नई दिल्ली। 23 अप्रैल 2025 को सीमा सुरक्षा बल (BSF) के जवान पूर्णम कुमार साव को पंजाब स्थित अटारी सीमा पर पाकिस्तानी रेंजर्स ने हिरासत में ले लिया था। यह उस समय हुआ जब भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में जबरदस्त तनाव था। 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने इस तनाव को और भी भड़काया था। हमले के बाद भारत ने सात मई को पाकिस्तान में हवाई हमले किए, जिससे दोनों देशों के बीच संघर्ष की आशंका गहरा गई।
कैसे हुए बंदी?
पूर्णम कुमार साव के बंदी बनाए जाने की घटना के बारे में अभी तक विस्तृत आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन माना जा रहा है कि या तो गश्त के दौरान अनजाने में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार हो गई थी, या फिर किसी तकनीकी/संचार त्रुटि के कारण वह पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश कर गए थे। ऐसी घटनाएं पहले भी सीमावर्ती क्षेत्रों में घट चुकी हैं, जब खराब मौसम, दृश्यता की कमी या भ्रम के चलते जवान सीमाएं पार कर बैठते हैं।
20 दिन की हिरासत और राजनयिक प्रयास
पूर्णम कुमार साव को लगभग 20 दिनों तक पाकिस्तान में हिरासत में रखा गया। इस दौरान भारत सरकार ने राजनयिक और सैन्य माध्यमों से उनकी वापसी सुनिश्चित करने के प्रयास किए। भारतीय विदेश मंत्रालय और बीएसएफ की ओर से लगातार संवाद बनाए रखा गया, ताकि एक सैन्य कर्मी को शांतिपूर्ण तरीके से स्वदेश वापस लाया जा सके।
हस्तांतरण का तरीका
बीएसएफ द्वारा जारी बयान में कहा गया कि 14 मई 2025 को सुबह लगभग 10:30 बजे, संयुक्त चेक पोस्ट अटारी, अमृतसर पर पाकिस्तानी रेंजर्स ने पूर्णम कुमार को भारत को सौंप दिया। यह प्रक्रिया स्थापित प्रोटोकॉल और शांतिपूर्ण तरीके से की गई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि दोनों देश फिलहाल तनाव घटाने की दिशा में सक्रिय रूप से प्रयास कर रहे हैं।
भारत-पाकिस्तान संबंधों पर असर
यह घटना ऐसे समय पर हुई जब भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी। 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले में कई सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, जिसका आरोप पाकिस्तान स्थित आतंकी गुटों पर लगा। इसके जवाब में भारत ने सात मई को हवाई हमले कर आतंकवादी लॉन्च पैड्स को निशाना बनाया।
इन हमलों के बाद दोनों देशों में सीमा पर सैन्य जमावड़ा और तनाव चरम पर पहुंच गया था।
10 मई को संघर्षविराम पर एक अस्थायी सहमति बनी, और अब 14 मई को जवान की वापसी इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत मानी जा रही है।
मानवीय पहलू और सैनिकों की सुरक्षा
इस पूरे घटनाक्रम का मानवीय पक्ष बेहद महत्वपूर्ण है। पूर्णम कुमार साव जैसे जवान, जो सीमा पर देश की सुरक्षा करते हैं, उनका किसी कारणवश दुश्मन देश की गिरफ्त में आना और फिर उनकी सुरक्षित वापसी न सिर्फ उनके परिवार, बल्कि पूरे देश के लिए मानवीय राहत है।
यह घटना यह भी रेखांकित करती है कि सीमा सुरक्षा बलों को और अधिक तकनीकी उपकरणों, GPS ट्रैकिंग और प्रशिक्षण की आवश्यकता है ताकि सीमा पार अनजाने में जाने की घटनाएं कम हों।
ऐसे मामलों में दोनों देशों के बीच इंटरनेशनल ह्यूमैनिटेरियन लॉ और सैन्य प्रोटोकॉल को प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिए।
पाकिस्तान की भूमिका – रणनीतिक विवेक या दबाव में रिहाई?
पूर्णम कुमार साव की वापसी को पाकिस्तान द्वारा रणनीतिक विवेक के रूप में भी देखा जा सकता है। भारत द्वारा किए गए हवाई हमले और उसके बाद का अंतरराष्ट्रीय दबाव पाकिस्तान पर स्पष्ट रूप से पड़ा है।
अमेरिका, फ्रांस, रूस और संयुक्त राष्ट्र जैसे शक्तिशाली अंतरराष्ट्रीय मंचों ने भारत-पाक तनाव को लेकर चिंता जताई थी।
ऐसे में एक भारतीय सैनिक को रिहा करना पाकिस्तान की छवि सुधारने और तनाव घटाने का प्रयास हो सकता है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
भारत सरकार, विशेष रूप से गृह मंत्रालय और बीएसएफ ने इसे सफल राजनयिक प्रयास बताया। जवान के परिजनों और गांव वालों में जश्न का माहौल रहा। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने भारतीय राजनयिक और सैन्य संस्थानों की प्रशंसा की।
वहीं, कुछ विश्लेषकों ने सरकार से यह मांग की कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए विस्तृत SOP (Standard Operating Procedure) तैयार किया जाए।
पूर्णम कुमार साव की सकुशल वापसी एक ऐसे समय पर हुई है जब भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बेहद नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। यह घटना न केवल एक जवान की घर वापसी है, बल्कि यह दर्शाती है कि संवाद और शांतिपूर्ण समाधान अब भी संभव हैं – भले ही वह सीमित स्तर पर ही क्यों न हों।
यह घटना भारत को अपनी सीमाओं पर सुरक्षा और निगरानी के उपाय और अधिक मजबूत करने की याद दिलाती है, वहीं पाकिस्तान को यह संदेश देती है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव और मानवीय मूल्यों की अनदेखी कर पाना अब आसान नहीं रहा।
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