दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के शांत और खूबसूरत तट अब रहस्य और चिंता का केंद्र बन गए हैं। मार्च 2025 से अब तक यहां समुद्र के पानी में अचानक फैले हरे-नीले शैवाल (एलगल ब्लूम) ने कहर बरपा दिया है। 4,500 वर्ग किलोमीटर तक फैले इस जैविक संकट के कारण 200 से ज़्यादा समुद्री जीव दम घुटने से मारे जा चुके हैं। मारे गए जीवों में नन्ही शिशु मछलियों से लेकर विशाल सफेद शार्क तक शामिल हैं।
वैज्ञानिक इस घटना को “टॉक्सिक ब्लैंकेट” यानी ज़हरीली चादर का नाम दे रहे हैं। शैवाल इतनी मात्रा में फैल चुका है कि वह ऑक्सीजन को समुद्र की सतह पर ही सोख लेता है, जिससे नीचे तैरते जीव सांस नहीं ले पाते और दम तोड़ देते हैं।
वन्यजीव वैज्ञानिक डॉ. वैनेसा पिरोट्टा का कहना है, “यह असाधारण और चिंताजनक है। शैवाल की मात्रा सामान्य से कई गुना ज़्यादा है और इसका दायरा लगातार बढ़ रहा है।” विशेषज्ञों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन, समुद्र के बढ़ते तापमान और पोषक तत्वों की अत्यधिक उपलब्धता (जैसे कि कृषि से बहकर आने वाले फर्टिलाइज़र) इस प्रकोप के पीछे हो सकते हैं।
हालांकि यह शैवाल इंसानों के लिए घातक नहीं माना जा रहा, लेकिन इसके संपर्क में आने से त्वचा में जलन, खाँसी और सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। स्वास्थ्य अधिकारियों ने लोगों को चेताया है कि वे उन तटीय इलाकों से दूर रहें जहाँ पानी का रंग बदला हुआ हो या झाग दिखाई दे।
स्थानीय मछुआरों और समुद्री पर्यटन से जुड़े व्यवसायों को भारी नुकसान हो रहा है। मछलियाँ गायब हो रही हैं, पर्यटक लौट रहे हैं, और समुद्र तट सन्नाटा ओढ़े हुए हैं।
अब सबकी निगाहें पर्यावरण वैज्ञानिकों और सरकार की तरफ हैं – सवाल यह है कि क्या इस “हरे आतंक” को रोका जा सकेगा, या फिर ऑस्ट्रेलिया के इन खूबसूरत तटों का भविष्य भी गहरे पानी में डूब जाएगा?
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