उदयपुर। वर्ष 1931 में स्थापित 93 वर्ष पुरानी संस्था विद्या भवन के नव निर्वाचित अध्यक्ष डॉ जितेंद्र कुमार तायलिया ने कहा है कि शताब्दी की ओर अग्रसर विद्या भवन अपने मूल्यों व सिद्धान्तों पर कायम रहते हुए नवनिर्माण की तरफ बढ़ेगा।
विद्या भवन के समृद्ध इतिहास, परम्पराओं व उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए डॉ तायलिया ने कहा कि विद्या भवन की शिक्षा प्रणाली में नेतृत्व क्षमता विकास, खेलकूद, और सर्वांगीण विकास महत्वपूर्ण है। यहाँ पर कभी किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नही है । हर जाति, धर्म व वर्ग के लोग मिलजुल कर साथ रहते है।
विद्या भवन में उनके स्वयं के विद्यार्थी काल का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि साथ उठना बैठना, साथ खाना पीना, साथ साथ पूरा दिन स्कूल में ही व्यतीत करना दिनचर्या में सम्मिलित था। विद्या भवन के नर्सरी स्कूल सहित तीनो सीनियर सेकेंडरी स्कूलों, डिग्री कॉलेज,बी एड कॉलेजों, पॉलिटेक्निक, के वी के, शिक्षा संदर्भ केंद्र , प्रकृति साधना केंद्र को बहुत विशिष्ठ बताते हुए तायलिया ने कहा कि सभी इकाइयों में और अधिक गुणात्मकता लाई जाएगी। वर्तमान के लिए प्रासंगिक विविध व्यावसायिक पाठ्यक्रमो सहित अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स एकेडमी उनकी योजना में सम्मिलित है। इंटरनेशनल स्तर के स्कूल्स व संस्थानों के साथ टाई अप कर विद्या भवन को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाने के प्रयास किये जायेंगे। ।
डॉ तायलिया ने कहा कि प्रबंधन कमिटी एवं सभी इकाई प्रधानों के साथ विचार मंथन एवं विद्याभवन की लोकतांत्रिक व्यवस्था व आम सहमति की परंपरा के अनुरूप। वे पूर्ण ऊर्जा व उत्साह के साथ नवीन उपलब्धियों व कीर्तिमान के लिए प्रतिबद्ध है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि विद्या भवन कभी भी प्रतियोगिता की होड़ में नहीं रहा है, ना ही मुनाफा कमाना कभी भी संस्था का उद्देश्य रहा है। विद्या भवन सदैव अपने नवाचारों के बूते पर आगे बढ़ने का प्रयास करता रहेगा।
डॉ तायलिया ने कहा कि विद्या भवन नागरिक समाज के लिए बनी संस्था है अतः नागरिक समाज के सुझाव भी आमंत्रित रहेंगे।
विद्या भवन के उपाध्यक्ष हंसराज चौधरी ने कहा कि संस्था के पूर्व विद्यार्थियों के मन मे यह भाव है कि ऋषिऋण को अदा किया जाए। तुलनात्मक रूप से देखा जाये तो विद्या भवन में फीस बहुत कम है। शिक्षकों सहित सभी कार्यकर्त्ता सेवाभाव के साथ काम करते हैं।
प्रेस वार्ता में कोषाध्यक्ष अनिल शाह, मुख्य संचालक डॉ अनुराग प्रियदर्शी ने भी विचार व्यक्त किये। धन्यवाद मानद सचिव गोपाल बम्ब ने किया।
प्रेस वार्ता में पत्रकारों के सवालों के समेकित जवाब में डॉ तायलिया ने कहा कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू, प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद से लेकर श्री अटल बिहारी वाजपेयी , डॉ मनमोहन सिंह , श्रीमति प्रतिभा पाटिल के चरणों ने जिस महान संस्था को अपनी ऊर्जा व प्रेरणा प्रदान की , वह महान संस्था अपनी स्थापना के 93 वर्ष पूर्ण कर चुकी है। कस्तूरबा गांधी जी के द्वारा रोपा गया वटवृक्ष आज भी विद्या भवन को सुशोभित कर रहा है। जाकिर हुसैन, जय प्रकाश नारायण जैसी अनेक विभूतियों ने यंहा के शिक्षकों, विद्यार्थियों से संवाद कर प्रेरणा दी है। यंहा की शिक्षिका सरला बेन ( मूल नाम मेरी कैथरीन हाईलमन) राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रमुख सहयोगी थी।
विद्या भवन की संस्थाओं में पढ़े प्रेरणादायी विद्यार्थियों व यंहा के शिक्षकों ने समाज जगत, राजनीति, प्रशासन, उद्योग जगत, शिक्षा, विज्ञान, तकनीकी, न्यायपालिका , कला व साहित्य हर क्षेत्र में समाज को नई दिशा दी है। संस्था में पढ़े गुलाब चंद कटारिया ( राज्यपाल), बीना काक ( पूर्व मंत्री ) , जगत मेहता, जे, एन दीक्षित ( विदेश सचिव), डी एस कोठारी, गोवेर्धन मेहता ( प्रसिद्ध वैज्ञानिक ) , सलिल सिंघल, अरविंद सिंघल ( प्रसिद्ध उद्योग पति) , गोविंद माथुर ( पूर्व मुख्य न्यायाधीश, हाइकोर्ट) , ऐसी अनेक विभूतियां विद्या भवन की उपलब्धियां है।
यंहा के हेड मास्टर व अध्यक्ष कालू लाल श्रीमाली जंहा भारत के शिक्षा मंत्री रहे वंही पॉलिटेक्निक के प्राचार्य वासुदेव देवनानी ( विधानसभा अध्यक्ष) राजस्थान के शिक्षा मंत्री रहे है।
वर्ष 1926 में यूरोप में एक ट्रेन का इंतजार कर रहे वेटिंग रूम में बैठे उदयपुर के डॉ मोहन सिंह मेहता “ भाईसाहब “को एक ऐसे शिक्षण संस्थान का विचार आया था जो प्रगतिशील हो एवं ऐसे जागरुक नागरिक तैयार कर सके जो चरित्रवान , स्वावलम्बी, शारीरिक , मानसिक एवं भावनात्मक रूप से मजबूत ,लोकतान्त्रिक, धर्मनिरपेक्ष एवं समाज व् पर्यावरण के प्रति संवेदन शील हो तथा आजादी के पश्चात देश के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हो ।
उनका यह विचार वर्ष 1931 में विद्या भवन के रूप में परिणित हुआ। डॉ मेहता व उनके साथियों डॉ के एल श्रीमाली , सादिक अली , फतेह्लाल वर्डिया ,केसरी लाल बोर्दिया ने इस संस्थान की स्थपाना की । महात्मा गाँधी , रविन्द्र नाथ टैगोर व स्काउट आन्दोलन से प्रभावित ये सभी महान व्यक्तित्व इस विश्वास से प्रेरित थे कि जब भी आज़ादी हासिल होगी, भारत को ऐसे शिक्षित और प्रेरित नागरिकों की आवश्यकता पड़ेगी जिनमें लोकतन्त्र को स्थापित करने और उसे बनाए रखने का दृढ़ निश्चय रखते हो व समाज में प्रत्यक्ष जाकर कार्य कर सकने वाले हो ।
अपने स्थापित लक्ष्यों और उद्देश्यों की पूर्ति के लिये विद्या भवन ने समय और आवश्यकता के अनुरूप समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं की स्थापना की । बीजारोपण 1931 में स्थापित विद्या भवन सीनियर सेकैण्डरी स्कूल से हुआ । उस काल में यह सह शिक्षा का स्कूल था। 1940 के दशक में विद्या भवन ने हस्तकला शिक्षक-प्रशिक्षण केन्द्र की शुरुआत की – शिक्षकों को बढ़ई, चर्मकार, बुनाई और सिलाई तथा रद्दी काग़ज़ से लुगदी बनाने में प्रशिक्षित किया जाता था। सरकारी विद्यालयों में उन दिनों इन शिक्षकों की ख़ूब माँग रहा करती थी। ग्रामीण किसानों और हस्त कलाकारों के बच्चों को शिक्षा और सहज तरीके से मिल पाए, इस हेतु ‘रामगिरि’ नामक एक छोटे से गांव में ‘विद्या भवन बुनियादी स्कूल’ की स्थापना 1941 में की गई। अच्छे शिक्षक तैयार करने के लिए 1942 ने राजस्थान का पहला शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय स्थापित हुआ । ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा उन्नयन व विकास को बढ़ाने के लिए लिये1956 में विद्या भवन रुरल इंस्टीट्यूट अस्तित्व में आया। इसी वर्ष रूरल एंड सेनिटेशन इंजिनीयरिंग के केंद्र के रूप में पोलीटेक्निक प्रारंभ हुआ । 1982 में आंगनवाड़ी आंगनवाडी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण कार्य प्रारंभ हुआ । वर्ष 1984 में कृषि विज्ञान केन्द्र बना, जिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार कृषि को समुन्नत और विकसित करने का कार्य प्रारम्भ किया। 1995 में विद्या भवन शिक्षा संदर्भ केन्द्र स्थापित हुआ । 1997 में स्थानीय शासन और ज़िम्मेदार नागरिकता का संस्थान, 2001 में विद्या भवन पब्लिक सकूल, 2008 में विद्या भवन गांधीयन शैक्षिक अध्ययन संस्थान और 2009 में प्रकृति साधना केंद्र ( 400 एकड़ का जंगल) सामने आए। समय के साथ कुछ संस्थाओं को एक-दूसरे में समायोजित किया गया , कुछ बंद भी हुई । वर्तमान में विद्या भवन सोसायटी के तत्वावधान में 10 संस्थाएं क्रियाशील है ।
एक स्कूल से शुरू हुए विद्या भवन में आज स्कूल, कॉलेज, शिक्षक प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षण संस्थान के अलावा कृषि विज्ञान केंद्र और शिक्षा सन्दर्भ केंद्र जैसी नवाचारी संस्थाएं शामिल हो इसे समग्र शिक्षण संस्थान का रूप देती हैं। पॉलिटेक्निक में स्थापित सरस्वती मेकेट्रॉनिक्स सेंटर राजस्थान का एक प्रमुख अत्याधुनिक तकनीकी केंद्र है।
अपने बहुआयामी कार्यों के द्वारा विद्या भवन ने समुदाय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक अपनी पहुँच बनाई है। विद्या भवन का इतिहास उपलब्धियों से भरा पड़ा है। वर्तमान उपलब्धियों को गढ़ रहा है ।
विद्या भवन भविष्य के भारत का संकेत देता रहा है। विद्या भवन में वर्ष 1970 में दीवार पर उकेरी पंक्तियां” चंद्र विजेता भारत सूर्य विजेता कब बनेगा” आज आदित्य मिशन के साथ साकार हो गई है।
विद्या भवन के शिक्षा दर्शन, अनुभूत प्रयोगों की अहमियत व प्रासंगिकता शाश्वत रही है, इसका प्रस्तबिम्ब भारत भारत की नई शिक्षा नीति में स्पष्ट देखा जा सकता है। भूजल पुनर्भरण की मारवी योजना सहित जल संसाधन प्रबंधन, सेनिटेशन इत्यादि क्षेत्रों में विद्याभवन में हुए शोध भारत की नीतियों को बनने में सहयोगी सिद्ध हुए है।
यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स, कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी, सिडनी यूनिवर्सिटी , अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी जैसे विश्व स्तरीय संस्थान विद्या भवन के साथ मिलकर महत्वपूर्ण शोध कर रहे है। कई राज्यों ने अपनी पाठ्यपुस्तकों के निर्माण में विद्या भवन की सहायता ली है। अभिलाषा कार्यक्रम के माध्यम से वंचित वर्गों की ग्रामीण परिवेश की 80 लड़कियां कोडिंग का निशुल्क प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है। शिक्षा सम्बल कार्यक्रम के माध्यम से राज्य के 66 सरकारी स्कूलों में विज्ञान, गणित और अंग्रेज़ी विषयों में विद्यार्थियों की मूलभूत समझ बढ़ाने के सफल प्रयास हो रहे है। अपना सपना, ऊंची उड़ान कार्यक्रमों के माध्यम से यंहा के विद्यार्थी आई आई टी सहित देश के श्रेष्ठ तकनीकी व मेडिकल संस्थानों में चयनित हो रहे है। विद्या भवन तीरंदाजी व शतरंज में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी तैयार कर रहा है। वैज्ञानिक खेती, पशु बांझपन उपचार जैसे क्षेत्रों में विद्या भवन द्वारा हो रहे प्रयास पूरे भारत मे सराहे गए है। अभी हाल ही में विद्या भवन ने उदयपुर में बाल पुस्तक महोत्सव का आयोजन किया है जो उदयपुर में इस प्रकार का पहला आयोजन है। बच्चे और उनके अभिभावक इसमें बहुत रुचि से बड़ी संख्या में भाग ले रहे हैं और पुस्तकों के साथ विभिन्न शैक्षणिक व दूसरी गतिविधियों से लाभान्वित हो रहे हैं।
विद्या भवन शिक्षा के माध्यम से समाज परिवर्तन व विकास के अपने लक्ष्य के साथ सात वर्षों बाद 100 वर्ष का हो जाएगा। उदयपुर सहित राजस्थान व भारत के लिए यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
विद्या भवन के आठवें पूर्ण कालिक अध्यक्ष के रूप में शिक्षाविद डॉ जितेंद्र तायलिया ने पूर्ववती संस्था अध्यक्षों डॉ मोहन सिंह मेहता, के एल बोर्दिया, के एल श्रीमाली, जगत सिंह मेहता, अविनाश चंद्र वधावन , रियाज तहसीन, अजय एस मेहता के योगदान का स्मरण करते हुए अपने शिक्षकों, कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों, कालविदों, विद्यार्थियों तथा देश विदेश में फैले अपने हजारों पूर्व विद्यार्थियों और शुभचिंतकों के माध्यम से समाज, देश व दूनियाँ को स्वावलंबी, समरस, समावेशी और सामर्थ्यवान बनाने के लिए प्रतिबद्धता को दोहराया ।
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