मन और शरीर के संतुलन से ही होता है स्वास्थ्य का संरक्षण : आयुर्वेद का दृष्टिकोण

नई दिल्ली। भारतीय प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद का सिद्धांत है- “स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम, आतुरस्य विकार प्रशमन च।” इसका अर्थ है, स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और बीमार व्यक्ति के रोग का उपचार करना ही आयुर्वेद का उद्देश्य है। आयुर्वेद में यह कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति तभी सेहतमंद रहेगा, जब वह अपनी जीवनशैली और आहार में सही संतुलन बनाए रखेगा। यह सिद्धांत न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी जोर देता है।

आयुर्वेद और बीमारियों के कारण

आयुर्वेद के अनुसार, किसी भी बीमारी का मुख्य कारण शरीर के भीतर और बाहर के असंतुलन को माना जाता है। आयुर्वेद यह मानता है कि शरीर के अंदर जो द्रव्य (धातु, रस, वसा, आदि) होते हैं, उनका संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। जब ये द्रव्य असंतुलित होते हैं, तब रोग उत्पन्न होते हैं। आयुर्वेद में इस असंतुलन के कारणों को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है: बाहरी कारण, मानसिक कारण और शारीरिक कारण।

हाल ही में प्रकाशित एक शोध पत्र, जो इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हेल्थ साइंसेज एंड रिसर्च (आईजेएचएसआर) में था, ने भी इस विषय पर विस्तार से चर्चा की है। इस अध्ययन के अनुसार, बाहरी दुनिया और हमारे शरीर के आंतरिक वातावरण के बीच संतुलन की गड़बड़ी के कारण विकार उत्पन्न होते हैं। यह संतुलन तब टूटता है जब शरीर और बाहरी वातावरण के बीच सामंजस्य नहीं होता।

बाह्य और आंतरिक संतुलन

आयुर्वेद में शरीर और बाहरी वातावरण के बीच निरंतर संतुलन बनाए रखने की बात कही जाती है। यह संतुलन विशेष रूप से मौसम, आहार, शारीरिक गतिविधियों और मानसिक स्थिति से प्रभावित होता है। जब भी बाहरी दुनिया (मौसम, तापमान, प्रदूषण आदि) और आंतरिक दुनिया (शरीर की आंतरिक क्रियाएं, जैसे पाचन, रक्त प्रवाह, हार्मोनल संतुलन आदि) के बीच असंतुलन होता है, तो शरीर रोग का शिकार हो जाता है।

इसलिए आयुर्वेद की यह सलाह है कि हम अपनी जीवनशैली को अपने शरीर की जरूरतों के अनुसार अनुकूलित करें, ताकि बाहरी और आंतरिक संतुलन बनाए रखा जा सके। उदाहरण के लिए, बदलते मौसम के दौरान हमें अपने आहार में बदलाव करना चाहिए, ताकि शरीर को उचित पोषण मिले और मौसम के प्रभाव से शरीर कमजोर न पड़े।

त्रिदोष का सिद्धांत और बीमारियों का कारण

आयुर्वेद के अनुसार, बीमारियों का मुख्य कारण त्रिदोष (वात, पित्त, और कफ) का असंतुलन होता है। ये तीनों दोष शरीर के विभिन्न कार्यों को नियंत्रित करते हैं, और जब इनका संतुलन बिगड़ता है, तो शरीर में विकार उत्पन्न होते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, हम जब शरीर और मन के बीच संतुलन बनाए रखते हैं, तो त्रिदोष का संतुलन भी सही रहता है, और हम स्वस्थ रहते हैं।

इसके अलावा, आयुर्वेद में यह भी माना जाता है कि दो प्रमुख प्रकार की बीमारियां होती हैं:

लाइफस्टाइल संबंधित (एलडी): यह बीमारियां गलत जीवनशैली, असमय भोजन, अधिक मानसिक तनाव और गलत आहार की आदतों से उत्पन्न होती हैं।

नॉन कम्युनिकेबल डिजीज (एनसीडी): ये बीमारियां संक्रमण के बिना, जीवनशैली के कारण उत्पन्न होती हैं, जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, और हृदय रोग।

आयुर्वेद इन बीमारियों के उपचार के लिए हर व्यक्ति के शरीर के प्रकार, प्रकृति, और जीवनशैली को ध्यान में रखते हुए उपचार की सलाह देता है।

इंद्रियों का दुरुपयोग और मानसिक असंतुलन

आयुर्वेद के अनुसार, इंद्रियों का दुरुपयोग भी शरीर के असंतुलन का कारण बनता है। उदाहरण के लिए, जब हम अपनी इंद्रियों का अधिकतम या गलत तरीके से उपयोग करते हैं, जैसे अत्यधिक भोजन करना, अत्यधिक गर्म या ठंडे पानी से स्नान करना, या अत्यधिक मानसिक तनाव लेना, तो शरीर में विकार उत्पन्न होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, हमें इन इंद्रिय उपयोगों के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए।

जब हम गलत विचारों के साथ गलत कार्य करते हैं, तो मानसिक असंतुलन उत्पन्न होता है। यह मानसिक असंतुलन शरीर के आंतरिक संतुलन को प्रभावित करता है और विकार उत्पन्न करता है। आयुर्वेद में इसे प्रज्ञाप्रद (बुद्धि का दुरुपयोग) कहा जाता है। यह दिखाता है कि न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक स्थिति भी बीमारियों के कारण हो सकती है।

मौसम और समय का प्रभाव

आचार्य चरक ने आयुर्वेद में मौसम के प्रभाव को भी महत्वपूर्ण माना है। बदलते मौसम के दौरान शरीर में जो असंतुलन उत्पन्न होता है, वह बीमारियों का कारण बन सकता है। आयुर्वेद के अनुसार, शीत (ठंड), उष्ण (गर्मी) और वर्षा (बारिश) के मौसम के बीच असंतुलन से शरीर में विकार उत्पन्न हो सकते हैं। इसलिए आयुर्वेद में मौसमी बदलावों के अनुसार आहार और दिनचर्या को बदलने की सलाह दी जाती है।

आज के इस गतिशील और तनावपूर्ण समय में आयुर्वेद का सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक है। बदलते मौसम, तनावपूर्ण जीवनशैली और गलत आहार के कारण हम मानसिक और शारीरिक असंतुलन का सामना कर रहे हैं। ऐसे में आयुर्वेद की सलाह के अनुसार हमें अपने शरीर और मन के संतुलन को बनाए रखने की आवश्यकता है। अगर हम आयुर्वेद के सिद्धांतों का पालन करते हैं और अपने आहार, जीवनशैली, और मानसिक स्थिति पर ध्यान देते हैं, तो हम स्वास्थ्य को बनाए रख सकते हैं और विभिन्न बीमारियों से बच सकते हैं।

इसलिए, ‘स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम’ का सिद्धांत सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य को ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी शामिल करता है। यही सही समय है कि हम अपने जीवन में आयुर्वेद के सिद्धांतों को शामिल करें और एक स्वस्थ जीवन जीने की दिशा में कदम बढ़ाएं।

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