
टोंक, राजस्थान। जयपुर से कुछ खुशनुमा पल चुराने आए थे वे… बनास नदी के किनारे गर्मी से राहत के लिए नहा रहे थे। सोचा होगा, शहर की भाग-दौड़ से दूर, ठंडे पानी में डुबकी लगाकर सारी थकान मिटा देंगे। पर किसे पता था कि यह सुकून का पल, जीवन का अंतिम पल बन जाएगा? बनास नदी ने मंगलवार दोपहर 8 युवाओं को अपने क्रूर आगोश में ले लिया, और तीन को सुरक्षित बचा लिया गया।
अधूरी हँसी, खामोश सपने :
यह सिर्फ एक हादसा नहीं, यह परिवारों पर टूटा कहर है। उन माँ-बाप के कलेजे पर क्या गुज़र रही होगी, जिन्होंने बेटों को हँसते-खेलते घर से विदा किया था? उनकी आँखें अब लाल और सूजी हुई हैं, जिनमें आँसू सूख चुके हैं, और एक ही सवाल घूम रहा है: “मेरा बेटा कहाँ है?” टोंक के सआदत अस्पताल की मॉर्च्युरी में रखे शव, बोलती हुई खामोशी का भयावह मंज़र पेश कर रहे हैं। हर एक शव के साथ एक कहानी खत्म हो गई है, एक सपना अधूरा रह गया है, एक परिवार बिखर गया है।
इंतज़ार की टीस और अनकहे सवाल :
तीन युवक अभी भी लापता हैं। नदी का हर बहाव, हर लहर उनके परिजनों के लिए एक उम्मीद और एक डर साथ लेकर आ रही है। क्या वे कहीं किनारे लग गए होंगे? क्या कोई चमत्कार होगा? या बनास ने उन्हें भी निगल लिया है? यह अनिश्चितता की घड़ी, मौत के सदमे से भी कहीं ज़्यादा दर्दनाक है। स्थानीय गोताखोर और आपदा प्रबंधन टीमों ने बचाने की पूरी कोशिश की। टोंक के पुलिस अधीक्षक विकास सागवान और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बृजेंद्र भाटी सहित अन्य अधिकारी अस्पताल में मौजूद हैं, जो स्थिति का जायजा ले रहे हैं और परिजनों को ढांढस बंधा रहे हैं।
हादसे या लापरवाही? कौन है ज़िम्मेदार?
यह दिल दहला देने वाली घटना कई गहरे सवाल खड़े करती है:
सुरक्षा व्यवस्था कहाँ थी? पिकनिक स्थलों पर, ख़ासकर नदियों के पास, क्या सुरक्षा के कोई पर्याप्त इंतज़ाम नहीं होने चाहिए? क्या चेतावनी बोर्ड, लाइफगार्ड्स, या गहरे पानी में जाने से रोकने वाले बैरिकेड्स की ज़रूरत नहीं?
जागरूकता का अभाव: क्या हम अपने युवाओं को पानी के खतरों के प्रति पर्याप्त रूप से जागरूक नहीं कर पा रहे हैं? क्या रोमांच और सावधानी के बीच का फ़र्क़ मिटता जा रहा है?
प्रशासन की भूमिका: हादसे के बाद राहत और बचाव कार्य ज़रूर शुरू हो जाता है, लेकिन ऐसे हादसों को टालने के लिए क्या कोई ठोस और स्थायी रणनीति नहीं होनी चाहिए? क्या नदियों के संवेदनशील घाटों पर नियमित निगरानी या प्रतिबंध ज़रूरी नहीं?
एक बेबाक सवाल : क्या इन आठ मौतों से हम कोई सबक सीख पाएंगे? या कुछ दिनों बाद यह घटना भी सिर्फ़ एक ‘खबर’ बनकर रह जाएगी और हम ऐसी ही किसी अगली त्रासदी का इंतज़ार करेंगे?
सआदत अस्पताल में उमड़ी भीड़, केवल मृतकों के परिजन ही नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं का एक ऐसा जमावड़ा है जो इस सामूहिक दुःख में शरीक है। यह घटना हमें आत्मचिंतन के लिए मजबूर करती है – कि आख़िर कैसे एक खुशनुमा पल, पल भर में मातम में बदल जाता है? और इसकी ज़िम्मेदारी किसकी है?
About Author
You may also like
-
भाजपा में ‘बर्थडे पॉलिटिक्स’ का नया अध्याय — शहर विधायक ताराचंद जैन के जन्मदिन पर सीएम ने भी उदयपुर आकर मुंह मीठा कराया
-
बीजेपी में जमीन के कारोबार पर उठे सवाल : यूडीए ने सरकारी जमीन पर बने 72 निर्माण और 50 दीवारें गिराईं, आरोप नेताओं पर — पार्टी क्यों मौन?
-
Anunay Sood: Who Was He? : Gen-Z की ट्रैवल इंस्पिरेशन, और 32 की उम्र में अचानक गुडबाय
-
GTA VI’ delayed again, new release date set for November next year
-
Gen-Z का नया क्रेज : भजन क्लबिंग — जहां EDM मिलता है भक्ति से!