
नई दिल्ली। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कथित विवादित टिप्पणी के मामले में गिरफ्तार अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अंतरिम जमानत दे दी। कोर्ट ने इस मामले में हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया है और स्पष्ट निर्देशों के साथ तीन वरिष्ठ IPS अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम (SIT) के गठन का आदेश दिया है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी और शर्तें :
सुनवाई के दौरान जस्टिस कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि “देश इस समय कठिन परिस्थितियों से गुजर रहा है। ऐसे समय में, लोगों की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि “राक्षसों ने हमारे लोगों पर हमला किया है, और ऐसे समय में हमें एकजुट होना चाहिए। सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का यह समय नहीं है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके साथ जिम्मेदारी भी जरूरी है। “एक प्रोफेसर होने के नाते आपके पास शब्दों की कोई कमी नहीं होनी चाहिए। आप एक ऐसी भाषा का चयन कर सकते थे, जो तटस्थ हो और किसी को आहत न करे।”
जमानत की शर्तें:
- प्रोफेसर अली खान किसी भी प्रकार का लेख, भाषण या सोशल मीडिया पोस्ट नहीं करेंगे जो ऑपरेशन सिंदूर, युद्ध, आतंकवादी हमलों या भारत की जवाबी कार्रवाइयों से संबंधित हो।
- वह अपने पासपोर्ट को सोनीपत की अदालत में सरेंडर करेंगे।
- उन्हें जांच में पूर्ण सहयोग करना होगा और SIT द्वारा बुलाए जाने पर उपस्थित रहना होगा।
SIT गठन का निर्देश :
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को 24 घंटे के भीतर तीन IPS अधिकारियों की एक SIT गठित करने का निर्देश दिया है। इसमें एक महिला अधिकारी भी शामिल होंगी, जो राज्य के बाहर की होंगी। यह टीम प्रोफेसर के सोशल मीडिया पोस्ट्स और उनसे जुड़े संदर्भों की गहराई से जांच करेगी।
पृष्ठभूमि :
18 मई को प्रोफेसर अली खान को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा पाकिस्तान और पीओके में किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर सोशल मीडिया पर विवादित टिप्पणी की थी। इस ऑपरेशन में भारतीय बलों ने लगभग 100 आतंकियों को मार गिराया था और पाकिस्तान के 11 एयरबेस को तबाह कर दिया था। इसके बाद पाकिस्तान को संघर्षविराम के लिए मजबूर होना पड़ा था।
महिला आयोग की कार्रवाई:
हरियाणा राज्य महिला आयोग ने भी अली खान को इस टिप्पणी के संदर्भ में नोटिस जारी किया था।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन की मिसाल पेश करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जिम्मेदार नागरिकों — विशेष रूप से शिक्षाविदों — से समाज उचित भाषा और संयम की अपेक्षा करता है।
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