रमा मेहता जन्मशताब्दी समारोह : मुंशी प्रेमचंद की पौत्री लेखिका व सम्पादक सारा राय देगी मुख्य व्याख्यान

: अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक विक्रम सेठ भी भाग लेंगे

लेखन ग्रांट सम्मान व पुरष्कार प्रदान किये जायेंगे

उदयपुर। प्रसिद्ध समाजविद व उपन्यासकार , आजादी पश्चात विदेश सेवा हेतु चयनित प्रारंभिक महिलाओं में से एक रही रमा मेहता का जन्म शताब्दी समारोह शनिवार 23 सितम्बर को प्रात: 11 बजे विद्या भवन ऑडिटोरियम में आयोजित होगा।

रमा मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में मुंशी प्रेमचंद की सुपौत्री प्रसिद्ध लेखिका व सम्पादक सारा राय शताब्दीस्मृति मुख्य व्याख्यान “भाषा की झीनी चादर” देगी।

अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक विक्रम सेठ समारोह के विशिष्ठ वक्ता होंगे समारोह में लेखन ग्रांट सम्मान व पुरष्कार प्रदान किये जायेंगे।

ट्रस्टी अजय मेहता व नीलिमा खेतान ने बताया कि रमा मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा प्रतिवर्ष राजस्थान से संबंध रखने वाली हिंदी, राजस्थानी, उर्दू व अंग्रेजी, प्रति भाषा की एक सर्वश्रेष्ठ एक लेखिका को ट्रस्ट द्वारा लेखन ग्रांट दी जाती है।

लेखन ग्रांट का उद्देश्य नवोदित लेखिकाओं की पहचान कर उनकी लेखन प्रतिभा व कौशल को परिष्कृत व स्थापित करना है। लेखन ग्रांट योजना के सलाहकार मंडल मे प्रख्यात लेखिकाएं इरा पांडे, रख्शंदा जलील और एनी ज़ैदी सम्मिलित है। वर्ष 2023 ग्रांट के लिए ट्रस्ट को चारों भाषाओं में कुल 177 प्रविष्टियाँ प्राप्त हुई। जिनमें 43 चयनित लेखिकाओं के लिए जुलाई माह में चार दिवसीय राइटर्स’ रिट्रीट कार्यशाला आयोजित की गई थी है। शनिवार के मुख्य समारोह में हर भाषा की एक एक श्रेष्ठ लेखिका को लेखन ग्रांट सम्मान व पुरष्कार प्रदान किया जायेगा।

रमा मेहता एक परिचय : शिक्षाविद डॉ. विश्वविजया सिंह ने बताया कि सन् 1923 में जन्मीं रमा मेहता के पिता नानालाल चमन लाल मेहता गुजरात से थेऔर 1915 में भारतीय सिविल सेवा से जुड़े। चार भाई-बहनों में सबसे छोटी रमा उत्तर प्रदेशमें पली-बढ़ी। स्कूली शिक्षा नैनीताल और इसाबेला थॉबर्न कॉलेज, लखनऊ से स्नातक उपाधिप्राप्त की। साथ ही भरतनाट्यम् में कुशल नृत्यांगना बनीं। दर्शनशास्त्र में एम.ए. करने के लिए सेंट स्टीफन्स कॉलेज, नई दिल्ली गईं। 1946 में वे दो वर्षों के लिए अमेरिका गईं, जहाँ कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयार्क में उन्होंने मनोविज्ञान और समाजशास्त्र विषयों में विशेषयोग्यता प्राप्त की। भारत लौटने के बाद 1949 में रमा मेहता भारतीय विदेश सेवा(आई.एफ.एस.) के लिए चुनी र्गइं। वे विदेश सेवा में शामिल होने वाली प्रारंभिक महिलाओं में से एक थीं, किन्तु उनका कार्यकाल संक्षिप्त रहा। अमेरिका के अवर सचिव के रूप में, उन्होंने अमेरिका और भारत के मध्य पहले सांस्कृतिक समझौते को मूर्तरूप देने में मदद की थीं।

वर्ष 1949 में उनका विवाह उदयपुर में आई.एफ.एस. अधिकारी जगत एस. मेहता से हुआ, जो एक पारंपरिक संयुक्त परिवार से थे। इसने भी रमा के विचारों को एक नया रूप दिया। उन्होंने बंदिशों के बावजूद पंरपरागत रीति-रिवाज़ों में निहित मूल्यों को समझा। पति के साथ रमा ने कई देशों की यात्राएँ कीं। मानवीय अंतर्सम्बन्धों और सामाजिक समस्याओं को समझने में वे सदैव रूचि रखती थीं। उन्होंने नौकरी पेशा और कामकाज़ी महिलाओं के साथ काफ़ी समय बिताया और उनके साथ बातचीत उनके तीनों उपन्यासों के आधार बने। उनके तीनों उपन्यास गरीबों के कष्ट और शिक्षा प्राप्त करने के उनके संघर्षों का वर्णन करते हैं। उनका समाजशास्त्र का वैचारिक परिपेक्ष्य, परंपरा और आधुनिकता का सम्मिश्रण था। वे महिलाओं की मुक्ति, समान अधिकारों और भागीदारी के साथ ही साथ परिवार के सामंजस्य को बनाएरखने और इनके क्रमिक आधुनिकीकरण में विश्वास रखती थीं। रमा मेहता ने तीन उपन्यास लिखे ‘रामू’, ‘द लाइफ ऑफ केशव’ और ‘इनसाइड द हवेली’। सभी उपन्यास प्रत्यक्ष रूप से रूढ़िवादी मध्यमवर्गीय घरों में शिक्षा की खोज़ और उस खोज को पूरा करने में गरीबी के कारण आने वाली बाधाओं का उल्लेख करते हैं। ‘केशव’ एक युवा लड़के की काल्पनिक कहानी है, जो विद्या भवन के एक चपरासी का बेटा था, जहाँ उसे पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। अपने पूरे परिवार के त्याग से केशव ने अत्यंत ग़रीबी और जाति के बंधन से आगे निकलकर विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा प्राप्त की। हालंकि, कभी-कभी वह अपनी और अपने सहपाठियों के बीच की सामाजिक स्थिति में अंतर को देख अपने को असुरक्षित और अयोग्य महसूस करता। जब वह अपनी माँ से इस बारे में बात करता तो वे उसे अनेक प्रकार से समझातीं।

रमा का अंतिम उपन्यास ‘इनसाइड द हवेली’ 1977 में प्रकाशित हुआ और 1979 में इसे साहित्य अकादमी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया। पुस्तक में मध्यवर्गीय घरों में उस समय प्रचलित प्रथा का चित्रण किया गया है। दुखद रहा कि इस सम्मान के देखने के लिए वे जीवित नहीं रहीं। इस पुस्तक का कई बार पुनर्मुद्रण किया गया है। इसका फ्रेंच और उर्दू भाषा में भी अनुवाद किया गया। एक दशक से अधिक समय तक यह पुस्तक पेंगुईन की ‘बेस्ट सेलर’ सूची में रही। इस पुस्तक में रमा एक ऐसे पारंपरिक घर में संबंधों का वर्णन करती हैं, जहाँ पर्दाप्रथा का चलन था। नौकरों और मालिकों के बीच भारी असामनता थी। उपन्यास की प्रगतिशील और शिक्षित नायिका ने अनुभव किया कि उस असहज परिस्थिति में भी ऐसे रिश्ते उभरे जो परस्पर देख-भाल और सम्मान पर आधारित थे।

रमा के विद्वतापूर्ण अध्ययन उनकी पुस्तकों ‘द वेस्टर्न एजुकेटेड हिन्दू वुमन’ और ‘द डिर्वोस्ड हिन्दू वुमन’ में निहित हैं। उनके निबंध ‘फ्रॉम पर्दा टू मॉडर्निटी’ को नेहरू संग्राहलय द्वारा प्रकाशित, श्री बी.आर. नंदा द्वारा सम्पादित पुस्तक में सम्मिलित किया गया है। उनके निधन से पूर्व हिन्दू फैमिली एण्ड मॉडर्न वेल्यूस’ नामक एक और हस्तलिपि पूरी हो गई थी, किन्तु इससे संबंधित आंकड़े उपलब्ध नहीं होने से यह अप्रकाशित रही।

कैथरीन ग़ैलब्रेथ के साथ, उन्होंने देश के परिचय स्वरूप ‘इंडिया नाउ एवं थ्रू टाइम’ का सहलेखन किया। उन्होंने दो राष्ट्रीय समाचार पत्रों ‘द हिन्दुस्तान टाइम्स’ और ‘द ट्रिब्यून’ के लिए पांच साल तक प्रभावी साप्ताहिक लेख लिखे और अन्य समसामयिक विषयों पर भी निबंध लिखे। रमा की बौद्धिक अन्तर्दृष्टि का व्यापक रूप से सम्मान किया जाने लगा। यद्यपि शहरीकरण और तकनीकी प्रगति के साथ सामाजिक परिवर्तन और महिलाओं की स्वतंत्रता अपरिहार्य थे। इसके समानांतर रमा का मानना था कि कुटुम्ब की एकजुटता के महत्त्व और पारिवारिक मूल्यों को कभी खतरे में नहीं डाला जाना चाहिए।

उनकी पुस्तक ‘द वेस्टर्न एजुकेटड हिन्दू वुमन’ से उद्धृत कथन है, ‘‘भारत की सांस्कृतिक विरासत महिलाओं की मदद से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ी थी, जब महिलाएँ जीवन शैली में निहित परम्पराओं से विशषतः बाहरी प्रभावों के कारण संपर्क एवं आस्था खो देती हैं तो पारंपरिक मूल्यों के अस्तित्त्व के लिए खतरा पैदा हो जाता है। यह समाज के सामंजस्य और स्थिरता को खतरे में डाल सकता है, जब तक कि कुछ समान रूप से मान्य मूल्य पुरानों की जगह नहीं ले लेते।’’ कई भारतीय और विदेशी विद्वानों ने सामाजिक समस्याओं को समझने के लिए रमा जी की मदद ली। मौलिकता पूर्ण रमा के लेखों और पुस्तकों को मान्यता देते हुए रेडक्लिफ इंस्टीट्यूट फॉर इंडिपेन्डेट स्टडी (हार्वर्ड) द्वारा सन् 1964-65 में और फिर 1966-67 में फेलोशिप से रमा को सम्मानित किया गया। उन्हें सम्मेलनों और कार्यशालाओं में व्याख्यान देने हेतु आमंत्रित किया गया। 1975 में उन्होंने सोरबोन, पेरिस में एक सेमिनार श्रृंखला के अन्तर्गत भी व्याख्यान दिए। केवल चौवन वर्ष की उम्र में दिल का दौरा पड़ने के कारण रमा मेहता का 1978 में निधन हो गया। उनकी याद में कैथरीन एटवाटर गैलब्रेथ व अन्य मित्रों ने ‘‘तीसरी दुनिया की महिलाओं की समस्याएँ’’ विषय पर रेडक्लिफ, इंस्टीट्यूट ऑफ हार्वर्ड युनिवर्सिटी में रमा मेहता व्याख्यान का आयोजन किया। उनकी स्मृति में यह व्याख्यनमाला सतत रूप से आयोजित होती है। रमा मेहता चेरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना 1980 में उनके पति श्री जगत एस. मेहता एवं छः अन्य संस्थापक न्यासियों द्वारा की गई। गत चार दशकों में ट्रस्ट का कार्य मुख्यतः विषम परिस्थितियों से जूझ रही महिलाओं तथा जरूरतमंदों की सहायता प्रदान करने पर केन्द्रित रहा है। सन् 2020 में ट्रस्ट ने रमा मेहता लेखन अनुदान की शुरूआत की। लेखन अनुदान ऐसी महिलाओं के लिए है, जिनका संबंध राजस्थान से हो। पुरस्कार हिन्दी, राजस्थानी, उर्दू या अंग्रेजी में लिखी गई लघु कथा के लिए दिए जाते हैं। इसके माध्यम से उभरती लेखिकाओं को प्रोत्साहन का प्रयास किया जाता है।

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