–मोबाइल के लिए विधवा पेंशन जारी होने की अनिवार्यता समाप्त करे सरकार – एडवोकेट सिंघवी
उदयपुर। राजस्थान सरकार राज्य की महिलाओं को मोबाइल बांटने का दंभ भर रही है, वहीं सरकार बुजुर्गों और विधवा महिलाओं की पेंशन की टेंशन को ही दूर नहीं कर पा रही है। बुजुर्ग स्थानीय निकाय, कलेक्ट्रेट, बैंक, आधार केन्द्र और ईमित्र सेवा केन्द्रों के बीच चक्करघिन्नी बन गए हैं।
दरअसल, वृद्धावस्था व विधवा पेंशन की यह टेंशन तब से शुरू हुई जब से सरकार ने पेंशन बढ़ाकर एक हजार रुपये की। इसके लिए लाभार्थी को पहले तो महंगाई राहत कैम्प में पंजीकरण कराना अनिवार्य कर दिया, इसके बाद जो लोग इन कैम्पों में नहीं पहुंच सके तो उन्हें स्थानीय निकाय के संबंधित विभाग में उपस्थित होकर पंजीकरण कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी। इसके बाद भी जब बुजुर्गों की पेंशन की टेंशन दूर नहीं हो रही और उन्हें जिला कलेक्ट्रेट तक की दौड़ लगानी पड़ रही है।
विधवा पेंशन की टेंशन मोबाइल योजना के बाद बढ़ गई। जिन महिलाओं के जनाधार अपडेट नहीं थे, यानी जिन्होंने अपने पति के देहांत के बाद जनाधार को अपडेट नहीं करवाया था, उनकी दौड़ तो बढ़ी ही, लेकिन सरकार ने मोबाइल योजना में विधवा पेंशन जारी होने का प्रावधान भी लागू कर दिया। अब जिन विधवा महिलाओं ने आज तक विधवा पेंशन आवेदन नहीं किया, उन्हें यह टेंशन है कि उनके हाथोंहाथ विधवा पेंशन कैसे शुरू होगी।
लोगों का कहना है कि यदि सरकार मोबाइल देना ही चाहती है तो पति का मृत्यु प्रमाण पत्र ही देखकर दे सकती है, विधवा पेंशन जारी होने की अनिवार्यता का क्या तुक है? कई हैं जो विधवा पेंशन लेकर सरकार पर बोझ नहीं बढ़ाना चाहती, ऐसे में उन्हें विधानसभा चुनाव से पहले मोबाइल मिल ही नहीं पाएगा।
ऐसी कई महिलाओं की पेंशन इसलिए भी रुक गई क्योंकि अंगुलियों के निशान घिस जाने के कारण उनके जीवित प्रमाण पत्र नहीं हो पाए। उन्हें इसके लिए स्थानीय निकाय या जिला कलेक्ट्रेट में संबंधित विभाग तक की दौड़ लगानी पड़ रही है।
वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक सिंघवी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र प्रेषित कर निवेदन किया है कि जिन बुजुर्गों को पेंशन नहीं मिल पा रही है, उनके लिए सरकार वार्ड वाइज शिविर लगाकर राहत प्रदान करे। विधवा महिलाओं को मोबाइल योजना का लाभ देने के लिए विधवा पेंशन चालू होने की अनिवार्यता को खत्म कर पति के मृत्यु प्रमाण पत्र को आधार बनाए। मुख्यमंत्री गहलोत सामाजिक सुरक्षा को लेकर बेहद संवेदनशील हैं तो राजस्थान में सामाजिक सुरक्षा की एक हैल्पलाइन भी शुरू करें जिससे कि जरूरतमंदों को फोन पर उचित सलाह मिल सके तथा उनकी सहायता के लिए कार्मिकों को बुजुर्गों तक पहुंचाया जाए, न कि बुजुर्गों को दौड़ाया जाए। इस हैल्पलाइन पर नियुक्ति का आधार संवेदनशीलता हो, वर्ना इसका हश्र भी अन्य हैल्पलाइन की तरह न हो जाए। सात दिन में बुजुर्गों की समस्या के समाधान की अनिवार्यता लागू की जाए।
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