टकराव है जो अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है।
ईरान अगर जवाबी हमला करता है, तो यह संघर्ष पूर्ण युद्ध में बदल सकता है।
यह युद्ध सिर्फ इन दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा — इससे पूरे पश्चिम एशिया में आग लग सकती है, जिसमें लेबनान, सीरिया, यमन और शायद खाड़ी देश भी खिंच सकते हैं।
साथ ही, तेल और गैस की आपूर्ति प्रभावित होने से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ेगा।
भारत और दुनिया के लिए मायने क्या हैं?
भारत के लिए खतरे:
भारत, जो ईरान और इजराइल दोनों से संबंध रखता है, राजनयिक संतुलन के मुश्किल दौर में होगा।
तेल की कीमतों में तेज उछाल हो सकता है, जिससे महंगाई और व्यापार घाटे पर असर पड़ेगा।
भारतीय नागरिकों की सुरक्षा, खासकर ईरान और इजराइल में रह रहे भारतीयों को लेकर चिंता बढ़ेगी।
दुनिया के लिए संकट:
तेल आपूर्ति के बाधित होने से अमेरिका, यूरोप और एशिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।
शरणार्थी संकट और आतंकी गतिविधियों में इजाफा हो सकता है।
वैश्विक कूटनीति में नया ध्रुवीकरण उत्पन्न हो सकता है — पश्चिम बनाम ईरानी गठबंधन।
निष्कर्ष: “फैसले की घड़ी” या “युद्ध का उद्घोष”?
इजराइल ने अपनी तरफ से स्पष्ट कर दिया है कि यह हमला सिर्फ जवाब नहीं, बल्कि रणनीतिक चेतावनी भी है। ईरान की प्रतिक्रिया तय करेगी कि यह टकराव सीमित रहेगा या परमाणु युद्ध के करीब जाएगा।
इस घटना को लेकर वैश्विक स्तर पर जो सबसे बड़ा डर है, वह यह है कि अगर ईरान ने कोई बड़ा जवाबी हमला किया, तो इस्राइल अपनी न्यूक्लियर पॉलिसी के तहत कदम उठा सकता है। यही वह स्थिति होगी जिसे हर हाल में टालना चाहिए।
अंतिम बात:
आज का दिन वाकई में एक ऐसे मोड़ पर ले आया है जहां “अच्छाई बनाम बुराई” जैसे शब्दों से ज्यादा जरूरी है संवेदनशीलता, समझदारी और संयम। इतिहास गवाह है कि युद्धों में कोई जीतता नहीं, सब कुछ हार जाता है।
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