
पर्यावरण विशेषज्ञ
गिरनद संरक्षण से ही बचेगा उदयपुर वर्ष 1993 से निरंतर प्रति वर्ष 22 मार्च को पूरे विश्व में आयोजित होने वाला जल दिवस दिन जल संरक्षण के प्रति जन चेतना जागृत करने तथा स्थानीय, वैश्विक जल मुद्दों पर सक्रिय होने का आग्रह करता है। हर वर्ष जल दिवस किसी विशिष्ठ थीम को लेकर आयोजित होता है। इस वर्ष की थीम हिमनद (ग्लेशियर) संरक्षण पर केंद्रित है।
उदयपुर का हमारा क्षेत्र हिमनद क्षेत्र नहीं है । लेकिन, हमारी जिम्मेदारी है कि हम जंगलों को बचा कर रखे, झीलों तालाबों की रक्षा करें तथा कार्बन उत्सर्जन को कम करें ताकि किसी भी रूप में वैश्विक तापक्रम वृद्धि की प्रक्रिया में हमारा कोई अंशदान नहीं बढ़े और हिमनद नहीं नष्ट हो।
गिरवा घाटी उदयपुर में यह दिवस गिरनद संरक्षण के रूप में मनाया जाना चाहिए। गिरवा में गिर का अर्थ पहाड़ियां है। इन्ही पहाड़ियों से निकलने वालें अनेक नदों ( बरसाती नालों, नदी धाराओं) से मदार , बड़ी , फतेहसागर, पिछोला, गोवर्धन सागर उदयसागर जैसी बड़ी झीलों तथा नैला, रूपसागर जैसे अनेकों छोटे तालाबों को जल मिलता रहा है। भूजल का पुनर्भरण होता रहा है।
बेसिन आधारित समग्र जल संसाधन विकास व प्रबंधन व उसके माध्यम से एक मजबूत सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय तथा आर्थिक व्यवस्था के निर्माण का उत्कृष्ट उदाहरण गिरवा घाटी व इससे उपजे नदी नाले है। लेकिन, जल सृजन के स्रोत हमारे गिरवा के पहाड़ अब नष्ट किए जा रहे है। इनकी कटाई होने ,उन्हें समतल कर देने से हमारे समस्त गिरनद नष्ट हो रहे हैं। वहीं, तालाबों को पाटने , पर्यटन इकाइयों में जल की अति खपत, घर घर में ट्यूबवेल से अत्यधिक भूजल दोहन तथा झीलों में बढ़ते प्रदूषण से उदयपुर के जीवन की आधार जल व्यवस्था टूट रही है।
गिरनदों के के साथ यह घातक व्यहवार उदयपुर को गंभीर आपदाओं से पीड़ित करेगा। उदयपुर रेगिस्तान भी बनेगा और बाढ़ से भी पीड़ित होगा। हमारा पर्यटन उद्योग भी नष्ट हो जाएगा।
ऐसे में हमारी सक्रिय नागरिक जागरूकता व गतिशीलता से ही गिरवा पहाड़ियों व इनके गिरनद बचेंगे। इसके लिए तीन स पर कार्य करना जरूरी है। तीन “स” से बने ये तीन स्तर है, स्वयं, संस्थान, समाज। हमे अपने स्वयं के स्तर पर एक सार्थक , निरंतर पहल करनी होगी कि हम जल खपत कम करें । हमारे संस्थान, उद्योग , भवन के निर्माण किसी पहाड़ी को काट कर नहीं बने । हम एक रचनात्मक सामाजिक मुहिम चलाए कि पहाड़ियों को नहीं काटा जाए, बरसाती नालों को पुनः मूल स्वरूप में लाया जाए।झीलों, तालाबों में अतिक्रमण नहीं हो, तथा आयड नदी का पेटा सुरक्षित रहे।
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