
गुना। मध्यप्रदेश के गुना जिले में राघौगढ़ के जेपी कॉलेज में ‘सर्प मित्र’ के रूप में सालों से काम कर रहे दीपक महावर की मौत एक खतरनाक लापरवाही का नतीजा बन गई। जिस सांप को पकड़ना उनकी रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारी थी, उसी ने उनके जीवन की डोर छीन ली। लेकिन यह केवल एक हादसा नहीं था, बल्कि एक ऐसी त्रासदी है जो हमें सिस्टम, लापरवाही और सामाजिक सुरक्षा तंत्र पर सवाल उठाने को मजबूर करती है।
एक छोटी चूक, एक बड़ी कीमत
दीपक को सोमवार दोपहर कॉल आया कि एक घर में सांप घुस आया है। उन्होंने उसे सुरक्षित पकड़ लिया, लेकिन जल्दबाज़ी में, बजाय डिब्बे में रखने के, सांप को गले में लपेट लिया। बेटे को स्कूल से लेने की जल्दी थी। उन्होंने सांप को वहीं लटकाए रखा और मोटरसाइकिल से निकल पड़े।
किसी एक्शन फिल्म जैसा यह दृश्य एक भयावह मोड़ पर खत्म हुआ। रास्ते में उस सांप ने उनके दाहिने हाथ पर काट लिया।
इलाज मिला, लेकिन निगरानी नहीं
दीपक को पास के अस्पताल में प्राथमिक इलाज मिला, फिर गुना रेफर किया गया। लेकिन हालत कुछ ठीक लगने पर वो शाम को घर लौट आए। रात होते-होते जहर ने अपना काम कर दिया और सुबह उनकी मौत हो गई।
डॉक्टरों के मुताबिक अगर वो 24 घंटे ऑब्ज़र्वेशन में रहते तो शायद जान बच सकती थी।
सांप पकड़ने की कला ने दिलाई नौकरी, लेकिनजल्दबाज़ी ने जान ले ली
दीपक ने सांप पकड़ने की कला किसी प्रशिक्षित संस्थान से नहीं, बल्कि अनुभव और जुनून से सीखी थी। उनकी इसी खासियत के कारण उन्हें जेपी कॉलेज में नौकरी मिली थी, जो जंगल के करीब है और जहां अक्सर सांप निकलते रहते हैं।
उनके छोटे भाई नरेश महावर बताते हैं, “दीपक को पहले भी कई बार सांप काट चुका था, लेकिन उन्होंने कभी इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया। जड़ी-बूटियों और घरेलू नुस्खों से वो अक्सर ठीक हो जाते थे। लेकिन इस बार वो चूक गए… और हम सब हार गए।”
दो मासूम बेटे और एक अधूरा परिवार
दीपक की पत्नी का देहांत 10 साल पहले हो चुका था। अब उनके पीछे दो बेटे बचे हैं – एक 14 साल का, दूसरा 12 साल का। भाई नरेश की अपील है, “सरकार से गुज़ारिश है कि इंसानियत के नाते इन बच्चों की मदद की जाए। दीपक ने कई बार लोगों की जान बचाई है, अब उनकी संतानें मदद की हकदार हैं।”
हर साल हज़ारों मौतें : कब सुधरेगा सिस्टम?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार भारत में हर साल सांप के काटने के 50 लाख मामले सामने आते हैं, जिनमें करीब एक लाख लोगों की मौत होती है। अकेले मध्यप्रदेश में 2020-2022 के बीच 5,728 परिवारों को सर्पदंश से हुई मौत के बाद मुआवज़ा मिला।
यह आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में सर्पदंश न केवल स्वास्थ्य समस्या है, बल्कि एक सामाजिक चुनौती भी है, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में, जहां चिकित्सा सुविधाएं सीमित हैं और जागरूकता की कमी है।
सवाल जो उठने चाहिए
क्या ‘सर्प मित्रों’ को प्रशिक्षण दिया जाता है?
क्या उनके लिए सुरक्षा उपकरण (Snake Tongs, Boxes, Gloves आदि) अनिवार्य हैं?
क्या उन्हें किसी सरकारी बीमा या आपातकालीन मुआवज़ा योजना में शामिल किया गया है?
क्या किसी ग्रामीण स्तर के अस्पताल में 24×7 ऑब्ज़र्वेशन और एंटी-स्नेक वेनम की पर्याप्त व्यवस्था है?
इन सवालों का जवाब न सिर्फ दीपक की मौत से जुड़ा है, बल्कि उन सैकड़ों सर्प मित्रों से भी जो आज भी बिना सुरक्षा के जान जोखिम में डाल रहे हैं।
मामले को मानवता की दृष्टि से देखे सरकार
दीपक की मौत को एक हादसा मानकर नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। वो सिर्फ एक सरकारी कर्मचारी नहीं थे, बल्कि एक समुदाय के रक्षक थे। सरकार को चाहिए कि उनके परिवार को आर्थिक सहायता, बच्चों की शिक्षा और स्थायी सुरक्षा योजना के तहत मदद दे।
एक सर्प मित्र की ज़िम्मेदारी सिर्फ सांप पकड़ना नहीं होती, वो अपने साहस से एक पूरा मोहल्ला, गांव, या स्कूल सुरक्षित करता है।
आज दीपक नहीं हैं… पर शायद उनकी कहानी से किसी और की जान बच सके।
सीख : सांप से ज़्यादा खतरनाक होती है हमारी लापरवाही। यह मामला बताता है कि प्रकृति से खेलने में नहीं, समझदारी और संयम में ही हमारी सुरक्षा है।
क्रेडिट : बीबीसी हिंदी
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