यू.आर. साहू की RPSC अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति : प्रशासनिक शुद्धि की शुरुआत या राजनीतिक रणनीति?

 

आप पढ़ रहे हैं हबीब की रिपोर्ट।

राजस्थान में एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक फेरबदल के तहत राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) यू.आर. साहू को राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। यह नियुक्ति केवल एक व्यक्ति की पदोन्नति भर नहीं है, बल्कि राज्य प्रशासन के उस बदलते चेहरे की ओर संकेत करती है जो साफ-सुथरी, पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली की ओर अग्रसर होने का दावा कर रही है।

लेकिन इस निर्णय के पीछे की परतों को समझना जरूरी है—क्या यह नियुक्ति वास्तव में व्यवस्था सुधार की ईमानदार कोशिश है, या इसके पीछे सत्ता-संचालन की कोई गहरी राजनीतिक रणनीति छिपी है?

RPSC की साख पर संकट : एक पृष्ठभूमि

राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC), जो राज्य के प्रशासनिक ढांचे के लिए रीढ़ की हड्डी मानी जाती है, बीते वर्षों में गंभीर सवालों के घेरे में रहा है। पेपर लीक, परीक्षा स्थगन, भ्रष्टाचार और निष्पक्षता पर उठते सवालों ने इस संवैधानिक संस्था की साख को गहरी चोट पहुंचाई है।

2022 और 2023 के दौरान RAS और REET जैसी परीक्षाओं में हुए लीक कांडों ने युवाओं में भारी असंतोष और अविश्वास पैदा किया। हाईकोर्ट तक को हस्तक्षेप करना पड़ा और राज्य सरकार को बार-बार यह स्पष्टीकरण देना पड़ा कि वो आयोग की विश्वसनीयता बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध है।

इसी पृष्ठभूमि में यू.आर. साहू की नियुक्ति को केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि RPSC को पुनर्जीवित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

यू.आर. साहू : निष्कलंक छवि, लेकिन नई भूमिका में कितनी दक्षता?

यू.आर. साहू भारतीय पुलिस सेवा के 1988 बैच के अधिकारी हैं। उनका प्रशासनिक रिकॉर्ड मजबूत रहा है। कानून-व्यवस्था को दुरुस्त रखने, आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने और पुलिस बल में अनुशासन लाने में उनकी भूमिका को सराहा गया है। फरवरी 2024 में जब उन्हें डीजीपी बनाया गया, तब राज्य के भीतर ‘क्लीन इमेज’ वाले नेतृत्व की चर्चा हुई।

लेकिन अब सवाल यह है कि क्या एक पुलिस अफसर की सख्त और ईमानदार छवि, एक परीक्षा संचालन निकाय जैसे संवेदनशील और तकनीकी संस्था के लिए भी पर्याप्त है?

RPSC की भूमिका पुलिसिंग से बहुत अलग है। यहां पारदर्शिता, तकनीकी दक्षता, डेटा प्रबंधन, शिक्षा जगत की समझ और परीक्षा संचालन की गहन बारीकियाँ प्रमुख हैं। साहू की नियुक्ति में यह आशा जरूर है कि उनकी सख्त कार्यशैली से संगठन में अनुशासन आएगा, लेकिन तकनीकी पेचीदगियों से निपटना उनके लिए चुनौतीपूर्ण होगा।

राजनीतिक पृष्ठभूमि : क्या नियुक्ति सत्ता समीकरणों से प्रेरित है?

साहू की नियुक्ति को राजनीतिक दृष्टि से भी देखा जा रहा है। यह सर्वविदित है कि डीजीपी पद पर रहते हुए वे मुख्यमंत्री के करीबी माने जाते थे। विपक्ष का यह आरोप भी रहा है कि कई निर्णयों में उनकी भूमिका सत्ता पक्ष को ‘प्रशासनिक कवर’ देने वाली रही है, विशेषतः चुनावी वर्षों में।

ऐसे में उनका RPSC में प्रवेश सिर्फ संस्थागत सफाई भर नहीं, बल्कि एक रणनीतिक मोहरे की नियुक्ति भी माना जा रहा है।

RPSC अध्यक्ष का पद, प्रशासनिक दृष्टिकोण से जितना महत्वपूर्ण है, राजनीतिक रूप से उससे कहीं अधिक संवेदनशील होता है। क्योंकि राज्य में नियुक्तियों की प्रक्रिया यदि निष्पक्ष ना हो, तो सरकार की साख गिरती है। ऐसे में एक विश्वसनीय चेहरा, जो सत्ता के भी अनुकूल हो और जनता में भरोसेमंद भी, आदर्श विकल्प बन जाता है — और शायद यही कारण है कि साहू की नियुक्ति हुई।

सामाजिक दृष्टिकोण : युवाओं की उम्मीदें और परीक्षा प्रणाली का भरोसा

राजस्थान में हर वर्ष लाखों युवा प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठते हैं। विगत वर्षों में जिस तरह से बार-बार परीक्षाएँ रद्द हुईं, उससे उनका मानसिक, शैक्षणिक और आर्थिक नुकसान हुआ है। बेरोजगारी दर भी राजस्थान में लगातार चिंता का विषय बनी हुई है।

साहू की नियुक्ति उन युवाओं के लिए उम्मीद का एक संकेत हो सकती है, जो चाहते हैं कि आयोग में अब कोई ‘सख्त लेकिन निष्पक्ष’ नेतृत्व आए। लेकिन उम्मीदें तभी हकीकत बनेंगी जब RPSC में पारदर्शी परीक्षा प्रणाली, समयबद्ध परिणाम और तकनीकी सुधारों को वास्तव में लागू किया जाएगा।

क्या बदलेगा अब?

साहू के आने के बाद निम्नलिखित बदलावों की अपेक्षा की जा सकती है:

प्रशासनिक अनुशासन – आयोग के कर्मचारियों और प्रक्रिया पर सख्ती से निगरानी संभव है।

ईमानदार छवि से जनता का भरोसा बढ़ सकता है – खासकर उन अभ्यर्थियों में जो पेपर लीक प्रकरणों से निराश हैं।

प्रक्रिया में तकनीकी सुधार – यदि साहू की टीम में तकनीकी सलाहकार शामिल किए जाएँ।

राजनीतिक संतुलन बनाए रखना – शासन की मंशा और जनता के हितों के बीच संतुलन साधना।

एक अवसर, एक परीक्षा

यू.आर. साहू की नियुक्ति एक ‘संभावना’ है – संभावित सुधार की, संस्थागत पुनर्निर्माण की और युवा अभ्यर्थियों के भरोसे को बहाल करने की। लेकिन यह नियुक्ति एक परीक्षा भी है – खुद साहू के लिए, राज्य सरकार के लिए और पूरे आयोग के लिए।

यदि साहू अपने पुलिसिया अनुशासन को RPSC के शैक्षिक व प्रशासनिक ढाँचे में ठीक तरह से ढाल पाए, तो यह नियुक्ति एक सफल उदाहरण बन सकती है। लेकिन यदि तकनीकी व पारदर्शिता की चुनौतियों में वे उलझ गए, तो यह प्रयोग एक और विफलता में तब्दील हो सकता है।

टिप्पणी : राजस्थान की राजनीति और प्रशासन के बीच संबंध सदैव गहरे रहे हैं। RPSC जैसे आयोग में जब कोई नियुक्ति होती है, तो उसका सीधा असर लाखों युवाओं के भविष्य पर पड़ता है। ऐसे में यह जरूरी है कि नियुक्तियाँ सिर्फ प्रशासनिक “ट्रांसफर” न बनें, बल्कि उन संस्थाओं के संविधानिक मूल्यों की पुनर्स्थापना का अवसर बनें।

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